Hindi, asked by AkhilSharma232i, 5 hours ago

Study the Bhartendu era and read the stories and comedy plays of that period. Give the form of a story in your own words to Bharatendu Harishchandra's famous play “Andher Nagari Chaupat Raja”.

Just want 2-4 paragraphs of story in own words. But Please write in Hindi.​

Answers

Answered by Lucky1x26
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Explanation:

प्राचीन समय की बात है कोशी नदी के तट पर एक संत अपने शिष्य के साथ रहते थे। दोनों का अधिकांश समय भगवान के भजन कीर्तन में ही व्यतीत होता था।

एक बार दोनों देश भ्रमण पर चल पड़े। घूमते घूमते वो एक अनजान देश पहुँच गए। वहाँ जाकर एक बगीचे में दोने ने अपना डेरा जमा लिया। गुरु जी ने शिष्य गंगाधर को एक टका देकर कहा बेटा बाजार जाकर कुछ सब्जी भाजी लावो।

अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा (खाजा एक प्रकार का मिष्ठान है )

शिष्य गंगाधर जब बाजार पहुंचा तो उसे ये बाजार देख कर हैरानी हुई। उस बाजार में सभी बस्तुए टके सेर के भाव बिक रही थी। क्या साग क्या पनीर क्या मिष्ठान सब एक टके में एक सेर के भाव से बिक रहे थे।

शिष्य ने सोचा सब्जियाँ तो रोज ही खाते हैं आज मिठाई ही खा लेते हैं। सो उसने टेक सेर के भाव से मिष्ठान ही खरीद लिए। मिठाई लेकर ख़ुशी ख़ुशी ओ अपने कुटिया पर पहुंचा। उसने गुरु जी को बाजार का सारा हाल सुनाया। गुरु जी ध्यानमग्न होकर कुछ सोच कर बोले ! वत्स जितना जल्दी हो सके हमें ये नगर और देश त्याग देना चाहिए। शिष्य गंगाधर ये अंधेर नगरी है और यहाँ का राजा महा चौपट है। यहाँ रहने से कभी भी हमारे जान को खतरा हो सकता है और हमें न्याय भी नहीं मिलेगा.

परन्तु शिष्य को गुरु जी का यह सुझाव बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था। क्योंकि उसे यहाँ सभी महंगे महंगे खाद्य पदार्थ मिष्ठान आदि सभी सस्ते में मिल रहे थे। वह यहाँ कुछ दिन और रहना चाहता था।

गुरु जी को शिष्य के व्यवहार पर हंसी आ गयी। गुरूजी ने कहा ठीक है बेटा तुम यहाँ कुछ दिन और ठहरो और मिष्ठान आदि खा लो। और कोई संकट आये तो मुझे याद करना। यह कह कर गुरु जी ने वह स्थान त्याग दिया।

गंगाधर रोज प्रातः भिक्षाटन को निकलता और भीख में जो एक दो रुपये मिलते उनसे अच्छी स्वादिष्ट मिठाईयाँ खरीद कर खाता। इस प्रकार कई मास गुजर गए। स्वादिष्ट मिठाई आदि खा पीकर वह काफी मोटा तगड़ा हो गया।

विधवा कलावती का इन्साफ की गुहार

एक दिन गरीब विधवा कलावती की बकरी पंडित दीनदयाल की खेत की फसल चर रही थी। दीनदयाल ने बकरी को डंडे से मारा बकरी मर गयी। कलावती ने राजा के सामने गुहार लगायी। राजा ने फैसला सुनाया जान के बदले जान दीनदयाल को फांसी पर चढ़ा दो।

जल्लाद दीनदायल को फाँसी की फंदे पर चढ़ाने लगा। दीनदयाल काफी दुबला पतला था सो उसके गले में फांसी का फंदा नहीं आ रहा था। जल्लाद ने राजा से अपनी परेशानी जताई। राजा ने कहा जिसके गले में ये फंदा ठीक बैठता हो उस मोटे व्यक्ति की तलाश करो।

अपराधी की तलाश

जल्लाद कोतवाल को लेकर ऐसे व्यकित की तलाश में निकल पड़ा। खोजते खोजते कोतवाल गंगाधर की कुटिया पर पहुंचा। संयोग बस फाँसी का फंदा गंगाधर के गले में फिट आ गया। अब कोतवाल राजा के दरबार में उसे पकड़ लाया।

फाँसी देने से पहले राजा ने गंगाधर से उसकी अंतिम इच्छा पूछा। गंगाधर ने अपने गुरु से मिलने की इच्छा जताई। गंगाधर के गुरु को बुलाया गया। गुरु अपने पोथी के साथ अपने शिष्य के पास आये। गुरु ने पोथी से कुछ देख कर बतया। आज तो बहुत शुभ मुहूर्त है। आज के दिन जो मरेगा वो स्वर्ग का राजा होगा स्वर्ग का सुख भोगेगा।

मेरे प्यारे शिष्य गंगाधर अब तक मैंने तुमसे कुछ भी गुरु दक्षिणा

में नहीं लिया। आज मैं तुमसे ये गुरु दक्षिणा चाहता हूँ। तू मुझे स्वर्ग का राजा बनने का अवसर दो और फाँसी पर मुझे चढ़ने दो। गुरु से ऐसा सुनकर शिष्य ने कहा गुरूजी दक्षिणा में आप कुछ और ले लीजिये लेकिन मैं स्वर्ग के सुख से बंचित नहीं होना चाहता।

गुरु और शिष्य के बीच बहस को सुनकर राजा ने दोनों को अपने निकट बुलाया और बहस का कारण पूछा ?

गुरु के मुख से जब राजा ने सुना की आज मरने वाले को स्वर्ग का राज मिलेगा तो वह चौक गया। राजा सोचने लगा जल्लाद मेरे फांसी का फंदा मेरा और स्वर्ग में जाने की चाह गुरु चेले की।

अरे वाह! स्वर्ग का राज तो मुझे ही चाहिए !

ऐसा बोलकर वह खुद फांसी के फंदे पर चढ़ गया। अब अंधेर नगरी का चौपट राजा सदा के लिए समाप्त हो गया था।

गुरु जी ने शिष्य से कहा वत्स गंगाधर अब इस अंधेर नगरी के चौपट राजा नहीं रहे। अब यहाँ टेक सेर में भाजी और टेक सेर में खाजा मिठाई नहीं मिलेगी। हर किसी व्यक्ति वास्तु का उचित मूल्याङ्कन होगा। इस राज के राज्य भार तुम संभाल लो और मैं मंत्री के रूप में तुम्हे उचित मार्गदर्शन किया करूँगा.

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