speech on jalvayu in punjabi or Hindi *geography)10points
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जलवायु परिवर्तन मूल रूप से जलवायु के पैटर्न में बदलाव है जो कुछ दशकों से सदियों तक रहता है। विभिन्न कारक पृथ्वी पर जलवायु परिस्थितियों में बदलाव लाते हैं। इन कारकों को मजबूर तंत्र के रूप में भी जाना जाता है। ये तंत्र या तो बाहरी या आंतरिक हैं।
बाहरी मजबूर तंत्र या तो प्राकृतिक हो सकते हैं जैसे कि पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन, सौर विकिरण में परिवर्तन, ज्वालामुखी विस्फोट, प्लेट टेक्टोनिक्स, आदि या मानव गतिविधियों जैसे ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन उत्सर्जन आदि के कारण हो सकते हैं। आंतरिक मजबूर तंत्र। दूसरी ओर, प्राकृतिक प्रक्रियाएं हैं जो जलवायु प्रणाली के भीतर होती हैं। इनमें महासागर-वायुमंडल परिवर्तनशीलता के साथ-साथ पृथ्वी पर जीवन की उपस्थिति भी शामिल है।
ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन से वनों, वन्यजीवों, जल प्रणालियों के साथ-साथ पृथ्वी पर ध्रुवीय क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी पर जलवायु में बदलाव के कारण पौधों और जानवरों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं और कई अन्य प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।
वनों की कटाई, भूमि का उपयोग और वायुमंडल में कार्बन की वृद्धि का कारण बनने वाली विधियों का उपयोग हाल के दिनों में जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण रहा है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और पर्यावरण सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए ऐसी गतिविधियों पर नजर रखना महत्वपूर्ण है।
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जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी।[1] ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है।[2] जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं[3] |