speech on 'भारतीय शिक्षा व्यवस्था में मौलाना अबुल कलाम आजाद का योगदान in hindi
Answers
Explanation:
itna lamba type karna bahut mushkil hai bhai
ACHA WAIT A MINUTE
वर्तमान शिक्षा पद्धति में काफी दोष हैं, इसमें दिखावा तो खूब है लेकिन वास्तविक शिक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं. अगर हम पिछले 60 सालों का इतिहास देखें तो ऐसा कोई भी शिक्षा मंत्री नहीं रहा जिसने भारतीय शिक्षा पद्धति में अमूलचूल परिवर्तन किया हो. लेकिन भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद उन सबसे अलग थे. शिक्षा के अधिकार को लेकर वर्तमान सरकार इतरा रही है, केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने के नाते और एक शीर्ष निकाय के तौर पर अबुल कलाम आजाद ने सरकार से केन्द्र और राज्यों दोनों के अलावा विश्वविद्यालयों में, खासतौर पर सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की सिफारिश की थी.
भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनने पर अबुल कलाम आजाद ने नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954) और ललित कला अकादमी (1954) जैसी उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की. मौलाना मानते थे कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिक्षा में सांस्कृतिक सामग्री काफी कम रही और इसे पाठयक्रम के माध्यम से मजबूत किए जाने की जरूरत है.तकनीकी शिक्षा के मामले में अबुल कलाम आजाद ने 1951 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (खड़गपुर) की स्थापना की गई और इसके बाद श्रृंखलाबद्ध रूप में मुंबई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आईआईटी की स्थापना की गई. स्कूल ऑफ प्लानिंग और वास्तुकला विद्यालय की स्थापना दिल्ली में 1955 में हुई. इसके अलावा मौलाना आजाद को ही 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय जाता है. वह मानते थे कि विश्वविद्यालयों का कार्य सिर्फ शैक्षिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ उनकी समाजिक जिम्मेदारी भी बनती है.
उन्होंने अंग्रेजी के महत्व को समझा तो सही लेकिन फिर भी वे प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा हिन्दी में प्रदान करने के हिमायती थे. वह प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहे.
वर्तमान समय में तो देश में कुकरमुत्ते की तरह शैक्षिक संस्थान खुलते जा रहे हैं लेकिन ये संस्थान प्राणहीन मूर्ति के समान हैं. यहां थोड़ा अक्षर ज्ञान जरूर मिल जाता है और बाकी के ज्ञान के नाम पर ये सभी संस्थाएं प्रमाण-पत्र बांटने का काम कर रही हैं. पैसा दीजिए, और प्रमाण पत्र लीजिए इस तरह की व्यवस्था समाज में उत्पन्न हो रही है जो किसी भी मायने में सही नहीं कही जा सकती.
please mark me branliest only when you find my answer helpful