sri Krishna ne pandav ko wan me aise madad kaise ki
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भीष्म ने गांधारी की इच्छा के विरुद्ध धृतराष्ट्र से उसका विवाह करवाया था। दूसरी ओर काशी नरेश की 3 पुत्रियों का अपहरण कर उनका बलपूर्वक विचित्रवीर्य से विवाह करवाया था जिसमें से एक अम्बा ने आत्महत्या कर ली थी। भरी सभा में जब द्रौपदी को निर्वस्त्र किया जा रहा था तब भीष्म चुप थे। इसी तरह दुर्योधन ने अनगिनत पाप किए हैं। कहते हैं कि दुर्योधन ने भी भानुमति से बलपूर्वक विवाह किया था। दूसरा उसने छल से भीम को कालकूट विष पिला दिया था। पांडवों को बिना किसी अपराध के उसने ही तो जलाकर मारने की योजना को मंजूरी दी थी।
दुर्योधन और उसके सभी भाई निरंकुश थे। महाभारत में दुर्योधन के अनाचार और अत्याचार के किस्से भरे पड़े हैं। दुर्योधन की जिद, अहंकार और लालच ने लोगों को युद्ध की आग में झोंक दिया था इसलिए दुर्योधन को महाभारत का खलनायक कहा जाता है। कहते हैं कि दुर्योधन कलियुग का अंश था तो उसके 100 भाई पुलस्त्य वंश के राक्षस के अंश से थे। शकुनि ने दुर्योधन को भड़काया और पांडवों को जुआ खेलने पर मजबूर किया। उन्होंने ही गांधारी के परिवार को कैद कर रखा था। जब गांधारी गर्भ से थी तब धृतराष्ट्र ने अपनी ही सेविका के साथ सहवास किया जिससे उनको युयुत्सु नाम का एक पुत्र मिला। वयोवृद्ध और ज्ञानी होने के बावजूद धृतराष्ट्र के मुंह से कभी न्यायसंगत बात नहीं निकली। पुत्रमोह में उन्होंने कभी गांधारी की न्यायोचित बात पर ध्यान नहीं दिया। इस तरह देखें तो कौरव पक्ष में कई ऐसे लोग थे, जो कि पापी और अनाचारी थे।
इस तरह हमने देखा कि पांडवों ने धर्म का मार्ग तो कभी छोड़ा नहीं था लेकिन उनके समक्ष हर बार धर्म संकट जैसी स्थिति खड़ी होती गई। दरअसल, पांडवों की नीयत कभी खराब नहीं रही। उन्होंने धर्म और सत्य के लिए ही कार्य किया, लेकिन कौरवों ने छलपूर्वक उनकी संपत्ति और स्त्री को हड़पने का कार्य किया और छलपूर्वक उन्हें वनवास भेज दिया गया। उनका प्रारंभिक जीवन भी कष्ट में बीता और 14 वर्ष वनवास में रहकर उन्होंने कष्ट ही झेला। लेकिन जब वे वनवास से लौटे तब उन्हें उनका हक मिलना था लेकिन कौरवों ने उन्हें उनका हक नहीं दिया जिसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ।
युद्ध में स्वाभाविक था कि श्रीकृष्ण को किसी एक का साथ तो देना ही था। भगवान श्रीकृष्ण के लिए दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही उनके रिश्तेदार थे। श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब दुर्योधन का दामाद था। बलराम की भी अर्जुन और दुर्योधन से गहरी रिश्तेदारी और मित्रता थी। ऐसे में बलराम के लिए तो धर्मसंकट ही था। बलराम ने श्रीकृष्ण को समझाया भी था कि तुम्हें दोनों की लड़ाई के बीच में नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन कृष्ण ने बलराम की नहीं सुनी।
श्रीकृष्ण ने दोनों ही पक्षों का विश्लेषण किया और वे जानते थे कि कौन सही और कौन गलत है? जब उन्होंने अर्जुन से कहा कि युद्ध में तुम्हें मुझे या मेरी नारायणी सेना में से किसी एक को चुनना होगा तो अर्जुन से श्रीकृष्ण को चुना था। इस चुनाव से दुर्योधन बहुत खुश हुआ था, क्योंकि दुर्योधन तो चाहता ही था कि मेरी ओर से श्रीकृष्ण की सेना लड़ाई लड़े।
इससे पहले ऐसे कई मौके आए, जब पांडवों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट किया और दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की अपमान ही किया था। कौरव पक्ष ने कभी भी श्रीकृष्ण की बातों का मान नहीं रखा, जैसे जब वे संधि प्रस्ताव लेकर गए थे तब भी दुर्योधन ने उनके समक्ष अभद्रतापूर्ण क्रोध का प्रदर्शन किया था। अत: ऐसे कई कारण थे कि जिससे यह पता चलता है कि कौरव पक्ष अधर्मी था और पांडव पक्ष धर्मी।