Sucha bharat samridh bharat
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प्रत्येक उत्तम विचार ऊपर से अवतरित होता है | उसका सम्मान होना चाहिये , बिना इस पर विचार किये कि उसका माद्ध्यम क्या है | और यदि वह विचार स्वच्छता से सम्बंधित हो तो न केवल उसका सम्मान होना चाहिये वरन उस पर पूरी तत्परता से अमल भी होना चाहिये | यह इस लिए नहीं की इसको किसी व्यक्ति विशेष ने कहा है , बल्कि इस लिए की हम एक सभ्य समाज के अंग और एक समृद्ध संस्कृति के उत्तराधिकारी हैं | स्वच्छता सभ्य और सुसंस्कृत होने की प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है | भौतिक स्वच्छता वैचारिक , धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नयन की आधार भूमि है | वैसे तो पशु पक्षी भी अपनी भौतिक स्वच्छता के प्रति सजग रहते हैं परन्तु मनुष्य तो इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है अतः उसका उत्तरदायित्व मात्र स्वयं एवं घर परिवार तक सिमित नहीं रह सकता , उसको अपनी संवेदनशीलता का दायरा इससे आगे बढ़ कर ग्राम , मोहल्ला , देश और अनंत प्रकृति तक विस्तृत करना होगा | मनुष्य ईश्वर की ओर से इस प्रकृति का संरक्षक है |
दुर्भाग्य से अपने देश में मनुष्य अपनी इस महती भूमिका को विस्मृत कर बैठा है | क्षुद्र स्वार्थों , आलस्य और प्रमाद ने प्रकृति एवं विशेषकर स्वच्छता के प्रति उसकी संवेदनाओं को अत्यंत संकुचित कर दिया है | नहीं तो कैसे वह अपने घरों का कचरा दिन भर अपने ही घरों के सामने की सड़कों पर फेंका करता है ? कैसे वह राह चलते जहां तहां थूका करता है ? यह सड़कें भी वैसे ही हमारी अपनी हैं , जैसा हमारा अपना घर | क्या हम अपने घर में जहां तहां थूकते हैं , या एक कमरे का कचरा निकल कर दूसरे कमरे के सामने डालते हैं ? नहीं न ! फिर अपनी ही सड़कों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों ? यह सड़कें ही पता देतीं हैं ,कि इनके किनारे रहने वाले जन कितने सभ्य हैं |