stories on nature in hindi
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बाघमारा जंगल बहुत घना था। ऊंचे-ऊंचे पेड़, घनी झाड़ियां। वहां तरह-तरह के जानवर रहते थे। जंगल के निकट एक गांव था- बालालौंग। बड़ा-सा गांव था। वहां के लोग जंगल पर आश्रित थे। सभी खुशहाल थे। वे दिनभर जंगलों में घूमकर फूल, फल, बीज, पत्ता, गोंद, दातोन, लकड़ी, छाल आदि वन पदार्थ जमा करते थे। गांव में सोमवार को साप्ताहिक हाट लगता था। गांव वाले जंगल से जमा सामानों को हाट में बेचते थे और अपने लिए सामान खरीदते थे।
लेकिन इधर कुछ वर्षों से जंगल की कटाई होने लगी थी। बाहर से कुछ लोग वाहनों से जंगल में आकर मोटे-मोटे पेड़ों को कटवाकर ले जाने लगे थे। ग्रामीणों को पेड़ों की कटाई-छंटाई करने से मजदूरी मिल जाती थी। वन पदार्थ की बिक्री से कम पैसा मिलता था इसलिए गांव वाले पेड़ों की कटाई से बहुत खुश थे।
देखते-देखते जंगल के सारे पेड़ कट गए। महुआ, कटहल, आम, जामुन, सखुआ, केंद, पिआर आदि कुछ भी नहीं बचा। जंगल में हरियाली की जगह वीरानी छा गई। गांव वालों को पेड़ काटने से मिलने वाली मजदूरी बंद हो गई। जंगल से जो वन पदार्थ चुन-बीनकर लाते थे, वह भी समाप्त हो गया। आजीविका के लाले पड़ गए। उनकी स्थिति खराब हो गई। कुछ ही वर्षों में गांव की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई।
उस दिन सोमवार था। हाट में लोगों की भीड़ जुटी हुई थी। एक तरफ सब्जियां बिक रही थीं। एक तरफ मसाले की दुकानें सजी थीं, वहीं नमक बिक रहा था जिसके खरीददार अधिक थे। कुछ दुकानों में चावल, दाल और अनाज बिक रहा था। भोजन के लिए शाकाहारी और मांसाहारी हर प्रकार के सामान बिक रहे थे। जलावन बिक रहा था। लकड़ी की फल्लियां भी बिक रही थीं।
हाट में खाने के भी तरह-तरह के सामान बिक रहे थे। नीम की सेंव, पेड़ा, बताशा आदि सजे हुए थे। ढुसका और पकौड़ी की भी दुकानें थीं। चावल और उड़द दाल से बने ढुसका की तीन दुकानें थीं।
रात में सभी सो गए तो जतरू ढिबरी की रोशनी में थोड़ी देर पढ़ने बैठा। वह स्थिर मन से पढ़ रहा था। रात का वातावरण शांत था, तभी उसे पेड़ की टहनियां टूटने की आवाज सुनाई पड़ी। पेड़ की कटाई-छंटाई दिन में होती है, रात में नहीं। वह मन ही मन कुछ सोचने लगा। जतरू की आशंका सही निकली। करीब सौ गज की दूरी पर एक हाथी पेड़ की टहनियां तोड़ रहा था। हाथी काफी गु्स्से में था। जतरू समझ गया कि हाथी अब गांव के घरों को तोड़ेगा। वहां रखा हुआ मुहआ और धान खा जाएगा।
गांव में हाथी आया, सुनकर कोहराम मच गया। पिछले सप्ताह ही शिबु की पत्नी और शनिचरा के बेटे को हाथी ने मार दिया था। दोनों हाट से गांव लौट रहे थे। उनके माथे पर महुआ की पोटली थी। वे अंधेरे में हाथी को नहीं देख पाए थे। बगल से गुजरते समय हाथियों ने उन्हें रौंदकर मार डाला था।
उस दिन भी हाथियों ने दो आदमियों को कुचल दिया था। प्रेमचंद बाजार से लौट रहा था, अंधेरा होना शुरू हो गया था। उसके हाथ में किरासन तेल का लालटेन था। वह बढ़ा जा रहा था, तभी अंधेरे में उसे कोई आकृति दिखाई दी। दो हाथी चुपचाप खड़े थे। प्रेमचंद हाथियों को देखकर ठमक गया। वह पीछे मुड़कर दूसरा रास्ता पकड़ लिया। वह अभी गांव की ओर जा ही रहा था कि उसे किसी के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी- 'बचाओ-बचाओ।'
आवाज थोड़ी देर में बंद हो गई थी। प्रेमचंद समझ गया था कि हाथियों की चपेट में कोई आ गया है। हो-हल्ला सुनकर लालटेन, टॉर्च, भाला, लाठी आदि लेकर लोग वहां पहुंच गए थे। भोंदू और रकटू को हाथियों ने मार दिया था। सप्ताह-दस दिनों पर हाथियों द्वारा कोई न कोई ग्रामीण मारा जाता था। हाथी लोगों को मारते ही थे, घरों को भी तोड़ देते थे। वे घर के अंदर रखे महुआ और धान भी खा जाते थे।
शराब की महक से भी हाथी पहुंच जाते थे। वे घर में रखी शराब पी जाते थे। हाथियों के जाने-आने से खेत की फसल रौंदकर खराब हो जाती थी। खेत में धान की फसल तैयार रहने पर हाथी उन्हें भी चट कर जाते थे। जब कभी हाथी कोई नुकसान पहुंचाते थे, गांव वाले मुआवजे के लिए प्रशासन तक पहुंच जाते थे। थोड़े पड़े-लिखे नेता किस्म के लोग अपना काम-धंधा छोड़कर मुआवजा दिलवाने में लगे रहते थे। इससे उन्हें कुछ कमाई हो जाती थी। समस्या की जड़ में जाने की किसी को फुरसत नहीं थी। ऊपर ही ऊपर सारा काम हो रहा था। आखिर यह कब तक चलता? मुआवजा कोई विकल्प नहीं था।
एतवा एक समझदार युवक था। वह समझ रहा था कि मुआवजे से गांव का विकास संभव नहीं है। उसने प्रश्न उठाया कि आखिर गांव में हाथी आते क्यों है? हाथी जंगली जानवर है, इतना बड़ा जंगल छोड़कर गांव में क्यों आना चाहते हैं? किसी ने कहा- हाथी भोजन की तलाश में गांव आते हैं।
प्रेमचंद और एतवा गांव के युवा थे। हाथियों के आतंक से निपटने के लिए उन्होंने ग्रामीणों की बैठक बुलाई। सैकड़ों लोगों ने बैठक में भाग लिया। हाथियों के आतंक से निजाते पाने के लिए तरह-तरह के विचार आए।
हाथियों को गांव से दूर भगा दिया जाए।
हाथियों को जंगल में आहार मिल जाए तो गांव में आदमी के बीच नहीं आएंगे।
गांव के चारों तरह कंटीले तार लगा दिए जाएं।
हाथी भगाओ दल का गठन किया जाए, जो हाथियों को गांव में नहीं घुसने दे।
हाथियों के प्रवेश मार्गों के पहले घरों में पटाखे का भंडार रखा जाए और शाम होने पर थोड़ी-थोड़ी देर में पटाखा फोड़ा जाए।
शाम होने के बाद गांव के चारों तरफ बिना साइलेंसर की मोटरसाइकल से आवाज निकालते हुए भ्रमण किया जाए।