English, asked by palk1, 1 year ago

story on guru and shishya


Anonymous: in which language...???english or hindi?
palk1: hindi
Anonymous: hmm.

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Answered by disha1804
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एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि  जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’

गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-

पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं|

यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ|ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’

उन्होंने जो कहानी सुनाई,वह इस प्रकार थी-

एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों नें अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए |गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे |सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं| वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा |’

अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे |लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं ,उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया |वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे |

अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था | अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके |

वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी|

पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ  नहीं  दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी |अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये |गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा- ‘पुत्रो,ले आये गुरुदक्षिणा ?’तीनों ने सर झुका लिया |गुरू जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा- ‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये |हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं

’गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले- ‘निराश क्यों होते हो ?प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो |’तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये |

वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला-‘गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं |आप का  संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक-सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है |

गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके |

दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम  निर्विक्षेप,स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें |’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था |

अंततः,मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी |सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है |वस्तुतः,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है-ऐसा विद्वानों का मत है |
Answered by Anonymous
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चाणक्य Chanakya को एक योग्य शिष्य की तलाश थी , उनको घनानंद के दुशाशन का अन्त करना था .खोज में उनका परिचय चंद्रगुप्त से हुआ . चाणक्य Chanakya उसकी चतुराई पर बहुत चकित थे .
चंद्रगुप्त Chandragupt को चाणक्य ने अपना शिष्य स्वीकार कर लिया . चंद्रगुप्त के माता पिता से चाणक्य ने चंद्रगुप्त को तक्षयशील भेजने का प्रस्ताव रखा . स्वीकृति मिलने पर वह चंद्रगुप्त को तक्षयशील ले गए . अपने निर्देशन में चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अस्त्र सस्त्र की शिक्षा दी .
अपने गुरु की खोज और शिक्षा को सफल करने के लिए चंद्रगुप्त Chandragupt ने बहुत मेहनत की . सुयोग्य गुरु पाकर चंद्रगुप्त ने सफलता ( Success ) की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दी .धीरे धीरे चंद्रगुप्त सम्पूर्ण भारत का सम्राट बन गया . चंद्रगुप्त ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र बनायीं .
राजगद्दी पर बैठने का समारोह बनाया जाने को था लेकिन गुरु चाणक्य ने इसका विरोध किया . चंद्रगुप्त के मन में अपने गुरु के इस विरोध को लेकर शंका तो hui पर उसे भ्रम भी बना रहा . बाद में समारोह न मनवाने का कारण भी साफ़ हो गया . इस समारोह में पराजित घनानंद के स्वामिभक्त मंत्री ने अंतिम प्रयास किया जिससे हारा हुआ राज्य फिर से प्राप्त किया जा सके .
चाणक्य ने इस षड्यन्द्र का भंडाफोड़ कर दिया . तब चंद्रगुप्त ने समझ की उसका विरोध गुरुदेव क्यों कर रहे थे . इससे चंद्रगुप्त के मन में गुरु चाणक्य के प्रति विश्वास और बढ़ गया .
चंद्रगुप्त को राजा मानाने वाले चाणक्य हमेशा राज्य से दूर रहते वह नगर से दूर कुटिया बनाकर रहते . उन्होंने सतर्कता पूर्वक राज्य को सुरक्षा प्रदान की और लोक कल्याण किया .चाणक्य ने चाणक्य नीति ( Chanakya Niti ) द्वारा एक साधारण से बालक को पुरे भारत का राजा बना दिया 


Anonymous: if u r satisfied with my answer mark as brainliest..
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