Sri ram chandra ji ki bathe sunkar muni parasuram ne kya prathikriya dhi
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नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥1॥
हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ही होगा। क्या आज्ञा है, मुझसे क्यों नहीं कहते? यह सुनकर क्रोधी मुनि रिसाकर बोले-॥1॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥ सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥2॥
सेवक वह है जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करके तो लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है॥2॥
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