Stree gharki laxmi hoti hai.. essay in hindi
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जहां घरों में लड़के-लड़कियों में भेद होता हो, घर-आंगन को लड़कियों की किलकारियों से दूर रखा जाता हो, जहां पति-पत्नी बात-बात में मन मुटाव रखते हों, हमेशा एक-दूसरे की कमियां निकालते हों, वहां चाहे आसमान से सोना टपकता हो, लक्ष्मी सिर पर पैर रखकर भागती हैं। बेटियां-बहुएं हैं लक्ष्मियां, बता रही हैं क्षमा शर्मा
उत्तर भारत में दिवाली से पहले रंगाई-पुताई के बाद घर के बाहर विष्णु और लक्ष्मी के पांव की रंगोलियां बनाई जाती हैं। जैसे सब घर में कह रहे हों-लक्ष्मी जी, विष्णु जी आइए, आपका स्वागत है। इसी तरह जब किसी के घर कन्या का जन्म होता है तो कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी आ गई। घर में बेटी का आना लक्ष्मी यानी कि धन का आना है। प्रश्न हो सकता है कि लड़की या स्त्री के आने से धन किस प्रकार से आता है?
घर की स्त्री को लक्ष्मी यों ही नहीं कहते। उन्हें लक्ष्मी और अन्नपूर्णा का दर्जा यूं ही नहीं दिया जाता। एक स्त्री कठिन परिश्रम के जरिए तिनका-तिनका जोड़कर घर बनाती है। किस तरह घर की साफ-सफाई से लेकर परिवार के खान-पान, स्वास्थ्य और खुशी का ध्यान रखती है। बल्कि परिवार के संदर्भ में एक स्त्री की इतनी भूमिकाएं हैं, जिसे इन दिनों मल्टी टास्किंग कहा जाता है कि बड़े से बड़े ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और बिजनेस स्कूल उससे मात खा सकते हैं।
किसी भी घर में धन-धान्य आने का प्रतीक तो यही है कि घर में बेबात तनाव न हो। परिवार का हर सदस्य अपने-अपने काम से लगा हो। स्वस्थ-प्रसन्न हो। घर इतना दमकता हो कि बीमारियां पास न फटकें। घर में इतना धन हो कि सबकी जरूरतें पूरी हों और किसी बुरे वक्त के लिए पर्याप्त बचत भी हो। घर में सम्पन्नता आने का अर्थ यह भी है कि घर में स्त्री-पुरुष का सामंजस्य हो।
हमारे यहां बेटियों और स्त्रियों को संस्कार में दिया जाता है कि एक सुखी स्त्री का अर्थ है उसका सुखी परिवार। इसीलिए माना जाता है कि जिस घर की स्त्री सुघड़ हो, वहां लौट-लौटकर लक्ष्मी आती है। उस घर में किसी बात की कमी नहीं रहती। और जहां पति-पत्नी बात-बात में मन मुटाव रखते हों, हमेशा एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में कमियां निकालते हों ,वहां चाहे आसमान से सोना टपकता हो, लक्ष्मी सिर पर पैर रखकर भागती हैं।
बेटियां इसीलिए लक्ष्मी हैं कि जहां पैदा हुई हैं और जहां जाएंगी, उस घर को ऐसा बना देंगी कि वहां से वैभव, खुशी, सुख-शांति कभी रूठकर न जाए। पत्नियां इसीलिए गृहलक्ष्मी हैं कि वे न हों तो घर- घर नहीं रहता। किस वक्त परिवार के किस सदस्य को क्या चाहिए, किसे खाने में क्या पसंद है, कौन कब सोता है, किसका इम्तिहान है, किसका बर्थ डे, किसका शादी-ब्याह, यह घर की स्त्री से बेहतर कोई नहीं जानता। कुछ पीछे लौटकर सत्ते पे सत्ता फिल्म को याद करें। जहां एक भाभी (हेमामालिनी) के आते ही घर की तसवीर और तकदीर दोनों बदल जाती हैं। घर के सारे बिगड़ैल लड़के अनुशासन में आ जाते हैं। बिन घरनी घर भूत का डेरा कहावत यों ही नहीं बनी।
हमारी बहनें, बेटियां ही किसी और घर की गृहलक्ष्मियां बनती हैं। किसी मशहूर आदमी से पूछिए। उनके इंटरव्यू पढ़िए तो पता चलता है कि उन्हें यहां तक पहुंचाने में उनके घर की स्त्रियों की कितनी बड़ी भूमिका रही है। बेशक उसका परिश्रम इस सफल आदमी के पीछे छिप जाता है मगर वह हर कहीं प्रतिबिम्बित होता है। इसके उदाहरण के रूप में सुधा मूर्ति से लेकर नीता अम्बानी तक शामिल हैं। लक्ष्मी पूजा शायद इसी स्त्री की पूजा है। घरों की बेटियों और बहुओं के विकास में अपना योगदान देकर, उन्हें आगे बढ़ाकर देखिए, घर में सुख की रोशनी होगी और समृद्धि की बरसात।