Hindi, asked by jeena2006, 2 months ago

Sree ram ki baal leela , class 8 anuvaad​

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Answered by bimalgupta778
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आपने अब तक भगवान श्री राम के नामकरण लीला को पढ़ा। गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम की सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन कर रहे है। तुलसीदास जी बता रहे हैं बचपन से ही लक्ष्मण जी की राम जी के चरणों में प्रीति थी। और भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है, वैसी प्रीति हो गई। वैसे तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं लेकिन सुख के समुद्र श्री रामचन्द्रजी सबसे अधिक हैं।

माँ कभी गोदी में लेकर भगवान को प्यार करती है। कभी सुंदर पालने में लिटाकर ‘प्यारे ललना!’ कहकर दुलार करती है। जो भगवान सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं,वो आज प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में (खेल रहे) हैं।

भगवान के कान और गाल बहुत ही सुंदर हैं। ठोड़ी बहुत ही सुंदर है। दो-दो सुंदर दँतुलियाँ हैं, लाल-लाल होठ हैं। नासिका और तिलक (के सौंदर्य) का तो वर्णन ही कौन कर सकता है। जन्म से ही भगवान के बाल चिकने और घुँघराले हैं, जिनको माता ने बहुत प्रकार से बनाकर सँवार दिया है।

शरीर पर पीली झँगुली पहनाई हुई है। उनका घुटनों और हाथों के बल चलना बहुत ही प्यारा लगता है। उनके रूप का वर्णन वेद और शेषजी भी नहीं कर सकते। उसे वही जानता है, जिसने कभी स्वप्न में भी देखा हो। भगवान दशरथ-कौसल्या के अत्यन्त प्रेम के वश होकर पवित्र बाललीला करते हैं।

इस प्रकार सबको सुख दे रहे हैं। इस प्रकार से प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने बालक्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया। कौसल्याजी कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती-डुलाती और कभी पालने में लिटाकर झुलाती थीं।

एक बार मैया ने भगवान को स्नान करवाया है। फिर मैया ने सुंदर श्रृंगार किया है और प्रभु को पालने में सुला दिया है। इसके बाद माँ ने अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया। फिर भगवान की पूजा की है और नैवेद्य(भोग) चढ़ाया है । और मैया रसोई घर में गई है। फिर माता वहीं पूजा के स्थान में लौट आई और वहाँ आने पर राम को इष्टदेव भगवान के लिए चढ़ाए हुए नैवेद्य का भोजन करते देखा।

माता अब डर गई है की मैंने तो लाला को पालने में सुलाया था पर यहाँ किसने लाकर बैठा दिया, इस बात से डरकर पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को सोया हुआ देखा। फिर पूजा स्थान में लौटकर देखा कि वही पुत्र वहाँ भोजन कर रहा है। उनके हृदय में कम्प होने लगा और मन को धीरज नहीं होता॥ हृदयँ कंप मन धीर न होई॥

माँ सोच रही है मैंने सच में 2 बालक देखे है या मेरी बुद्धि का भ्रम है। मुझे किस कारण से 2 बालक दिखाई दिए हैं। माँ बहुत घबराई हुई हैं। लेकिन भगवान माँ को देख कर मुस्कुरा दिए हैं। फिर भगवान ने माँ को अपना अद्भुत रूप दिखाया है।

जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं। अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे। भगवान की माया दर्शन करके माँ डर गई है और हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई है। माँ ने आज जीव को देखा, जिसे वह माया नचाती है और (फिर) भक्ति को देखा, जो उस जीव को (माया से) छुड़ा देती है। माँ का शरीर पुलकित हो गया और आँखे बंद हो गई है। माँ ने भगवान श्री राम के चरणों में शीश झुकाया है। माँ को आश्चर्यचकित देखकर भगवान राम फिर से छोटे से बालक बन गए है। माँ इतना डर गई है की कुछ शब्द भी नहीं बोल पा रही है। कौसल्याजी बार-बार हाथ जोड़कर विनय करती हैं कि हे प्रभो! मुझे आपकी माया अब कभी न व्यापे। इस प्रकार भगवान ने माँ को अपना विराट रूप दिखाया है।

इसके बाद गुरुजी ने जाकर चूड़ाकर्म-संस्कार किया। ब्राह्मणों ने फिर बहुत सी दक्षिणा पाई। चारों सुंदर राजकुमार बड़े ही मनोहर अपार चरित्र करते फिरते हैं॥

एक चरित्र सुना रहे हैं गोस्वामी जी। दशरथ जी राम के दर्शन बिना भोजन नही करते हैं।

मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई॥

भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा॥॥

कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥

निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा॥

आज दशरथ जी को भगवान राम का दर्शन नही हुआ हैं। जब दशरथ जी ने पूछा कौसल्या से, राम कहाँ हैं? कौसल्या बोली की राम जी तो अपने बाल समाज के साथ खेल रहे हैं। अब दशरथ जी आवाज लगा रहे हैं। लेकिन राम जी अपने बाल समाज को छोड़कर नही आ रहे हैं। दशरथ जी कह रहे हैं हे राघव! हे राघव! आप आओ।

दशरथ जी कौसल्या से बोले की मेरे बुलाने से नही आ रहे हैं। लेकिन आप बुलाओ।

मैया ने आवाज दी हैं लेकिन मैया के बुलाने से भी ठुमक ठुमक कर और दूर जाने लगे हैं। माँ को क्रोध आ गया हैं। रामजी के पीछे भागी हैं। गोस्वामी जी कह रहे हैं- जिनका वेद ‘नेति’ (इतना ही नहीं) कहकर निरूपण करते हैं और शिवजी ने जिनका अन्त नहीं पाया, माता उन्हें हठपूर्वक पकड़ने के लिए दौड़ती हैं॥

जब माँ ने डांटा हैं तो भगवान जी एक जगह रुक गए हैं। वे शरीर में धूल लपेटे हुए आए और राजा ने हँसकर उन्हें गोद में बैठा लिया।

धूसर धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए॥

थोड़ा सा भोजन किया हैं। थोड़ा खाया हैं, थोड़ा मुख में हैं और थोड़ा सा दही-भात मुँह पर लगा हुआ हैं। और भाग लिए हैं गोदी से।

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