Story on आजादी की चाह
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Story on आजादी की चाह
आजादी की चाह नाम से ही पता चल रहा है कि आज़ादी की चाह सब को होती चाहे वह मनुष्य हो या जानवर सब अपने हिसाब से जीना चाहते है| आज़ादी से घूमना चाहते है|
यह कहानी है एक सफेद कबूतर की |
एक दिन मैं बाज़ार से सफेद कबूतर ले कर आई | मैंने उसे बहुत प्यारा सा पिंजरा बनाया और अपने घर में उसे रख दिया| मैं खाने के लिए उसकी पसंद का सब कुछ देती | लेकिन वह हमेशा चुप-चुप रहता और हमेशा उदास सा रहता|
मुझे उसे देखकर बहुत दुःख होता है कि मैं इस कबूतर से बहुत प्यार करती हूँ लेकिन यह तो मेरे साथ रहकर बिलकुल भी खुश रहता| एक दिन मैंने अपने पिता जी से पूछा कबूतर खुश क्यों नहीं रहता मैं उसका बहुत ध्यान रखती हूँ फिर भी वह दुखी रहता है| मुझे पिता जी समझाया कि उसे पिंजरे में रहना पसंद नहीं है उसे भी हम मनुष्य की तरह आज़ादी चाहिए जिस तरह तुम अपनी मर्ज़ी से घूमती हो , मस्ती करती हो |
उस दिन मुझसे एहसास हुआ और मैंने उस क्ब्तर को पिंजरे से उड़ा दिया | उस दिन वह बहुत खुश था वह ऐसे उदा उसने पीछे मुड़ के भी नहीं देखा | उस दिन मैंने बहुत अच्छी सिख सीखी की जीवन में कभी भी किसी की आज़ादी को कैद नहीं करना चाहिए|
"आजादी की चाह" कहानी हमें आजादी के महत्व को समझ|ती है
यह कहानी एक सफेद कबूतर और उसकी आजादी की है, यह कहानी एक कबूतर की है इसे एक व्यक्ति घर पर ले आता है और उसे पिंजरे में बंद कर देता है |
व्यक्ति की मंशा नेक है, कबूतर का अच्छी तरह से ध्यान रखता है परंतु कबूतर सदैव उदास ही रहता है।
यह देख कर लेखक भी चिंतित है, एक दिन लेखक इस विषय में अपने पिताजी से बात करता है, तब लेखक के पिताजी लेखक को समझाते हैं कि जीवन में सभी को अपनी आजादी अत्यधिक प्रिय होती है , इसी प्रकार कबूतर भी पिंजरे में खुश नहीं है उसे भी आजादी चाहिए।
लेखक कबूतर की स्थिति का अंदाजा लगता है,और लेखक उस कबूतर को खुशी-खुशी उड़ा देता है, वह दिन लेखक के जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन था , उस दिन में लेखक को आजादी की चाह का अर्थ समझा दिया।
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