subha ka munzar in urdu 5 to 6 lines
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आंखों के सामने से जो कुछ भी गुज़रता है वही मंज़र में तब्दील हो जाता है। कुछ मंज़र हम भूल जाते हैं और कुछ यादों के साथ रह जाते हैं। अलग-अलग मंज़रों पर शायरों ने अपने अल्फ़ाज़ लिखे हैं।
हर मंज़र के अंदर भी इक मंज़र है
देखने वाला भी तो हो तैयार मुझे
- अतीक़ुल्लाह
ख़्वाहिश है कि ख़ुद को भी कभी दूर से देखूँ
मंज़र का नज़ारा करूँ मंज़र से निकल कर
- सऊद उस्मानी
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