story on try and try until you succeed in hindi
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सफलता हासिल करने का सूत्र – एक समय की बात है, राजा रामदत्त शिकार के लिए जंगल में पहुंचे। वहाँ एक सुंदर से हिरण के पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया। हिरण के पीछे-पीछे दौड़ते हुए राजा अचानक से एक गाँव में जा पहुंचे। वहाँ वह एक मूर्तिकार को मूर्तियां बनाते देख आश्चर्यचकित रह गये। इतनी शानदार मूर्तियां आज से पहले राजा ने पहले कभी नही देखी थी। राजा ने मूर्तिकार से कहा, ”मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी भी एक सुंदर सी मूर्ति बना दो।”
मूर्तिकार ने कहा – ठीक है महाराज। मैं आपकी मूर्ति अवश्य बनाऊंगा। मूर्तिकार ने अगले ही पल से राजा की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू कर दिया। कई दिन बीत गये, किंतु मूर्ति तैयार नहीं हुई। मूर्तिकार रोजाना कई मूर्ति बनाता फिर उसे तोड़ देता था। क्योकि जैसी मूर्ति वो बनाना चाहता था, वैसी उससे बन नही रही थी। अंत में मूर्तिकार थक हार के निराश हो कर मूर्तियों के पास बैठ गया। तभी अचानक से उसकी नज़र दीवार पर चढ़ रही एक चींटी पर पड़ी, जो बार-बार चढ़ते-चढ़ते गिर रही थी और अपने प्रयास में असफल हो रही थी। वह चींटी दरअसल, एक गेहूँ के दाने को दीवार के उस पार ले जाना चाहती थी।
मूर्तिकार भी यह दृश्य बड़े गौर से देखे जा रहा था. पर चींटी बार-बार गिरने के बाद भी सफलता के प्रयास में लगी हुई थी। चींटी हार मानने को तैयार ही नही थी। आखिरकार चींटी को सफलता मिल ही गई और वह दीवार के उस पार चली गई। यह सारा दृश्य देखकर मूर्तिकार ने सोचा – जब यह छोटी सी चींटी निरंतर प्रयास से सफलता प्राप्त कर सकती है, तो फिर मैं अपने कार्य में सफल क्यों नही हो सकता!
अब मूर्तिकार को सफलता का सूत्र मिल चुका था। मूर्तिकार दुगुने जोश के साथ फिर से राजा की मूर्ति बनाने में जुट गया। उसने एक बार फिर मूर्ति बनाने का सामान एकत्र किया और पूरी लगन के साथ मूर्ति बनाई। इस बार मूर्ति बिल्कुल उसकी कल्पना के अनुरूप बनी थी। राजा रामदत्त ने जब अपनी सुंदर सजीव मूर्ति को देखा तो बड़े खुश हुए। राजा ने खुश होकर मूर्तिकार को सम्मान और धन दोनों से नवाजा।
दोस्तों, अपने कार्य के प्रति अगर हमारी इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो सफलता भी हमारे साथ होगी। बस ज़रूरत है दृढ़ निश्चय और निष्ठा की, जिस तरह उस छोटी सी चींटी को अपने कार्य में सफलता के प्रति सच्ची निष्ठा थी। आप चाहे कितनी बार भी असफल क्यों ना हो जाओ, लेकिन फिर भी सफलता के प्रति हमेशा प्रयासरत रहो।
मूर्तिकार ने कहा – ठीक है महाराज। मैं आपकी मूर्ति अवश्य बनाऊंगा। मूर्तिकार ने अगले ही पल से राजा की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू कर दिया। कई दिन बीत गये, किंतु मूर्ति तैयार नहीं हुई। मूर्तिकार रोजाना कई मूर्ति बनाता फिर उसे तोड़ देता था। क्योकि जैसी मूर्ति वो बनाना चाहता था, वैसी उससे बन नही रही थी। अंत में मूर्तिकार थक हार के निराश हो कर मूर्तियों के पास बैठ गया। तभी अचानक से उसकी नज़र दीवार पर चढ़ रही एक चींटी पर पड़ी, जो बार-बार चढ़ते-चढ़ते गिर रही थी और अपने प्रयास में असफल हो रही थी। वह चींटी दरअसल, एक गेहूँ के दाने को दीवार के उस पार ले जाना चाहती थी।
मूर्तिकार भी यह दृश्य बड़े गौर से देखे जा रहा था. पर चींटी बार-बार गिरने के बाद भी सफलता के प्रयास में लगी हुई थी। चींटी हार मानने को तैयार ही नही थी। आखिरकार चींटी को सफलता मिल ही गई और वह दीवार के उस पार चली गई। यह सारा दृश्य देखकर मूर्तिकार ने सोचा – जब यह छोटी सी चींटी निरंतर प्रयास से सफलता प्राप्त कर सकती है, तो फिर मैं अपने कार्य में सफल क्यों नही हो सकता!
अब मूर्तिकार को सफलता का सूत्र मिल चुका था। मूर्तिकार दुगुने जोश के साथ फिर से राजा की मूर्ति बनाने में जुट गया। उसने एक बार फिर मूर्ति बनाने का सामान एकत्र किया और पूरी लगन के साथ मूर्ति बनाई। इस बार मूर्ति बिल्कुल उसकी कल्पना के अनुरूप बनी थी। राजा रामदत्त ने जब अपनी सुंदर सजीव मूर्ति को देखा तो बड़े खुश हुए। राजा ने खुश होकर मूर्तिकार को सम्मान और धन दोनों से नवाजा।
दोस्तों, अपने कार्य के प्रति अगर हमारी इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो सफलता भी हमारे साथ होगी। बस ज़रूरत है दृढ़ निश्चय और निष्ठा की, जिस तरह उस छोटी सी चींटी को अपने कार्य में सफलता के प्रति सच्ची निष्ठा थी। आप चाहे कितनी बार भी असफल क्यों ना हो जाओ, लेकिन फिर भी सफलता के प्रति हमेशा प्रयासरत रहो।
samiyaJaved:
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