Story on patro ki bhumika
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(Story on..)
पत्रों की भूमिका
भले आज के डिजिटल युग में पत्र अप्रासंगिक हो गए हों और अपने संदेशों को आदान प्रदान के लिये ईमेल, व्हाट्सएप और S.M.S. जैसे आधुनिक साधन लोकप्रिय हो गए हों, लेकिन पत्रों का अपना ही एक अलग महत्व था और रहेगा।
पत्रों से जो आत्मीयता का बोध होता था, वैसी आत्मीयता का अनुभव ईमेल, व्हाट्सएप आदि में नहीं होता। एक समय था जब अपने प्रियजन के पत्र का कई दिनों से इंतजार रहता था और डाकिया अपने घर के सदस्य की तरह लगता था। डाकिये की सूरत देखते ही मन उल्लासित हो जाता था कि शायद अपने किसी प्रियजन का पत्र आया हो और जब वो पत्र आता था तो उसको पढ़ कर मन अंदर तक पुलकित हो जाता था, आत्मीयता से भर जाता था। बार-बार उस पत्र को पढ़ते थे।
पत्रों को लिखने की भी अपनी एक कला होती थी और लोग अपने विचारो, अपनी भावनाओं और अपनी संवेदनाओं को पूरी तरह अपने पत्र में उड़ेल देते थे। तब पत्रों का संसार अलग ही था। अपने विचारों अपनी भावनाओं को संप्रेषित कर शब्दों के माध्यम से पत्र में उकेर कर, फिर उसे कोमलता से लिफाफे में रखकर पत्र पेटी में डाल कराने का एक अलग ही अनुभव था। उसके पश्चात उस पत्र के जवाब के इंतजार का इंतजार करना और दिन गिनना एक बेचैनी भरा सुखद एहसास देता था। इंतजार की वो घड़ियां एक अनोखी होती थीं।
आज के समय में हमें अपनी संदेश का तुरंत जवाब मिल जाता है, इस कारण उस जवाब में वह आत्मीयता का बोध नहीं होता जो पहले पत्र में होता था। पहले पत्र लिखने वाला काफी समय लेता था और अपनी सारी भावनाएं पत्र में उड़ेल देता था, जो पढ़ने वाला महसूस कर लेता था और वो जवाब भी उसी अंदाज में देता था। जबकि आज तुरंत जवाब देते हैं और एक औपचारिकता निभाते हैं इसलिए इसलिये न आज संदेश लिखने में वो आत्मीयता न उसका जवाब पाने में आत्मीयता मिलती है।
इसलिये पत्रों का महत्व पहले हमेशा था और आगे भी बना रहेगा, शायद कभी पत्रों का वो युग वापस लौट कर आये।
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