Sukaryiki ke 4 stambh konse hai
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अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उन्होने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ। परंपरा के अनुसार उन्होने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उनके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी द्रष्टव्य हैं।
अशोकस्तम्भ वैशाली मे
इसी प्रकार उन्होने अगणित चैत्यों और विहारों का निर्माण कराया। अशोक ने देश के विभन्न भागों में प्रमुख राजपथों और मार्गों पर धर्मस्तंभ स्थापित किए। अपनी मूर्तिकला के कारण ये [1] सबसे अधिक प्रसिद्ध है। स्तंभनिर्माण की कला पुष्ट नियोजन, सूक्ष्म अनुपात, संतुलित कल्पना, निश्चित उद्देश्य की सफलता, सौंदर्यशास्त्रीय उच्चता तथा धार्मिक प्रतीकत्व के लिए अशोक के समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। इन स्तंभों का उपयोग स्थापत्यात्मक न होकर स्मारकात्मक था।
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लोकतांत्रिक देशों की कतार में भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक ,समृद्ध लोकव्यवस्था, धर्मनिर्पेक्षता, व बहुसांस्कृतिकता को समेटे हुए एक अकेला ही देश है ।
इसी लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए चार मजबूत स्तम्भो को निर्मित किया गया ।
1. न्यायपालिका
2. कार्यपालिका
3. विधायका
4. मीडिया
इस चौथे खम्बे को बाकी 3 इकाइयों के काम पर काम निगाह रखने , जनहित की सूचनाये समय पर प्रसारित करने , लोकव्यवस्था निर्माण करने व समाज को एक सूत्र में बांधे रखने के आधार पर रख गया । परन्तु आज इस “कथित प्रगतिशील” समाज मे इसका नया स्वरूप बन चुका है जो आज हर एक व्यक्ति अपने विचार और ज्ञान के आधार पर बताने से नही चूकता है ।
इसकी वजह खुद मीडिया है , जिसने अपने आप को सूचना प्रदान के अलावा व्यवसाय निर्मित करने की आहुति में स्वतः झोंका है , खुद को ओर कार्यक्रमो को बेचने की परंपरा में ढाल लिया है जिसका नकारात्मक पहलू साफ नजर भी आते है ।
आप ये अंदाजा लगा सकते है कि
भारतवर्ष में केवल कथित हिन्दू मुस्लिम मसलो के अलावा भी एक समाज है , पूरा देश है मगर फिर भी आज उस एजेंडे के तहत घोर मानसिकता का लावा दिमाग मे लगातार पलटा जा रहा है । जिससे सम्पूर्ण भारत मे अलग धरोहर पनप गयी है एक दूसरे के धर्म के आधार पर उसका बहिष्कार करने ,उसको कट्टरता के बड़े चश्मे में ढाल कर देखना का मौका इसी मीडिया ने ही दिया है । समाज मे कट्टरता को घोलकर जनता को उसकी मूल आवश्यकताओं से परे रखा जा रहा है जिसका निर्देशन मौजूदा सरकार कर रही है।
मीडिया भी आज अलग विचार और एजेंडे को अपना चुकी है जिसका अपना अपना लक्षित समाज है । जिसमे उस की विचारात्मकता से जुड़ी खबरों का खूब बोलबाला है । खूब प्रमुखता है , ये वैचारिक भिन्नता हो सकती है परन्तु यही वैचारिकता का भाव समाज को खंडित करने की खाई को बड़ा कर रहा है ।
जिसमें बड़ा हाथ निष्पक्ष कही जाने वाली मीडिया का भी है ।
मीडिया निष्पक्ष नही हो सकती है केवल खबर निष्पक्ष हो सकती है परन्तु उस खबर को पढ़ रहे पाठक ,दर्शक को वह खबर निष्पक्ष है या नही यह वह खुद लगा लेते है अपने विचार और ज्ञान के आधार पर या वह विचार वह जनसंचार का माध्यम परोस देता है जिसको उसकी लक्षित जनता पाना चाहती है।
मीडिया की यह बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि सम्वेदनशील स्थितियों में समाज की अखंडता को बनाये रखने, बेबाक व तर्कहीन सूचना को समाज मे फैलाने से बचाने की जैसी बड़ी चीजो का ध्यान रखे ।
हाल ही में इसके उलट देखने को मिला जिसको हिन्दू मुस्लिम विचारधारा को लपेट दिया गया जिससे पूरा मसला बहुत संजीदगी में चल गया ,साथ ही देश मे कट्टरता का माहौल बनाया गया ।
इस तरह की वैचारिकता को यदि इस देश मे रहने दिया जाएगा तो इस देश का विकास मुमकिन नही है । क्योंकि खुद देश आंतरिक रूप से मजबूत नही होगा तो बाह्य विकास को देखना टेडी खीर लगता है