Speech of accha swasth maha vardan
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आज तक संसार में छोटे-बड़े जितने प्रकार के भी कार्य हुए हैं वे स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन-मस्तिष्क वाले सबल व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। कहावत प्रसिद्ध है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन-मस्तिष्क और आत्मा का निवास हुआ करता है। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति ही उन्नति करने, ऊंचा उठने की कल्पनांए कर या विचार बना सकता है। स्वस्थ मस्तिष्क या बुद्धि वाला व्यक्ति ही उन कल्पनाओं और विचारों को पूरा करने के लिए उपाय सोचकर साधन जुटा सकता है। इसके बाद शरीर के स्वस्थ रहने पर ही साधनों और उपायों से काम लेकर वे सारे कार्य किए जा सकते हैं, जिनकी विचारपूर्वक कल्पना की होती है और जिन्हें पूरा करने के बाद आत्मा सच्चा आनंद प्राप्त करके सुखी तथा संतुष्ट हो सकती है। जब व्यक्ति स्वंय सुखी तथा संतुष्ट होता है, तभी वह अपने आस-पड़ौस, समाज, देश-जाति, राष्ट्र और फिर सारी मानवता को सुखी तथा समृद्ध बनाने की बात न केवल सोच ही सकता है बल्कि उसके लिए कार्य भी कर सकता है। इसी दृष्टि से अच्छे स्वास्थ्य को महा वरदान, मेहमत और सच्चा धन कहा या माना जा सकता है।
संसार में आज तक जो भी कुछ भी महान, महत्वपूर्ण और उपयोगी हुआ है, वह दुर्बल शरीर और मन-मस्तिष्क वाले लोगों के द्वारा नहीं किया गया है। एवरेस्ट की चोटी पर मनुष्यता की जीत का झंडा फहराने वाले व्यक्ति अस्वस्थ और दुर्बल नहीं थे। हवाई जहाज उड़ाने वाले, पानी की धारा और प्रवाह के विरुद्ध नौकांए खेने वाले, बड़े-बड़े भवन खड़े करने वाले, सीमाओं की रक्षा के लिए भयानक और विषम परिस्थितियों में भी रात-दिन डटे रहना अवस्थ लोगों का कार्य नहीं हो सकता। चंद्रलोक या अंतरिक्ष का यात्री भी कोई रोगी, कमजोरी और भाज्यवादी अस्वस्थ आदमी नहीं बन सकता। तात्पर्य यह है कि संसार में अच्छा-बुरा कुछ भी करने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यक है, यद्यपि बुराई को अस्वस्थ मन मस्तिष्क की देन माना जाता है।