Subhadra Kumari Chauhan ki kavita ajay ki pathshala
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माँ ने कहा दूध तो पी लो,
बोल उठे माँ रुक जाओ
वहीं रहो पढ़ने बैठा हूँ
मेरे पास नहीं आओ
है शाला का काम बहुत-सा
माँ उसको कर लेने दो
ग म भ लिख-लिख कर अम्माँ
पट्टी को भर लेने दो
तुम लिखती हो हम आते हैं
तब तुम होती हो नाराज
मैं भी तो लिखने बैठा हूँ
कैसे बोल रही हो आज ?
क्या तुम भूल गई माँ
पढ़ते समय दूर रहना चाहिए
लिखते समय किसी से कोई
बात नहीं कहना चाहिए
……………………………..
बोले माँ पढ़ लिया बहुत-सा
आज न शाला जाऊँगा
फूल यहाँ भी बहुत लगे हैं
माला एक बनाऊँगा
यहाँ मजे में पेड़ों पर चढ़
बिही तोड़ कर खाता हूँ
माँ शाला में बैठा-बैठा
मैं दिन भर थक जाता हूँ
बैठूँगा मैं आज पेड़ पर
पहने फूलों की माला
माँ, मत शाला भेज इकट्ठा
मैंने सब कुछ पढ़ डाला
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