Hindi, asked by hellobutwhoru, 4 months ago

story on budi kaki 500 words​

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Answered by anantfr1425
8

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आधुनिक हिन्दी साहित्य में उपन्यास सम्राट के नाम से प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचन्द की कहानी बूढ़ी काकी ‘मानवीय करूणा’ की भावना से ओत-प्रोत कहानी है। इसमें लेखक ने ‘बूढ़ी काकी’ के माध्यम से समाज परिवार की उस समस्या को उठाया है, जहां वृद्धजनों से उनकी जायदाद-संपत्ति लेने के बाद उनकी उपेक्षा होने लगती है। केवल इतना ही नहीं, बात-बात पर उन्हें अपमानित और तिरस्कृत किया जाता है, भरपेट भोजन तक भी नहीं मिलता। सामाजिक यथार्थ के माध्यम से मुंशी प्रेमचन्द ने मनुष्य की स्वार्थी भावनाओं का घृणित एवं वीभत्स रूप चित्रित किया है।

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कहानी का प्रारम्भ करते हुए लेखक ने मानव-जीवन के वृद्धावस्था और बाल्यावस्था को एक दृष्टि से देखा है। इसमें कोई शक भी नहीं है। बूढ़ी काकी में जीभ के स्वाद के अलावा अन्य कोई इच्छा नहीं थी। उसे विधवा हुए पांच वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है। उसके जवान बेटे भी असमय मर चुके थे। इस संसार में ऐसा कोई नहीं था, जिसे बूढ़ी काकी अपना कह सके। था तो केवल उसका दूर का भतीजा बुद्धिराम। भलेमानुष पण्डित बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के सामने लम्बे-चैड़े वायदे कर उसकी सब संपत्ति अपने नाम लिखवालीं पैसे का लालची बुद्धिराम बहुत जल्दी ही बदलने लगा। बुद्धिराम की पत्नी रूपा भी व्यवहार से कठोर थी लेकिन ईश्वर से अवश्य उसे डर लगता था। इसलिए वह बूढ़ी काकी से दुव्र्यवहार करते समय डरती थी।

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बुद्धिराम और उसकी पत्नी का व्यवहार बूढ़ी काकी के प्रति दिनोंदिन कठोर होता चला गया यहां तक कि जिस बुढ़िया की जायदाद से सौ-डेढ़ सौ रूपये प्रतिमाह की आमदनी थी, वह भोजन तक के लिए तरसने लगी। बूढ़ी काकी जीभ के स्वाद के आगे विवश होकर रोने-चिल्लाने लगती थी। हाथ-पैरों से लाचार बुढ़िया जमीन पर पड़ी रहती और अपने प्रति उपेक्षा भरे व्यवहार पर चीखती-चिल्लाती। बुद्धिराम के दोनों बेटे भी उसे चिढ़ाने-परेशान करने में खुश होते थे। यहां तक कि वे दोनों उस बुढ़िया के ऊपर अपने मुंह का पानी भी उड़ले देते थे। लेकिन बुद्धिराम की बेटी लाडली ‘बूढ़ी काकी’ से बहुत प्यार करती थीं लाडली भाइयों से तंग होकर बूढ़ी काकी की कोठरी में आ जाती थी और चना-चबाना जो कुछ भी होता था, मिल-बांटकर बूढ़ी काकी के साथ खाती थी।

कुछ समय बाद बुद्धिराम के बेटे मुखराम की सगाई थी जिसमें भाग लेने के लिए काफी मेहमान आए हुए थे। सारे गावं में खुशी का माहौल था। चारपाइयों पर आराम कर रहे मेहमानों की नाई सेवा कर रहे थे। कहीं भाट प्रशंसा में यश-गान कर रहे थे। रूपा को भी औरतों से फुरसत नहीं थी। दौड़-दौड़कर इधर से उधर भाग रही थी। हलवाई भट्टियो पर काम कर रहे थे। कहीं सब्जियां पक रही थीं तो कही मिठाइयां बन रही थीं। खाना पकने की सुगन्धि सारे घर में फैल चुकी थी। भीतर ही भीतर बूढ़ी काकी का मन भी लालचा रहा था। परन्तु वह सोच रही थी कि जब उसे भरपेट भोजन ही नहीं मिलता तो मिठाई ओर कचैड़ी कौन खिलाएगा। रह-रहकर उसकी जीभ लपलपा रही थी। और दिन होता तो वह रो-चीखकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती लेकिन अपशकुन के भय से वह चुपचाप बैठी थी। धीरे-धीरे उसका मन बेकाबू होता चला गया। और उकडू बनकर हलवाई के कहाड़े के पास जाकर बैठ गई। अचानक रूपा की नजर बूढ़ी काकी पर पड़ी तो आग बबूला हो उठी और बूढ़ी काकी को खूब भला-बुरा कहा। अपमानित होकर भी बूढ़ी काकी कुछ नहीं बोली और रेगं ती हुई चुपचाप अपनी कोठरी में चली गयी।

काफी समय बीत जाने के बाद भी बूढ़ी काकी की किसी ने सुध नहीं ली तो उसका मन बेचैन हो उठा। तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगे। सभी लोग खा-पी चुके होंगे। तेरी याद किसी को नहीं आएगी। इसी बीच उसकी भूख जोर पकड़ने लगी और हाथो के बल सरकती हुई लोगों के बीच जाकर पत्तल पर बैठ गयी। लोग आश्चर्य से देख ही रहे थे कि बुद्धिराम की नज़र उस पर पड़ गयी। उस दयनीय बूढ़ी काकी को बुद्धिराम ने दोनों हाथों से उठाकर कोठरी में लाकर पटक दिया और खूब भला-बुरा कहा। वह यह भूल गया कि आज उसे जो सम्मान मिल रहा है, वह सब बूढ़ी काकी की संपत्ति के कारण ही है।


hellobutwhoru: I need story not summary
anantfr1425: ohhh
anantfr1425: sorry
anantfr1425: I am setting my answer
Answered by dhirajmakkar
2

Answer:

बुढ़ापे अक्सर बचपन के पुनः प्रत्यावर्तन होता है स्वाद की उसकी भावना को छोड़कर, वृद्ध चाची ने उसके सभी इंद्रियों का उपयोग खो दिया था। उसकी दृष्टि और अंगों ने इसे एक दिन कहा था। उनके कष्टों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए रोने की बजाय उनका कोई मतलब नहीं था य

उसके पति ने इस दुनिया को पहले बहुत पहले छोड़ दिया था। बेटों का भी निधन हो गया। अब उसके पास भतीजे के अलावा कोई नहीं था। उसने अपनी सारी संपत्ति उसके पास रखी थी। भतीजे ने अपने नाम पर संपत्ति की इच्छा के बारे में लंबा वादा किया था, लेकिन ये वादे पोर्टर्स डिपो पर ब्रोकरों द्वारा किए गए सम्मान के शब्दों के समान थे।

चाची परिवार में केवल एक ही व्यक्ति का शौक था - बुद्धिरम की छोटी बेटी, लाडली लड़की, जो उसके दो भाइयों से डरती थी, बूढ़ी औरत के कमरे में मिठाई के अपने हिस्से का हिस्सा लेना पसंद करती थी - यह उसके लिए सही ठिकाने थी हालांकि, खाद्य और मिठाई के लिए बूढ़ी औरत की लालसा के कारण सुरक्षा कुछ हद तक महंगा साबित होगी और उसे एक हिस्सा दिया जाना था। लेकिन, यह एकमात्र जगह थी, जो अपने भाइयों से लाड़ली सुरक्षा की पेशकश की थी। इस सहजीवी संबंध दोनों के बीच एक स्नेही बंधन में ripened था।

यह देर शाम थी। संगीतकार बुद्धिरम के घर में "शहनाई" खेल रहे थे और गांव के आंखों वाले बच्चों के बड़े समूह संगीत का आनंद ले रहे थे। मेहमान झुंड पर आराम कर रहे थे एक कवि ने मेहमानों को अपनी छंदों के साथ चित्ताकर्षक बनाया; समय-समय पर कुछ मेहमानों ने "वाह! वाह !!"

यह बुद्धिरम के सबसे बड़े बेटे, मुहर्रम का उद्घाटन समारोह था, और इस कारण से उत्सव का आयोजन किया गया। महिलाएं घर के अंदर गायन कर रही थीं जबकि रुपा एक समारोह की तैयारी में व्यस्त थीं। स्टोव पर बहुत से जहाज थे और मेहमान के लिए एक मनोरम किराया पकाया जा रहा था; एक टेंटलाइजिंग सुगंध घर पर व्याप्त हो गया।

बूढ़ी चाची अपने कमरे में बेहोश बैठी हुई थी और उसकी नाक तक पहुंचने वाले सुगंध ने उसे बेचैन बनाया। वह सभी प्रकार के उदास विचारों से परेशान थीं: "यह संभव नहीं है कि वे मुझे भोजन प्रदान करेंगे, यह बहुत देर हो चुकी है, कोई भी भोजन के साथ नहीं आया है, ऐसा लगता है कि सभी ने अपना भोजन पूरा कर लिया है और मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा है।" इन उदास विचारों ने चाची को दुखी बनाया और वह आक्रोश करना चाहता था, लेकिन उसने अपने आंसुओं को ऐसे पवित्र आयोजन को अपवित्र करने के डर से पी


hellobutwhoru: I need full story
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