India Languages, asked by DarshanDM437, 1 year ago

Sukhe ped ke aatmkatha Hindi niband

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Answered by palak970
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Answer:

इस लेख के माध्यम से हमने एक Ped ki Atmakatha का वर्णन किया है। पेड़ का जीवन बहुत ही साधारण होता है।वह अपना पूरा जीवन पृथ्वी के प्राणियों की सेवा में लगा देता है। फिर भी अंत में उसको काट दिया जाता है। लेकिन इतनी सब कठिनाइयों के बाद में भी एक पेड़ फिर से जन्म लेता है और फिर से सभी की सेवा करने लग जाता है।

Explanation:

मैं एक पेड़ हूं मेरा जन्म एक बीज के रूप में हुआ था मैं कुछ दिनों तक धरती पर यूं ही पड़ा रहा और धूल में भटकता रहा। कुछ दिनों बाद वर्षा का मौसम आया तो बारिश हुई, बारिश के कुछ समय बाद मैं बीज की दीवारों को तोड़कर बाहर निकला और इस दुनिया को देखा मैं उस समय बहुत ही कोमल था किसी के थोड़ा सा जोर से हाथ लगाने पर ही मैं टूट सकता था।जब मैं छोटा था तब छोटी सी आहट से ही मुझे डर लगता था मुझे ऐसा लगता था कि कोई पशु पक्षी या फिर इंसान मुझे तोड़ न ले या फिर अपने पैरों के नीचे कुचल ना दे। लेकिन समय बीतता गया और मैं धीरे-धीरे बड़ा होता गया।

कुछ वर्षों में मैं प्रकृति को भी जानने लगा था कि कब बसंत ऋतु आती है, कब वर्षा ऋतु आती है, कब सर्द ऋतु आती है उस हिसाब से मैं अपने आप को ढाल लेता था।

मैंने अपने जीवन को बचाए रखने के लिए बहुत सी बाधाओं को पार किया है जैसे कि गर्मियों में सूरज की तेज धूप को सहा है तो कभी सर्दियों में बहुत अधिक ठंड को सहा है, कभी तेज तूफान आते है तो कभी ओले गिरते है, कभी कोई जानवर मुझे खाने को दौड़ता है तो कभी इंसान मेरी टहनियों को तोड़ लेता है।

इन सभी बाधाओं से मुझे बहुत तकलीफ हुई लेकिन इन बाधाओं ने मेरे को इतना मजबूत बना दिया है कि अब मैं किसी भी बाधा का सामना कर सकता हूं।लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अब किसी जानवर के खाने का भय नहीं रहता है और गर्मी सर्दी भी मैं सहन कर लेता हूं बड़ा होने के कारण अभी इंसान भी मेरी टहनियां नहीं तोड़ पाते है।

अब मेरे ऊपर कुछ पुष्प और फल भी लगने लगे है। मेरे पुष्प भगवान के चरणों में अर्पित किए जाते है जो कि मुझे बहुत अच्छा लगता है।

मेरे फल खाने के लिए बच्चे दौड़े चले आते है वह मेरे कच्चे फल ही खा जाते है। मेरे फल खाकर छोटे बच्चे बहुत खुश होते है यह देखकर मेरे हृदय में को भी सुकून मिलता है की मेरे होने से किसी को तो खुशी मिल रही है। और हम पेड़ों का असली मकसद ही यह रहता है कि हम जीवन भर कुछ ना कुछ इस धरती के प्राणियों को देते रहें।

समय व्यतीत होता रहा और मेरी टहनियां और मजबूत हो गई मेरी टहनियों के मजबूत होते ही बच्चों ने मेरे ऊपर झूले डाल दिए और जोर-जोर से झूलने लगे। बच्चे जब झूल रहे थे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था झूले की रस्सियों से मुझे चुभन और दर्द तो हो रहा था लेकिन बच्चों की प्यारी मुस्कान के आगे वह दर्द कुछ नहीं था इसलिए मैं भी अपनी डाल को हिलाकर उन्हें ठंडी हवा दे रहा था।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था और मैं पहले से ज्यादा बड़ा और मजबूत होता जा रहा था मेरी शाखाएं दूर-दूर तक फैलने लगी थी। गर्मियों में जब भी कोई राही तेज धूप से बचने के लिए मेरे नीचे आकर बैठता और आराम करता तो मैं उसे ठंडी छांव देता और टहनियों को हिला कर उन्हें हवा देता वह प्रसन्न होकर मुझे खूब दुआएं देते यह देख कर मुझे अच्छा लगता।

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