Story related to dukh ka Adhikar class 9th
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उस पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा. वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी. उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आंखों से आंसू न रुक सकते थे.
लेखक समाज को यही संदेश देना चाहते हैं कि गरीबों की मजबूरी को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। यह सत्य है कि दुख समान रूप से सबके जीवन में आता है। सभी अपनों के जाने का दुख मनाना चाहते हैं पर अपनी आर्थिक स्थिति के कारण मना नहीं पाते। भारत जैसे देश में बहुत से लोग हैं, जिन्हें यह समाज दुख मनाने का अधिकार भी नहीं देता है।
दुख का अधिकार' पाठ के माध्यम से लेखक यशपाल जी ने समाज में उपस्थित अंधविश्वासों पर प्रहार किया है। लोगों की गरीबों के प्रति मानसिकता को भी उन्होंने इस कहानी के माध्यम से दर्शाया है। किसी भी भू-भाग में चले जाएँ अमीरी और गरीबी का अंतर आपको स्पष्ट रूप से दिख जाएगा।
दुःख का अधिकार पाठ की कहानी पढ़कर आप समाज के लिए क्या करना चाहेंगे?
दुखी होने का भी एक अधिकार होता है। लेखक संभ्रांत महिला और गरीब बुढ़िया-दोनों के दु:ख मनाने के ढंग को देखकर सोचता है-दु:खे प्रकट करने के लिए और मृत्यु का शोक प्रकट करने के लिए भी मनुष्य को सुविधा होनी चाहिए। उसके पास इतना धन, साधन और समय होना चाहिए कि दु:ख के दिनों में उसका काम चल जाए। डॉक्टर उसकी सेवा कर सकें।
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