story on चतुर कौआ in hindi story
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चतुर कौआ
गोदावरी नदी के तट पर सेमल का एक पेड था जो बहुत ही विशाल, घना और हरा-भरा था। गोदावरी नदी का जल और सेमल वृक्ष की छाया पक्षियों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध होती थी । वे नदी के शीतल जल से अपनी प्यास बुझाकर सेमल की छाया में विश्राम करके पुन : तरोताजा हो जाते थे । तदुपरांत अपनी यात्रा पर निकल पड़ते थे । सेमल का वृक्ष घना होने के कारण विभिन्न प्रकार के पक्षी इसकी शाखाओं पर घोंसले बनाकर रहते थे । इन्हीं पक्षियों में लघुपतनक नामक एक कौआ भी था । उसकी सूझबूझ तथा दूरदृष्टि का लोहा सभी पक्षी मानते थे । उस क्षेत्र में पक्षियों की बहुलता होने के कारण शिकारियों का दल प्राय : वहां से गुजरता रहता था । इस कारण सभी पक्षी बहुत डरे-डरे से रहते थे । लेकिन लघुपतनक की उपस्थिति उनमें एक हद तक निडरता का संचार भी करती रहती थी ।
क्योंकि वह आसपास के वातावरण पर चौकस दृष्टि रखता था और पक्षियों के हितार्थ काफी सचेत रहता था । एक दिन सुबह-सवेरे लघुपतनक कौए को दूर से आता एक बहेलिया दिखाई दिया । वह उसी सेमल के वृक्ष की ओर आ रहा था । उसे देख कौआ सतर्क हो गया । लेकिन जब बहेलिया वृक्ष से आगे बढ़ गया, तब कौए ने राहत की सांस ली । फिर भी उसकी निगाहें बहेलिए का पीछा करती रहीं । थोडी दूर आगे जाकर बहेलिए ने चावल के कुछ दाने जमीन पर बिखेरकर उस पर अपना जाल बिछा दिया । तदुपरांत वह एक अन्य पेड़ की ओट में छिपकर खड़ा हो गया । यह देख कौआ उस बहेलिए से कुछ दूरी पर स्थित एक वृक्ष पर बैठकर बहेलिए की गतिविधियों पर नजर रखने लगा । कुछ समय पश्चात आकाश में उड़ता हुआ कबूतरों का एक दल गोदावरी नदी का जल पीने के लिए नीचे उतरा । कबूतरों के उस दल का मुखिया चित्रग्रीव लघुपतनक कौए का मित्र था । उस बहेलिए ने जब कबूतरों का दल देखा तो उसका मन बल्लियों उछलने लगा । कबूतरों ने जमीन पर बिखरे हुए चावल के दाने देख लिए थे । वे उन्हें खाने के लिए लालायित हो उठे ।वे स्वत : ही उन चावलों की ओर बढ़ चले । यह देखकर कबूतरों का मुखिया बोल उठा,’ मित्रो! आप लोग उधर कहां जा रहे हो?’ इस पर एक कबूतर ने उत्तर दिया, ‘ उधर चावलों के दाने पड़े हैं । हम उन्हें खाने के बाद ही शीतल जल ग्रहण करेंगे । ‘ ‘ नहीं मित्रो! इन चावलों को खाने से जान जाने का खतरा है । जरा सोचो.. .इस स्थान पर चावल कहां से आए । ऐसे चावल तो कोई बहेलिया ही बिखेर सकता है । अत : लोभ से बचों । ‘ ‘ लेकिन मुखियाजी! पापी पेट कैसे भरेगा? चावल के दानों को देखकर तो मेरी भूख और ज्यादा बढ़ गई है?’ दूसरा कबूतर बोला । ‘ तुम्हारी बात ठीक है! लेकिन बुद्धि से काम न लेना मूर्खता होगी ।लोभ से सदैव हानि ही होती है । ‘ चतुर कौए ने भी कबूतरों को ऐसा न करने की चेतावनी दी । लेकिन लालच में फंसे सभी कबूतरों ने अपने मुखिया व कौए की एक न सुनी और चावलों पर टूट पड़े चित्रग्रीव को भी मन मारकर उनका साथ देना पड़ा, परिणाम तत्काल सामने आया। पेड़ की ओट में छिपे बहेलिए ने कबूतरों को चावल खाते देख अपने जाल की डोरी खींच ली। सभी कबूतर जाल में फंस गए। मुखिया ने अपने साथियों को लोभ से बचाने की भरपूर कोशिश की थी। लेकिन लोभी कबूतर चावलों के लालच में पड़कर बहेलिए के जाल में फंस गए थे। अपने साथियों और खुद को जाल में फंसा पाकर मुखिया इस मुसीबत से मुक्ति पाने की योजना बना रहा था। अचानक उसे अपने मित्र हिरण्यक चूहे की याद आई जो इस विपत्ति में उनकी मदद कर सकता था।अत: वह अपने साथियों से बोला, ‘जो होना था वह हो चुका। अब हमें धैर्य से काम लेना है और इस विपत्ति से बचने का एक ही उपाय है, अपने सम्मिलित प्रयास से इस जाल को लेकर उड़ चलो, ताकि हम बहेलिए के हाथ न लग पाएं । पास ही के चित्रवन में रहने वाला हिरण्यक चूहा मेरा मित्र है । हम उसके पास चलते है? वही हमें इस जाल से मुक्तं कर सकता है ।’ मुखिया की बात सुनकर सभी कबूतरों में नया जोश भर गया और उन्होंने आपस में एक-दूसरे को इशारा किया । फिर सम्मिलित प्रयास से जोर लगाकर जाल को लेकर उड़ गए । जो बहेलिया इतने सारे कबूतरों को जाल में फसौ देखकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था, उन कबूतरों को जाल लेकर उड़ते देख घबरा गया ।वह अपनी लाठी लिए आश्चर्यचकित-सा उनके पीछे भागा । परंतु कबूतरों के साहस और हिम्मत के आगे उसकी चाल विफल हो गई । वह थक-हारकर चला गया । उधर काफी दूर जाकर चित्रग्रीव ने कहा, ‘ मित्रो! अब हम लोग नीचे उतरेंगे । ‘ सारे कबूतर जाल सहित नीचे उतर आए । दूर फिर वे सभी हिरण्यक चूहे के पास पहुंचे । चित्रग्रीव ने अपने मित्र को आवाज दी, ‘ मित्र, हिरण्यक! जरा बाहर आना । आज मैं तुम्हारी सेवा लेने के उद्देश्य से आया हूं । ‘ हिरण्यक चूहा बड़ा विवेकशील और बुद्धिमान था । वह अपने मित्र चित्रग्रीव की आवाज पहचान कर फौरन बिल से बाहर आ गया चित्रग्रीव ने उसे अपने साथियों के जाल में फंसने की कहानी बताते हुए कहा, ‘ इस मुसीबत से हमें अब तुम ही मुक्ति दिला सकते हो । ‘ हिरण्यक बोला, ‘ मित्र घबराओ नहीं । मैं शीघ्र ही तुम सबको इस जाल से मुक्त करता हूं। तुम्हारे साथी मेरे भी तो मित्र हुए । फिर उसने एक-एक करके सभी कबूतरों के बंधन काट दिए । सभी कबूतर मुक्त होते ही हिरण्यक और चित्रग्रीव की प्रशंसा करने लगे और अपने किए की क्षमा मांगने लगे । उन्हें चतुर कौए लघुपतनक की बात भी याद हो आई, जिसकी सलाह न मानकर उन्होंने अपने प्राण संकट में डाल दिए थे । तब हिरण्यक ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘ जो हुआ उसे भूल जाओ । लेकिन इस घटना से सबक लो कि अच्छी सलाह पर अमल करने में ही भलाई है । ‘