Speech on discrimination in hindi
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जेण्डर का अर्थ:
स्त्री एवं पुरुष में यदि अन्तर देखें तो कुछ वे अंतर दिखायी देते हैं जो शारीरिक होते हैं, जिन्हें हम प्राकृतिक अन्तर कहते हैं । इसे लिंग भेद भी कहा जा सकता है किन्तु अधिक अन्तर वे हैं, जिन्हें समाज ने बनाया है ।
चूँकि इस अंतर को समाज ने बनाया है, अत: ये अंतर वर्ग, स्थान व काल के अनुसार बदलते रहते हैं । इस सामाजिक अंतर को बदलने वाली संरचना को जेण्डर कहा जाता है । इसे हम ‘सामाजिक लिंग’ कह सकते हैं ।
जेण्डर शब्द महिला और पुरुषों की शारीरिक विशेषताओं को समाज द्वारा दी गई पहचान से अलग करके बताता है । जेण्डर समाज द्वारा रचित एक आभास है जिससे महिला-पुरुष के सामाजिक अंतर को उजागर किया जाता है । अक्सर भ्रांतियों के कारण जेण्डर शब्द को महिला से जोड़ दिया जाता है ।
जैसे- शिक्षा से सम्बन्धित एक कार्यशाला में चर्चा चल रही थी कि गांव से पाठशाला दूर है तथा बीच में गन्ने के खेत एवं थोड़ा सा जंगल है तो शिक्षा की व्यवस्था कैसी होगी ? तब एक प्रतिभागी ने उत्तर दिया कि बालकों को तो कोई समस्या नहीं होगी किन्तु बालिकाओं को समस्या आयेगी । वह इतनी दूर कैसे जायेगी, उसकी सुरक्षा से सम्बन्धित समस्याएं आयेंगी ।
अत: जेण्डर शब्द के अन्तर्गत निम्न बातों का समावेश होता है:
1. यह महिला एवं पुरुष के बीच समाज में मान्य भूमिका एवं सम्बन्धों की जानकारी देता है ।
2. यह सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों तथा सम्बन्धों की व्यवस्था की ओर इंगित करता है ।
3. यह महिला एवं पुरुष की शारीरिक रचना से अलग हटकर दोनों को ही समाज की एक इकाई के रूप में देखता है तथा दोनों को ही बराबर का महत्व देता है तथा यह मानता है कि दोनों में ही बराबर की क्षमता है ।
4. यह एक अस्थाई सीखा हुआ व्यवहार है जो कि समय, समाज व स्थान के साथ-साथ बदलता रहता है ।
5. जेण्डर सम्बन्ध अलग-अलग समाज एवं समुदाय में अलग-अलग हो सकते हैं, तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भों को समझ कर अभिव्यक्त किये जाते हैं ।
उदाहरण स्वरूप मानव जीवन में नीचे दर्शाये गए पहलुओं को जेण्डर परिभाषित करता है:
१. वेशभूषा एवं शारीरिक गठन:
i. स्त्री एवं पुरुषों की वेशभूषा समाज एवं संस्कृति तय करती है जैसे घाघरा, सलवार सूट, धोती-कुर्ता, पैंट शर्ट, जनेऊ, मंगल सूत्र का प्रयोग आदि।
ii. स्त्री एवं पुरुष के शरीर का गठन कैसा होगा । अक्सर यह भी संस्कृति एवं समाज तय करता है, जैसे- छोटे बाल, बड़े बाल, मोटा, पतला, गोरा, काला आदि होना ।
२. व्यवहार:
i. बालक-बालिका, स्त्री पुरुष के बोलने का ढंग, उठना बैठना, हंसना बोलना एवं चलना आदि समाज एवं संस्कृति के मानदण्डों के आधार पर तय होता है ।
ii. बड़ों का आदर करना, बड़ों के समक्ष बोलना इत्यादि समाज द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुसार ही तय होता है ।
३. भूमिका:
i. स्त्री एवं पुरुषों की अलग-अलग भूमिकाएं हैं, जैसे- माँ, पिता, गृहणी आदि ।
४. कर्तव्य एवं अधिकार:
एक लड़की तथा एक लड़के के विकास के साथ-साथ उसके कर्तव्य एवं अधिकारों में परिवर्तन होता रहता है एवं यह सब कुछ तय होता है समाज एवं संस्कृति के मानदण्डों के आधार पर । उपरोक्त स्थितियों को देखने के साथ-साथ एक बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि जेण्डर क्या नहीं है ।
जैसे कि:
i. जेण्डर शब्द से केवल महिला ही प्रदर्शित नहीं होती है ।
ii. यह पुरुषों को शेष समाज से अलग नहीं देखता है ।
iii. जेण्डर का तात्पर्य सिर्फ नारीवाद नहीं है ।
iv. यह केवल महिलाओं की समस्या को नहीं देखता ।
v. इसके अन्तर्गत सिर्फ महिलाओं की बात नहीं होती ।
vi. यह लिंग का पर्यायवाची नहीं है इत्यादि ।
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