Story name:Kismet ka khelबूढ़े के बाद किसने किस्मत आजमाया?
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https://m.yo Kismat Ka Khel | किस्मत का खेल | Swami Aadhar Chaitanya
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किसी गाँव में भोला नाम का एक लकड़हारा अपनी पत्नी और अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक छोटी सी पुराणी सी झोपडी में रहता था। वह प्रतिदि जंगल में जाता, लकड़ी काटकर लाता और उसे बेचकर खाने का सामान लेकर आता था। काफी समय से उसकी यह दिनचर्या चली आ रही थी और असेही उसकी परिवार की गाड़ी चल रही थी लेकिन जीवन के हर दिन एक से तो नहीं होते।
धीरे-धीरे उसमे कार्य करने की शक्ति घटती गई और नतीजा यह हुआ कि उसे अपनी रोजी रोटी कमाने में भी परेशानी होने लगी। परेशानियों ने उसे चारों ओर घेर लिया परन्तु जीवित रहने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही है।
एक दिन रोज की तरह वह लकडिया काटने जंगल में गया। दोपहर का समय, तेज धुप थी, थोड़ी देर में उसे चक्कर आने लगा। वह एक बड़े से पेड़ के निचे बैठ गया और थकान के कारण कुछ ही देर में उसे नींद ने आ घेरा।
जिस पेड़ के निचे वह लेटा था उस पर तोतो का एक जोड़ा रहता था। उनकी खूबी यह थी कि वे मनुष्य की भाषा में बोल लेते थे। सहयोग से जिस समय लकड़हारा वहां सो रहा था उसी समय तोतो का वह जोड़ा भी वहां पेड़ पर बेठा हुआ था।
लकड़हारे को नींद में सोया देखकर उनमे से एक ने कहा, “देखो तो बेचारा कितना थक जाता है, रोज इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद भी परेशान रहता है। हमें इसकी कुछ सहायता करनी चाहिए।”
लकड़हारा नींद में था परन्तु उसने अपने पास ही किसी को बोलते सुनकर चौंककर उठ बेठा। उसे अपनी चारों ओर कोई भी न दिखाई दिया। फिर उसकी नजर ऊपर की ओर गई। तोतो के जोड़े को देखकर और उन्हें मनुष्य की भाषा में बोलते देख वह हैरत से चौंक पड़ा।
लकड़हारे को इस स्तिथि में देख उनमे से एक ने कहा, “हाँ हम ही बोल रहें हैं, हम बात कर रहें हैं कि इतनी कड़ी मेहनत करते हो तब भी परेशान रहते हो। हम सब कुछ देखते, समझते हैं। उनकी बात समझकर लकड़हारा निराशा भरी आवाज में बोला, “अब क्या करूँ मेरे भाग्य में जितना है उतना ही मिलेगा। भला कोई क्या कर सकता है?”