story on aazadi ki chah
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यह घटना उस समय की है, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू किशोरावस्था में थे. उनके पिता मोतीलाल नेहरू न सिर्फ इलाहबाद के एक मशहूर बैरिस्टर थे, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे.
भारत की स्वतंत्रता की मुहिम में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, जिसे देख बालक नेहरू बहुत प्रभावित थे. धीरे-धीरे वे भी परतंत्रता और स्वतंत्रता के जीवन में अंतर को समझ रहे थे.
उन दिनों उनके घर में पिंज़रे में बंद एक तोता था. यह तोता उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने पाला था.
एक दिन शाम को जब मोतीलाल नेहरू वापस घर आये, तो देखा पिंज़रे में तोता नहीं है. उन्होंने अपने नौकर को बुलाकर तोते के बारे में पूछा. नौकर ने बताया कि वह तोता जवाहर ने उड़ा दिया.
यह सुनकर मोतीलाल नेहरू बहुत नाराज़ हुए. उन्हें वह तोता बहुत प्रिय था. उन्होंने तुरंत बालक नेहरू को बुलवाया.
बालक नेहरू पिता के सामने हाज़िर हुए. मोतीलाल नेहरू ने गुस्से में उनसे पूछा, “तुमने मेरा तोता क्यों उड़ा दिया जवाहर?”
“पिताजी! पूरे भारत देश की जनता की तरह वह तोता भी आज़ादी चाहता था. इसलिए मैंने उसे आज़ाद कर दिया. मैं ठीक किया न पिताजी?” बालक नेहरू ने भोलेपन से उत्तर दिया.
मोतीलाल कुछ देर तक बालक नेहरू का मुँह देखते रह गए. लेकिन बाद में मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए कि बालक नेहरू आज़ादी की मनोभावना को समझने लगे हैं.
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