Hindi, asked by Manan9853, 8 months ago

Story in maithili language

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Answered by Indu1540
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Answer:

बसात –

” आइ झंझारपुर बजार मे बहुत दिनक बाद माधव झा भेटल छलाह। भेंट होइतहिँ ओ सुरु भए गेलाह अपन आन्तरिक गप्प बँटबामे। जेना-तेना छुटकारा भेटल आ हम अपनामे लगलहुँ। मुदा हुनक कहल बहुतो रास बात एखनहुँ घुरिया रहल अछि। बेरि-बेरि मोन पड़ि जाइछ माधव झाक व्यथा। माधव झाक बेटा विवेक मध्यम कोटिक छात्र छल, मुदा रहए मेहनतिआ आ तैँ ओकर आकांक्षा रहैक जे इंजीनियर बनी। माधव झा सेहो मध्यम आयक लोक, मुदा सन्तानक आकांक्षाकेँ पूरा करबाक लेल अपनाभरि प्रयास करैत रहनिहार। समाजमध्य बसात तेहन बहि रहल छैक जे जत-तत अर्थक काज। तैओ ओ अपना लेखें एहि प्रयास मे हरदम लागल रहैत छलाह जे जेना-तेना बेटाक आकांक्षा पूरा होइक।

मोन पड़ैत अछि जखनि इंजीनियरिंग पढ़ाईक जाँच-परीक्षा परिणाम आयल रहैक आ हमहीँ हुनक पुत्रक रिजल्ट देखने रहिअनि, ओ परिणाम सूनि निराश भए गेल रहथि, कारण विवेकक पोजीशन बड्ड निम्न स्तरक छलैक। परिणामक हिसाबें ओकर एडमिशन कोनो नीक इंजीनियरिंग कॉलेजमे आ मनोनुकूल प्रभाग भेटबाक सम्भावना बहुत कम रहैक। हम कहने रहयनि जे- औ जी आइ-काल्हि सभ गोटा अपन सन्तानकेँ इंजीनियरे बनएबामे व्यस्त छथि, हमरा जनैत किछु दिनमे ओकर हाल ठीक नहि रहतैक। तैँ अपन पुत्रकेँ प्रतियोगिता परीक्षाक हेतु तैआर करु आ सम्प्रति कॉमर्स रखबाक हेतु कहिऔक। हमर गप्प सुनि माधवजी तँ सहमत भेलाह मुदा पुत्रक आकांक्षा ओ नहि तोड़य चाहैत छलाह। एहि बीच पुत्र सेहो दिल्लीसँ परीक्षा द घुमि आयल रहनि, कारण जे आब तँ एडमिशनक बेर भ गेल छलैक।

ई कथा ओ माधव झा केँ सेहो कहलक, संगहि इहो जे काल्हि हम मुजफ्फरपुर जायब, जतए ओकरा कॉनसिलींग मे बजौने छैक। प्रातः ओ मुजफ्फरपुर गेल आ एम्हर चिन्तित माधवजी केँ हम कहने रहियनि जे जखनि छात्र स्वयं एतेक उत्सुक अछि तँ ओहि उत्सुकताकेँ रोकब उचित नहि।

किछु दिनक अभ्यन्तर पुनः झंझारपुर बजार मे भेटलाह। हमर जिज्ञासा पर ओ चिन्तित चित्तेँ चाहक दोकान दिस घीचैत कहलन्हि- गप्प कने माहूर भ गेल अछि आ ई गप्प ठाढ़े-ठाढ़ नहि कहि सकैत छी। दूगोट चाहक आग्रह करैत हम पूछलियनि जे कि बात छैक, अपने की कहैत छलहुँ? ओ अत्यन्त गम्भीर भ कहए लगलाह- की कहू! किछु नहि फुरा रहल अछि, एक दिस सन्तानक मोह आ दोसर दिस हमर आर्थिक स्थिति। पता नहि जे कोना दुनूक बीच सामंजस्य होएत। गप्पकेँ फरिछबैत कहलनि जे -काल्हि मुजफ्फरपुरसँ अएला पर खुशीपूर्वक कहलक जे कागज-पत्तरक कार्य भए गेल, हमर नामांकन उड़ीसाक एकटा इंजनियरिंग कॉलेज मे होएबाक अछि।

हमसभ क्षण भरिक लेल सुन्दर सपना देखनहिँ छलहुँ कि ओकर अग्रिम पंक्ति झकझोड़िकेँ राखि देलक। ओकर कहब छलैक जे एहि लेल कम सँ कम पाँच लाख टाका चाही। पाँच लाख टाकाक गप्प सुनितहिँ लागल जेना हमर शरीरसँ सबटा खून सोखि लेल गेल हो, मोनमे तत्कालहि आएल जे ने राधाकेँ नओ मन घी होएतनि आ ने राधा नचतीह। आँखिक आगाँ अन्हार भए गेल छल, आगाँ कोनो इजोत देखबामे नहि आबि रहल छल। किंकर्त्तव्यविमुढ़क स्थिति छल। मुदा बेटाक ई शब्द सुनि जे आब बैंकसभ पढ़बाक हेतु कर्ज दैत छैक, किछु आशा जागल।

हम व्यग्र भए पूछि बैसलिऐक जे – एहि हेतु हमरासभकेँ की करए पड़त? ओ सहज रूपेँ कहलक जे एहि हेतु जमीनक कागज बैंक मे जमानति रूपमे जमा करए पड़त। ई गप्प सुनि बाबूजी बजलाह कोना होएत, कारण जखन हमरा तीनू भायमे बँटवारा नहि भेल अछि तखन जमीनक कागज बैंक मे कोना जमा कएल जाए सकैछ। हमर मुँहसँ अनायास निकलि गेल जे ई तँ असम्भव अछि। आ विवेक ई गप्प सुनतहिं भनभनाइत ओतए सँ उठि चल गेल आ अपन माएसँ कहि बैसल- ‘लगैत अछि हमर कैरियर हिनके सभ जेकाँ एही खोनही मे सड़ि जाएत’ आ ई कहैत घरमे जाकेँ सूति रहल। हमर स्थिति विकट छल, ने ओहि पार ने एहि पार, बीच समुद्रमे डुबैत एकटा निरीह प्राणी, जकर जीवनक कोनो आस नहि। एतबा कहैत ओ किछु कालक हेतु रुकलाह, हम हुनका विभिन्न तरहेँ आशान्वित करैत अपन-अपन बाट धएल।

माधवजीकेँ किछु अति आवश्यक कार्यवश गाम जाए पड़लनि, जतए भेंट भए गेलखिन एकटा मित्र। मित्रक ममियौतकेँ सेहो इंजीनियरिंग पढ़बाक लेल चुनाओ भेल छलनि आ ओहो हुनके सन समस्यामे पड़ि समाधान ताकल आ नामांकन कराओल।

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