sukhi dali path ka moral
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प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने यह दिखाना चाह है कि आपसी समझदारी तथा सहनशीलता से बड़ी -बड़ी समस्याओं का सामना किया जा सकता है .दादा जी की परिपक्व बुद्धि के परिणामस्वरूप एक घर के कार्य में सहयोग न देने वाली स्त्री भी सहयोग देने लगती है .यहाँ गांधी जी के दर्शन का प्रभाव लेखक पर दिखाई देता है कि कठोरता पर कोमलता से विजय प्राप्त की जा सकती है और लेखक अपने उद्देश्य में सफल हुआ है .
पाठ का नाम :- सुखी डाली
लेखक :- उपेंद्रनाथ अश्क
विधा :- एकांकी
उद्देश्य ( moral ) निम्नलिखित है :-
सुखी डाली पाठ के माध्यम से लेखक ने
संयुक्त परिवार की विषय में चर्चा करते हुए
उनके परेशानियों , उनके परिस्थितियों ,उनकी
समस्याओं का उल्लेख किया है । और साथ ही
साथ उनके ( संयुक्त परिवार के ) समस्याओं
का समाधान करने हेतु अपनाया गया तरीका
के विषय में भी उल्लेख है । इस पाठ से यह
भी पता चलता है कि संयुक्त परिवार में एक
घर का मुखिया होता है जो कि इस पाठ में
दादा जी थे ।
इस पाठ में ' बेला ' नाम की नव
विवाहित बहू है , जिसको अपने ससुराल में
रहना कठिन प्रतीत होता है। वह लोगो के
साथ घुल - मिल नहीं पाती । तट पश्चात् उसके
और लोगों के बीच मतभेद पैदा होने लगते है ।
दादाजी इस परेशानि को भांप लेते है और
इसका हल निकलते हुए सबको समझाते है ।
अंत में ' बेला ' ससुराल के रंग में ढल जाती है
और सब उसके साथ आदर और सम्मान के ।साथ
पेश आते है।
वस्तुत: लेखक ने इस पाठ के माध्यम से यह ।संदेश
देना चाहा है कि आपस में बातचीत कर
के कोई भी समस्या हो ( और वह कितना भी
कठिन, पीड़ादायक हो ) उस हल कर सकते
है।