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भारतीय राज्य व्यवस्था में जाति व्यवस्था के प्रभाव पर चर्चा करें
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भारत प्राचीन काल से जाति प्रथा की बुरी व्यस्था के चंगुल में फंसा हुआ है। हालांकि, इस प्रणाली के उद्गम की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है और इस वजह से विभिन्न सिद्धांत, जो अलग-अलग कथाओं पर आधारित हैं, प्रचलन में हैं। वर्ण व्यवस्था के अनुसार मोटे तौर पर लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया। यहाँ इन श्रेणयों के अंतर्गत आने वाले लोगों के बारे में बताया जा रहा है। इन श्रेणियों में से प्रत्येक के अंतर्गत आने वाले लोग निम्न प्रकार से है।:
ब्राह्मण - पुजारी, शिक्षक एवं विद्वान
क्षत्रिय – शासक एवं योद्धा
वैश्य - किसान, व्यापारी
शूद्र – मजदूर
वर्ण व्यवस्था बाद में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गया और समाज में जन्म के आधार पर निर्धारित होने वाली 3,000 जातियां एवं समुदाय थीं जिन्हें आगे 25,000 उप जातियों में विभाजित किया गया था।
एक सिद्धांत के अनुसार, देश में वर्ण व्यवस्था की शुरूआत लगभग 1500 ईसा पूर्व में आर्यों के आगमन के पश्चात हुई। यह कहा जाता है कि आर्यों ने इस प्रणाली की शुरूआत लोगों पर नियंत्रण स्थापित करने एवं अधिक प्रक्रिया को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए की थी। उन्होंने लोगों के विभिन्न समूहों के लिए अलग-अलग भूमिकाएं सौंपी। हिंदू धर्मशास्त्रियों के अनुसार इस प्रणाली की शुरूआत भगवान ब्रह्मा, जिन्हें ब्रह्मांड के रचयिता के रूप में जाना जाता है, के साथ शुरू हुई।
जैसे ही वर्ण व्यवस्था जाति प्रथा में बदल गई जातिगत आधार पर भेदभाव की शुरूआत हो गई। उच्च जाति के लोग महान माने जाते थे और उनके साथ सम्मान से पेश आया जाता था और उन्हें कई विशेषाधिकार भी प्राप्त थे। वहीं दूसरी तरफ निम्न वर्ग के लोगों को कदम-कदम पर अपमानित किया गया और कई चीजों से वंचित रहते थे। अंतर्जातीय विवाहों की तो सख्त मनाही थी।
शहरी भारत में जाति व्यवस्था से संबंधित सोच में आज बेहद कमी आई है। हालांकि, निम्न वर्ग के लोगों को आज भी समाज में सम्मान न के बराबर ही मिल पा रहा है जबकि सरकार द्वारा उन्हें कई लाभ प्रदान किए जा रहे हैं। जाति देश में आरक्षण का आधार बन गया है। निम्न वर्ग से संबंधित लोगों के लिए शिक्षा एवं सरकारी नौकरी के क्षेत्र में एक आरक्षित कोटा भी प्रदान किया जाता है।
अंग्रेजों के जाने के बाद, भारतीय संविधान ने जाति व्यवस्था के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके बाद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कोटा प्रणाली की शुरूआत की गई। बी आर अम्बेडकर जिन्होंने भारत का संविधान लिखा वे खुद भी एक दलित थे और दलित एवं समाज के निचले सोपानों पर अन्य समुदायों के हितों की रक्षा के लिए सामाजिक न्याय की अवधारणा को भारतीय इतिहास में एक बड़ा कदम माना गया था, हालांकि अब विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा संकीर्ण राजनीतिक कारणों से इसका दुरुपयोग भी किया जा रहा है।