std 9 hindi chandni raat poem meaning of 5 6 7 8 para
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चाँदनी रात कविता की व्याख्या
चारु -----------------झोंकों से॥
भावार्थ :- प्रस्तुत पदयांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी काव्य में संकलित “पंचवटी” पाठ के कवि श्रीमैथिलीशरणगुप्त द्वारा रचित है |
प्रसंग :- उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने रात्रि कालीन सौंदर्य –वर्णन करते हुए उद्धृत किया है व्याख्या :- सुंदर चंद्रमा की किरणें पृथ्वी के जल तथा स्थल दोनों में क्रीड़ा कर रही है | धवल चाँदनी से धरा और आकाश का कण – कण आच्छादित हो उठा है | भूमि के हरित दुर्वाकुरों की नुकीली सतह से वसुंधरा गद्गद होती प्रतीत होती है तथा वृक्षा मंथर गति से बह रही वायु के झोकों से झूमते-से दिखाई देते है |
पंचवटी --------होता है॥
प्रसंग :- इसमें लक्ष्मणजी के प्रहरी रूप का वर्णन हुआ है |
व्याख्या :- कवि ने जिज्ञासा प्रकट की है कि छायादार इस पंचवटी में जो सुंदर पत्तों की कुटिया बनी हुई है उसके समक्ष स्थित शुभ्र शिला (चट्टान) पर यह कौन धीर-धरे हुए निर्भीक वीर धनुष धारण करके जाग रहा है ? जबकि त्रिभुवन प्रगाढ़ निद्रा में लीन है | जो समग्ररूप से साक्षात भोगी मन्मथ (कामदेव) है तदपि योगियों – सा दृष्टिगोचर होता है | (यहाँ रामकथा के पात्र श्री लक्ष्मणजी का वर्णन हुआ है| )
किस -------- है, मन है, जीवन है॥
प्रसंग :- इन पंक्तियो में लक्ष्मणकी विशेषताओं का वर्णन हुआ है | “पंचवटी” की उपरोक्त पंक्तियों में राष्ट्रकवि ने लक्ष्मणजी की भाव – भंगिमा और मुद्रा तथा हाव- भाव का मनोहारी चित्रण किया है
व्याख्या :- कवि ने उद्धृत किया है कि निद्रा के त्याग का व्रत लिया हुआ ये वीर निरासक्त तथा वैरागी बना हुआ क्यों इस वन में प्रहरी अथवा द्वारपाल के समान प्रतीत होता है ? ये तो राजसी सुख भोगने के लायक है | इस कुटी अर्थात झोपड़ी में ऐसी कौनसी संपदा रखी हुई है जिसकी यह तन - मन जीवन लगाकर रक्षा कर रहा है ?
मर्त्यलोक-मालिन्य- ----माया ठहरी॥
प्रसंग :- इन पंक्तियों में रघुकुल तिलक श्रीराम और रघुकुलवधू सीताजी का वर्णन करते हुए लक्ष्मण की एकाग्र सेवा का कारण प्रस्तुत करते है |
व्याख्या :- राष्ट्रकवि श्रीमैथिलीशरणगुप्त ने सीताजी के प्रभाव का सुंदर वर्णन प्रस्तुत करते हुए उद्धृत किया है कि सीताजी जो साक्षात लक्ष्मीजी है तथा समस्त मृत्युलोक की मलिनता मिटाने का सामर्थ्य रखती है अपने पति श्रीराम के साथ इस कुटी में निवास कर रही है | वे रघुवंश जैसे वीरवंश की लाज अर्थात अस्मिता है | इस निर्जन और रात्रिकाल तथा राक्षस विचरण बेला में उनकी गरिमा की रक्षा करने वाला प्रहरी वस्तुत: लक्ष्मण जैसा वीर ही हो सकता है |
क्या ही स्वच्छ -------------कितने शांत और चुपचाप |
प्रसंग :- उपरोक्त पंक्तियों में राष्ट्रकवि श्रीमैथिलीशरणगुप्त ने लक्ष्मण जी के स्वयं से हुए वार्तालाप का मनभावन वर्णन प्रस्तुत किया है |
व्याख्या :- कवि कहते है कि लक्ष्मणजी स्वयं से कह रहे है कि इस नि:शब्द रात में धीरे – धीरे चलायमान स्वच्छ - सुगंधित पवन समग्र दिशाओं को आनंदित कर रही है | इस शांत और स्थिर वातावरण में भी नियति-नटी ( विधि के विधान ) के क्रियाकलाप मौन रहकर घटित होते रहते है अर्थात संसार का रचयिता सकल भावी क्रियाओं हेतु चुपचाप कार्यरत रहता है |
विशेष :- साहित्यिक खड़ी बोली में अनुप्रास और रूपक की प्रयुक्ति शांत रस के द्वारा भावात्मक शैली में पाठक को आल्हादित करती है |