India Languages, asked by gauri0407, 6 months ago

speech on मातृ देवो भव in marathi​

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Answered by Ladynoire
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अर्थात- माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।••‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’अर्थात- जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।••‘माता गुरूतरा भूमेः।’अर्थात- माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।••‘अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।’अर्थात- जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।••‘नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।’अर्थात- माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।••पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाःपरं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवेकुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ अर्थात- पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की माँ हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब है कि माँ एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।••निम्न श्लोक में इष्टदेव को सर्वप्रथम ‘माँ’ के रूप में उद्बोधित किया गया है:-‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः।।’हमारे देश भारत में ‘माँ’ को ‘शक्ति’ का रूप माना गया है और वेदों में ‘माँ’ को सर्वप्रथम पूजनीय कहा गया है।‘‘माँ !’’ एक अलौकिक शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है।‘माँ’ एक अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है।‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा का शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

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