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क्रिया किसे कहते हैं?
क्रिया
वाक्य के जिस शब्द से हमें किसी कार्य को करने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़ें।
1. माताजी खाना बना रही हैं।
2. राकेश पुस्तक लेने के लिए बाजार गया है।
3. पक्षी उड़ रहे हैं।
4. अमित प्रिती के लिए खाना ला रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों से ज्ञात होता है कि इन वाक्यों में “बना रही हैं”, “गया है”, “उड़ रहे हैं”, “ला रहा है” आदि पदों से किसी न किसी कार्य के होने या कार्य के करने का बोध होता है। वाक्य के ऐसे शब्द क्रिया कहलाते हैं।tions
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Class 6 Hindi Grammar Chapter 11 क्रिया
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Class 6 Hindi Grammar Chapter 11 क्रिया (Kriya). Practice here with कक्षा 6 हिन्दी व्याकरण पाठ 11 क्रिया तथा उसके भेद with examples and explanation.
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कक्षा 6 हिन्दी व्याकरण पाठ 11 क्रिया और उसके भेद
कक्षा: 6 हिन्दी व्याकरण
अध्याय: 11 क्रिया तथा क्रिया के भेद
Class 6 Hindi Grammar Chapter 11 क्रिया
कक्षा 6 हिन्दी व्याकरण – क्रिया तथा उसके भेद
क्रिया किसे कहते हैं?
क्रिया
वाक्य के जिस शब्द से हमें किसी कार्य को करने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़ें।
1. माताजी खाना बना रही हैं।
2. राकेश पुस्तक लेने के लिए बाजार गया है।
3. पक्षी उड़ रहे हैं।
4. अमित प्रिती के लिए खाना ला रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों से ज्ञात होता है कि इन वाक्यों में “बना रही हैं”, “गया है”, “उड़ रहे हैं”, “ला रहा है” आदि पदों से किसी न किसी कार्य के होने या कार्य के करने का बोध होता है। वाक्य के ऐसे शब्द क्रिया कहलाते हैं।
प्रत्येक वाक्य में क्रिया पदों का महत्तवपूर्ण स्थान होता है। क्रिया के बिना वाक्य अपूर्ण रहता है। इसलिए प्रत्येक वाक्य में क्रिया अवश्य होती है। सहायक क्रिया जो शब्द काल आदि का बोध कराने में क्रिया की सहायता करते हैं, उन्हें सहायक क्रिया कहते हैं।
जैसे:
पढ़ रहा है,
लिख रही थी,
क्रियाओं में से “पढ़” और “लिख” धातु को अलग कर देने से “रहा है” और “रही थी”, रूप बच जाते हैं, ये सहायक क्रिया के नाम से जाने जाते हैं। ये रूप मुख्य क्रिया (धातु) की सहायता करते हैं, इसीलिए इन्हें सहायक क्रिया कहा जाता है। धातु क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं।
जैसे- दौड़, हँस, जाग, पढ़, लिख, पी, सो, उठ, बैठ, आदि।
क्रिया का सामान्य रूप मूल धातु में “ना” प्रत्यय जोड़कर क्रिया के सामान्य रूप बनाए जाते हैं।
जैसे- खा + ना = खाना, सो + ना = सोना, दौड़ + ना, = दौड़ना
क्रिया के भेद
क्रिया के निम्नलिखित भेद हैं:
1. सकर्मक क्रिया,
2. अकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के व्यापार का फल या प्रभाव (कर्ता को छोड़कर) कर्म पर भी पड़ता है, वे सकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे- खाना, पीना, देखना, लिखना आदि।
क. योगेश पुस्तक पढ़ रहा है।
ख. नेहा चित्र देख रही है।
उपर्युक्त वाक्यों में “पढ़ रहा है” और “देख रही है” सकर्मक क्रियाएँ हैं। पढ़ने और देखने का कर्म क्रमशः योगेश तथा नेहा कर रहे हैं, किंतु इनका फल कर्म पर ही पड़ रहा है इसलिए ये सभी सकर्मक क्रियाएँ हैं।
मनीषा पुस्तक पढ़ती है। (सकर्मक), मनीषा पढ़ती है।
क्रिया के अन्य भेद
संरचना के आधार पर क्रिया पाँच प्रकार की होती है:
1. सामान्य क्रिया,
2. संयुक्त क्रिया,
3. नामधातु क्रिया,
4. प्रेरणार्थक क्रिया,
5. पूर्वकालिक क्रिया,
सामान्य क्रिया
जहाँ किसी एक क्रिया का प्रयोग हो तो, वह सामान्य क्रिया कहलाती है।
जैसे:
क. महेश आया।
ख. रीमा ने गीत गाया।
इन वाक्यों में “आया” और “गाया” शब्द एक क्रिया के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
संयुक्त क्रिया
जहाँ दो अथवा दो से अधिक क्रियाओं का साथ-साथ प्रयोग हो तो वह संयुक्त क्रिया कहलाती है।
जैसे:
क. सोहन खा चुका है।
ख. रोहन सो गया है।
यहाँ “खा चुका” और “सो गया” दो-दो क्रियाओं का एकसाथ प्रयोग हुआ है। अतः ये संयुक्त क्रियाएँ हैं।
नामधातु क्रिया
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से बने क्रिया पदों को नाम-धातु क्रिया कहते हैं।
जैसे: हाथ से हथियाना, बात से बतियाना, गर्म से गर्माना, खटखट से खटखटाना आदि।
नामधातु क्रियाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं:
संज्ञा शब्दों से संज्ञा नामधातु
सर्वनाम शब्दों से सर्वनाम नामधातु
विशेषण शब्दों से विशेषण नामधातु
अनुकरणात्मक शब्दों से अनुकरणात्मक नामधातु
पूर्वकालिक क्रिया
मुख्य क्रिया से पहले आने वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।
जैसे: मैं अभी सोकर उठा।
यहाँ “सोकर” पूर्वकालिक क्रिया है। यहाँ मुख्य क्रिया “उठा” है।प्रेरणार्थक क्रिया
जब कर्ता कोई काम स्वयं न करके दूसरे को उसे करने को प्रेरित करे, तो अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है। ऐसी क्रियाएँ प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहलाती हैं।
क. पिता पुत्र से पत्र लिखवाता है।
ख. अध्यापक छात्रों से पाठ पढ़वाता है।
प्रेरणार्थक क्रिया दो प्रकार की होती है:
क. प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया,
ख. द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
जब कर्ता स्वयं भी कार्य में सम्मिलित होता हुआ प्रेरणा देता है, तब उसे प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
जैसे: वह सबको भजन सुनाता है।
द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
जब कर्ता स्वयं कार्य न करके दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा देता है, तब उसे द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
जैसे: वह जोकर से बच्चों हँसाता है
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