Hindi, asked by sanyamgarg, 1 year ago

speech on dowry in hindi

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Answered by velly011
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भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।

यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।

अखबारों में अब विज्ञापन निकलते है कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं । उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहा जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है ।
Answered by armaanmalik285
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भारतीय समाज में फैली हुई अनेक कुरीतियां इस गौरवशाली समाज के माथे पर कलंक हैं ।दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएँ । हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड्‌कर पति के घर जाना होता है । हमारी लोक कथाओं और प्राचीन काव्यों में दहेज प्रथा का काफी वर्णन हुआ है ।

दहेज एरक सात्विक प्रथा थी । पिता के सम्पन्न घर से पतिगृह में प्रवेश करते ही पुत्री के लिए पिता का घर पराया हो जाता था । कालिदास ने ‘ अभिज्ञान शाकुन्तलम् ‘ में कन्या को पराई वस्तु कहा है । वस्तुत: वह धरोहर है, जिसे पिता- पाणिग्रहण करके सौंप देता है । 

विवाह के समय माता पिता द्वारा अपनी संपत्ति में से कन्या को कुछ धन, वस्त्र, आभूषण आदि के रूप में देना ही दहेज है. प्राचीन समय में ये प्रथा एक वरदान थी. इससे नये दंपत्ति को नया घर बसाने में हर प्रकार का सामान पहले ही दहेज के रूप में मिल जाता था. माता पिता भी इसे देने में प्रसन्नता का अनुभव करते थे.
परंतु समय के साथ साथ यह स्थिति उलट गयी. वही दहेज जो पहले वरदान था अभिशाप बन गया है. आज चाहे दहेज माता पिता के सामर्थ्य में हो ना हो, जुटाना ही पड़ता है. कई बार तो विवाह के लिए लिया गया क़र्ज़ सारी उमर नहीं चुकता तथा वार पक्ष भी उस धन का प्रयोग व्यर्थ के दिखावे में खर्च कर उसका नाश कर देता है.

दहेज प्रथा हमारे समाज का कोढ है । यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है । जिस समाज में दुल्हनों को प्यार की जगह यातना दी जाती है, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं, नितान्त असभ्यों का समाज है । अब समय आ गया है कि हम इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंके ।
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