Speech on savedanshilta in hindi
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धर्म का आधार होता है - दया, करुणा और अनुकम्पा। इसके लिए मानव में मानवीयता का गुण होना आवश्यक है। हमारे भीतर ऐसी संवेदनशीलता होनी चाहिए कि अगर कोई और व्यक्ति तकलीफ में हो तो उसकी पीड़ा का अहसास हमें भी हो। हमें अहसास होता तो है पर सिर्फ वहाँ जहाँ हमारा अनुराग होता है। किसी का अपना बच्चा बीमार हो गया तो उसे पीड़ा होगी लेकिन वही पीड़ा पड़ोसी के बच्चे के बीमार होने पर नहीं होगी।
जहाँ सच में संवेदनशीलता होती है, अनुकम्पा होती है वहाँ तेरे-मेरे की दीवार नहीं होती। वहाँ अपनों के लिए वात्सल्य और परायों के लिए आत्मीयता का अभाव, ऐसा नहीं होता। लेकिन आज हमने अपनी नैतिकता और संवेदनशीलता को सिर्फ अपनों तक सीमित कर रखा है जिसकी सीमा हमारे स्वार्थ के अनुसार बदलती रहती है।
आज जितनी भी आपराधिक घटनाएँ होती है, उसका मूल कारण संवेदनशीलता का अभाव है जिसकी वज़ह से मनुष्य दूसरों के दुःख, दर्द और पीड़ा का अनुभव नहीं कर पाता।
इसलिए यह बहुत जरुरी है कि बचपन से ही नैतिकता, मानवीयता और संवेदनशीलता के संस्कार प्रस्फुटित किये जाएँ।