Hindi, asked by gavitshashank, 3 months ago

spontenous talk on वृक्षारोपण

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Answered by sarwangidalvi
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srry dint know the answer

Answered by girlscience
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वृक्ष हमारे आश्रयदाता हैं। वे हमें दैहिक, दैविक व भौतिक तीनों तापों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। हमारे प्राचीन धर्म-ग्रंथ और विज्ञान दोनों ही वृक्षों के विभिन्न प्रयोगों का गुणगान करते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार तो वृक्षों को दैवतुल्य समझना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने तो कहा भी है कि मैं वृक्षों में पीपल हैं। जिसका प्रमाण हमें मिलता है महात्मा बुद्ध से जिन्हें ज्ञान भी पीपल के वृक्ष ने नीचे से ही प्राप्त हुआ।

वृक्ष हर रूप में मानव की सहायता करते हैं। मानव ही है जो दानव की तरह वृक्षारोपण तो नहीं करेगा पर वृक्षाशोध जर करेगा। हर रूप में वृक्ष हमारी सहायता करते हैं। अगर हम देखें तो क वृक्ष की छाल एवं पत्तियों का प्रयोग आजकल प्रायः हर औषधियाँ बनाने के रूप में किया जा रहा है।

नीम के वृक्ष को ही ले लीजिए, इसका रस, गोंद, पत्ते, फल, बीज, तना सभी उपयोग में आता है। इसी तरह के कई और भी वृक्ष हैं जो विभिन्न तरह से मानव को मदद करते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि वृक्ष द्वारा ही छोड़ी गई हवा हम लेकर जीते हैं, फिर भी मनुष्य का स्तर कितना गिर चुका है जो जीवन देने वाले का ही जीवन ले लेता है।

वृक्ष अगर हम से कुछ लेता है तो उसक वा वह हमें बहुत कुछ देकर उतार भी देता है, पर हम मूर्ख मानव समझ नहीं पाते | वेदों, पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में ऐसे कई उल्लेख दिए गए हैं जिनके द्वारा हमें वृक्षों के संबंध में कई जानकारियाँ मिलती हैं, पर हम समझना नहीं चाहते और उनका नाश कर देते हैं।

यह एक कठोर सत्य है कि अगर इस धरती से वृक्षों का नाश हम मनुष्य दें, तो निश्चय ही हमारा नाश भी संभव हो जाएगा। वृक्ष कई सारी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में भी सहायक होते हैं।

हमें अपने घर, महौले, कस्बे, गाँव, शहर, देश में जहाँ तक हो सके हरित क्रांति लाने का प्रयास करना चाहिए। इसकी मदद से हमारे जीवन में जो क्रांति आएगी वह देखने योग्य रहेगी।

लेकिन आज का भौतिवादी मानव केवल अपने ही सुख-सुविधाओं का ध्यान रखता है, वह अपने स्वार्थपूर्थी हेतु अंधाधुंध वृक्षों की कटाई कर रहा है। जिस्कारण धरती से निरंतर वृक्षों की संख्या में कमी आती जा रही है। अगर हम वैज्ञानिक आंकड़े देखेंगे तो पर्यावरण संतुलन हेतु पृथ्वी पर कम से कम 15 % भाग पर वन होना चाहिए। पर आज की इस धरती पर वृक्षों की कमी निरंतर तो होती ही जा रही है, पर जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है जिस कारण जगह-जगह पर कभी भी कुछ भी आप्रकृतिक घटित होता ही जा रहा है।

वृक्ष से हमें सीखना चाहिए कि किस तरह हमारे द्वारा नुकसान किए जाने पर भी वह हमारी सहायता ही करता है, उसके माध्यम से ही हमें खाने के लिए फल-सब्जी आदि मिलती है, कागज भी वही देता है, हमारे घर के लिए फर्नीचर भी वही देता है। वृक्ष ने केवल देना सीखा है जबकि मनुष्य ने केवल लेना ही लेना सीखा है।

वृक्षों को वर्षा का प्रमुख स्रोत बताया जाता है, पर हम मानववृक्षों को काटते ही जा रहे हैं और वर्षा की उम्मीद करते ही जा रहे हैं, तो कहाँ से यह संभव हो पाएगा। पृथ्वी का तापमान जो वृक्ष अपने नियंत्रण में किया करते थे, आज वे वृक्ष का अस्तित्व ही स्वयं खतरे में है, यही कारण है कि सर्दी के मौसम में गर्मी हो रही है। और गर्मी के मौसम में बरसात।

इनसब से बढ़कर जो हमारी धरती पर सुरक्षा कवच है ओजोन लेयर का, उस पर भी वृक्षों के आभाव से छिद्र पड़ गया है। जिसकारण मानव जाति का अस्तित्व भी खतरे में आ चुका है।

इस संकट से निजात पाने का एक ही उपाय है कि हम स्वयं तथा अपने आसपास के सभी लोगों के बीच वृक्षारोपण का प्रचार कर अधिक से अधिक यूक्षों को लगाने का प्रयास करें। सरकार को भी चाहिए की वह आगे बढ़कर आए और वृक्षारोपण करने वाले को प्रोत्साहित करे साथ ही मिलकर अब हम सबको नारा लगाना चाहिए कि- पेड़ लगाओ, अपने आप को बचाओ।

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