Subha Hone par Prakriti Mein Kaise badlav Aata Hain????
Pls answer fast.
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हर चार महीने मे जो ये मौसम बदल जाता है,
प्रकृति का ये बदलाव उस गरीब को तनिक ना भाता है,
मई से जो ये सूरज की धूप कड़कड़ाती,
नंगे पाँव ठेला चलाने से उसकी पगतली सुलग जाती है,
जब हमे ए. सी मे ही सोना हे कहते हैं कूलर में कोई हवा ना आती है,
टेबल फेन की पंखुरी टूट उसकी चैन की नींद पसीने में बह जाती है,
जब हमे मटके का नहीं बिल्कुल चिल्ड पानी ही भाता है,
तब बड़ी मुश्किल से इन्हे चार में से एक दिन साफ पानी मिल पाता है,
अगस्त मे जब हमे सावन के मेले में जाना होता है,
तब उन्हे छत की जगह टीन की उस चादर को सुधारना होता है,
तेज पानी मे चाय पकोड़े ना बनाने पर अपनी माँ से हम लड़ते हैं,
बिजली कटने से चूल्हा ना जला पाते सुबह की सिर्फ़ सूखी रोटी भर खाते हैं,
रिमझिम बारिश में जब हम लॉन्ग ड्राइव को निकलते हैं,
पानी तेज हो कुटिया ना बह जाए ये डर से बीमार होके भी अस्पताल ना निकलते हैं,
नवंबर दिसम्बर बीच जब शीत लहर चल जाती है,
दिवाली के खर्चे से ना उभारा और उसे रात भर ऊधडी रजाई सताती है,
जब रात का पारा घटता है और हमारे घर हीटर जलते हैं,
पांच के बीच एक रजाई बच्चो को उड़ा माँ बाप एक चादर को तरसते हैं,
मक्के की रोटी खा जब हम कडाव का दूध पीने निकलते हैं,
वो बेचारे ठंड में तापने की वो लकड़ियां बटोरने निकलते हैं,
पर अगर
वो स्टोर में रखा पुराना पंखा उन्हे दे दिया जाए,
कुछ छाते बरसाती उनमे बांट दिए जाए,
अगर पुरानी गोदडी दे उन्हे चादर उड़ाई जाती है,
तो कठिन समय में लग जाए ऐसी हमे दुआ मिल जाती है,
जब हर ऋतु का हम आनंद पाते हैं,
खुद के बचाव की वो फरियाद लगाते हैं,
तो आओ कुछ ऐसा करे
जब हर चार महीने में मौसम बदल जाए,
प्रकृति का वो बदलाव उस गरीब को भी उतना ही भाए..
-हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।