Sri Bhagwat Geeta ky mahatw pr kiss ny bichar wakyt kiya hai
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Answer:श्रीमद भगवद गीता के 11वें अध्याय में भगवान ने कहा है कि उन के इस दिव्य रुप को न यज्ञों द्वारा देखा जा सकता है, न तप द्वारा, न दान द्वारा, न क्रियाओं द्वारा, न अध्ययन द्वारा। केवल निरन्तर अनन्य भक्ति से ही भगवान को न केवल देखा जा सकता है, उन्हे जाना जा सकता है, उन के तत्त्व में प्रवेश भी किया जा सकता है। भगवान हरि जी को प्रणाम है। हम उनकी ऍसी ही भक्ति करें।
जो भगवान हरि में अपने मन को लगा कर, सदा उन ही भक्ति करता है, सबसे निर वैर रहता है, संग रहित रहता है - वह भगवान का उत्तम भक्त है। भगवान हरि ने निर वैर रहने को कहा है। आज कल के कलियुग में इन्सान प्रेम रहित हो चुका है। किसी भी रिशते में किसी के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति भाव नहीं है। हर समय मनुष्यों के मन में धन और इज़्ज़त की ही जंग लगी रहती है। हर रिशते में इस के चलते और कोई भी प्रेम न होने के कारण, कटुता है। वैर है। क्या कर सकते हैं फिर। ये वैर बहुत बुरी चीज़ होती है, क्योंकि मनुष्य न जाने कितना समय बर्बाद कर देता है इस के चलते। पहले ही आज इतना कुछ रहता है दिमाग पर, ऊपर से ये वैर। इसलिय, मैं यह मानता हूँ कि मनुष्य, जो है उसे वैसे ही छोड़ कर, भगवान के हवाले कर कर, भगवान की भक्ति में समय बिताय।
वैसे भी हमारे वश में बहुत कुछ नहीं होता। संग को त्याग कर, गुस्सा है उसे दूर रख कर, चिन्ताऐं हैं उन्हें दूर रख कर, भगवान की भक्ति करें। भगवान ही तो समस्याओं के समाधान हैं।
इसलिये, भगवान का यह कथन कि जो भक्त संग रहित है, निर वैर है, सदा मुझे याद करता है, वह उत्तम है। निर वैर होने का, संग त्यागने का, जो भी आज के ज़माने में जब मन और बुद्धि पर कोई काबू नहीं है, एक ही साधन है। जब हो सके हम भगवान में मन को लगाऐं।
वे परमेश्वर ही धीरे धीरे हमे इस दुख से वैराग्य युक्त कर सकते हैं। उन भगवान को प्रणाम है। उन भगवान को प्रणाम है।
आदमी जब भगवान की भक्ति करता है, तो उस समय संसार की चिन्ताओं से मुक्त होता है। बाद में भले ही वो फिर से संसारिक झमेलों में फस जाये। जितना है सके इसलिये हम भगवान की भक्ति करते रहें।
भगवान हरि ही विश्व रूप हैं। यह संसार का महा चक्र भगवान हरि ही हैं। भगवान हरि ही जन्म देते हैं, भगवान हरि ही नाश करते हैं। भगवान हरि काल का भयानक रूप धारण कर, संसार का नियन्त्रण करते हैं।
भगवान हरि ही इस संसार के आश्रय हैं। भगवान हरि ही संसार के निवास स्थान हैं। भगवान हरि के अनेक रूप हैं। भगवान हरि हर ओर हैं, हर तरह से भगवान हरि ही व्याप्त हैं। भगवान हरि समय हैं। भगवान हरि ही सभी जीवों का स्थान हैं। भगवान हरि ही सभी जीवों को आश्रय देते हैं। आप को प्रणाम है हे हरि।
आप को प्रणाम है हे हरि।
यह संसार भगवान वासुदेव के प्रकाश और तेज से परिपूर्ण है। भगवान इस संसार को न्याय और सनातन सत्यमयी रुप से प्रकाशमयी कर हर ओर व्याप्त हैं। भगवान जनार्दन की अमीट शक्ति और अनन्त वीर्य से यह संसार जगमगा रहा है। भगवान हरि ही इस संसार की अदृष्य गरमी हैं। भगवान हरि ही जीने का कारण हैं। भगवान हरि ही सुख हैं। भगवान हरि ही भरोसा हैं। भगवान हरि ही आश्वासन हैं। भगवान हरि ही वीरता हैं। भगवान हरि ही पराक्रम हैं।
हम अकेले भी हों तो भगवान केशव जी के ही समक्ष उपस्थित हैं। भगवान हरि जी को हर समय हर प्रकार से आदर देते रहना, उनकी मन ही मन सेवा करने की इच्छा करना, उन्हें प्रणाम करना, उन्हें याद करना सुख है, कर्तव्य है। अपने दुखों को भी भगवान के ही हवाले कर देना, जैसे हम खुद हैं। वैसे भी हम जो कर सकते हैं, श्री हरि उस से बेहतर कर सकते हैं। उन्हें प्रणाम है।
इसलिये भगवान हरि जी का नाम जगदीश्वर भी है क्योंकि वे इस जगत के ईश्वर हैं। जगत को आश्रय देने वाले हैं। इस संसार में सही की रक्षा करने वाले हैं और गलत का विनाश करने वाले हैं।
वे ही सनातन मानव धर्म के शाश्वत रक्षक हैं। उन्हीं से सनातन धर्म चलता है। शिवः, ब्रह्मा, विष्णु उन के रूप हैं। वो हर जगह हैं, हर समय हैं। हर ओर हैं। अनन्त शक्ति हैं। अनन्त हैं। प्रकाशमयी हैं।
वे ही वास्तव में कर्ता हैं। वे ही विकर्ता हैं। वे करुणा पूर्ण हैं। भक्तिमान मनुष्य पर परम कल्याण करने वाले हैं। उग्र रूप भी हैं और सौम्य रूप भी।
मुकुट, चक्र, गदा धारी उन अव्यय जगदीश्वर को प्रणाम है। कमीयां तो हम में बहुत हैं, लेकिन हम भगवान केशव जी की भक्ति करें।
स्वर्ग और पृथिवी के बीच हरि ही हरि हैं। हर दिशा में, हर ओर, हर प्रकार से, हरि ही हर जगह हैं। उन जनार्दन को प्रणाम हैं। उन विश्व रुप, अनन्त रूप, अनन्त नेत्र, अनन्त मुख, अनन्त वीर्य श्री वासुदेव जी को प्रणाम है।
भगवान केशव को प्रणाम है। भगवान केशव को प्रणाम है। वे हमारे अपराधों को क्षमा करें। भगवान हरि को मैं सादर दंडवत प्रणाम करता हूँ। भगवान हरि जी को मैं पुनः पुनः प्रणाम करता हूँ। भगवान केशव ही स्थान देने वाले हैं, भगवान केशव ही गति निरधारित करते हैं।
भगवान केशव में ही हम अपने मन को सदा लगाऐं। उनके अतिरिक्त और इस संसार में है हि क्या। सब फीका हैं। सब अंधकार है। सब शून्य है। एक भगवान हरि ही जी का प्रकीर्तन करके सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। संसारिक विषयों और रागों में पड़ कर तो मन में दुख घर करता है।
भगवान जनार्दन को प्रणाम है। भगवान हरि को न देख कर तो मनुष्य बार बार उनके दाँतों में पिसता है, बार बार उगला जाता है। भगवान हरि को प्राप्त कर मनुष्य सच्चा आनन्द प्राप्त करता है।
भगवान हरि हमारी रक्षा करें। हम उन की ही सन्तान हैं। हम उन की ही सत्ता हैं। वे ही हमारे राजा हैं। हम उनकी प्रजा हैं। भगवान हरि ही हमें विनाश से बचायें।
आप को प्रणाम है हे जनार्दन। आप को प्रणाम है हे प्रजापति। आप को प्रणाम है हे अनन्त। आप को प्रणाम है हे विश्वेश्वर। आप को प्रणाम है हे पुरुषोत्तम। हमारी रक्षा कीजिये।
॥ ॐ नमः भगवते वासुदेवाये ॥