story writing in hindi
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दो औरतों में से बच्चे की असली माँ की पहचान
सम्राट का कर्तव्य पृथ्वी पर भगवान की छाया के रूप में काम करते हुए अपने राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित करना, कमजोरों की रक्षा करना और दुष्टों को दंड देना होता है। अकबर को अपनी निष्पक्षता पर गर्व था। आखिरकार वह शहंशाह था। दुनिया उसकी शरण में थी।
एक दिन उसकी शाही अदालत में दो औरतें एक बच्चे के साथ आयीं। वें दोनों फूट-फूट कर रो रही थी। पहली औरत ने कहा ”जहांपनाह! यह बच्चा मेरा पुत्र है। मैं बहुत बीमार थी और इसकी देखभाल नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने इसे अपनी सहेली के पास छो़ड दिया था। किन्तु अब जब मैं ठीक हो गई हूं, तो यह मुझे मेरा पुत्र देने से इंकार कर रही है।“
इस पर दूसरी औरत ने चीखकर अकबर से कहा, ”मेरे भगवान! यह झूठ बोल रही है। यह मेरा पुत्र है और मैं इसकी मां हूं। यह औरत इस तरह की कहानियां सुनाकर मेरे पुत्र को ले जाना चाहती है।“
अकबर यह निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि औरतों को कैसे न्याय दिलाया जाए। उसने अपने सबसे बुद्धिमान मंत्री बीरबल को अदालत में बुलाया बीरबल ने एक के बाद एक दोनों औरतों की बात सुनी और सिर हिलाया। फिर वह अकबर की ओर झुका और बोला, ”जहांपनाह! दोनों ही औरतें इस बच्चे की मां होने का दावा कर रही है।। इसलिए हम इन दोनों को बच्चा दे देते हैं।“ बादशाह के साथ-साथ अदालत ने भी बीरबल को आष्चर्य से देखा। बीरबल ने द्वारपालस से कहा, ”इस बच्चे को पकड़कर शाही कसाई को दे दो और इसे दो भाग करने को कहो।“ जब द्वारपाल ने पहली औरत के हाथ से बच्चे को लिया तो वह जोर से चिल्लाई और बादशाह के पैरों पर गिर गई। उसने विनती की, ”दया मेरे प्रभु! मेरे बच्चे को नुकसान मत पहुंचाओ। दूसरी औरत को ही मेरे बच्चे को रखने दो। मैं अपनी शिक़ायत वापिस लेती हूं। मैं अपने बच्चे से बहुत प्यार करती हूं और उसे हानि पहुंचते हुए नहीं देख सकती।“
बीरबल मुस्कराया और अकबर से बोला, ”महाराज! यही बच्चे की असली मां है। एक मां कुछ भी सहन कर सकती है, किन्तु उसके बच्चे को कोई हानि पहुंचाए, यह वह सहन नहीं कर सकती।“
अदालत में मौजूद हर किसी ने बीरबल की बुद्धि की सराहना की। अकबर ने बीरबल को इस समस्या को सुलझाने के लिए सुन्दर उपहार दिया।