Hindi, asked by sydawg739, 1 year ago

Sukti Lekhan partiyogita mai Kya hai

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Answered by traza1308
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किसी कॉन्टेस्ट अथवा प्रतियोगिता को कैसे जीतें, कैसे सफ़ल हों आदि प्रकार के लेख बहुतया मिल जाते हैं लेकिन किसी प्रतियोगिता आदि को हारें कैसे, किसी कॉन्टेस्ट इत्यादि में असफ़ल कैसे हों इस तरह के लेख प्रायः नहीं मिलते। क्यों? क्योंकि इंसानी प्रवृत्ति सफ़लता ही पाना चाहती है इसलिए सफ़ल होने के नुस्खे, रामबाण तरीके ही जानने को व्यक्ति उत्सुक रहता है। वह सोच विचार के कभी यह नहीं जानना चाहता कि किसी प्रतियोगिता में असफ़ल कैसे हो सकते हैं ताकि उन गलतियों को स्वयं न दोहराए। सफ़लता प्राप्त करने वाले नुस्खों से सफ़लता मिलती है या नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन असफ़लता प्राप्त करने के इन नुस्खों को आज़मा के असफ़लता अवश्य मिलेगी यह गारंटी है! 

(कृपया ध्यान दें – गारंटी पर शर्तें लागू – नियम एवं शर्तों की सूचि के लिए कुवैत वासी जीतू भाई के मित्र मिर्ज़ा साहब से संपर्क किया जाए, लीगल दस्तावेज़ों का लेखा-जोखा वही रखते हैं)

तो हम यहाँ बात करते हैं लेखन प्रतियोगिताओं की, जैसे कोई लेख लिखने की प्रतियोगिता, अथवा कहानी, निबंध या ब्लॉग पोस्ट आदि लिखने की प्रतियोगिता। ऐसी प्रतियोगिताएँ गाहे-बगाहे होती रहती हैं, कुछेक में निर्णायक समीति का सदस्य होने के कारण मुझे आने वाली प्रविष्टियों में आम गलतियाँ नज़र आई जिनके कारण वे रद्द कर दी जाती थी। यदि आप भी ऐसी गलतियाँ करेंगे तो असफ़लता आपके गले लगेगी:

वर्तनी अथवा व्याकरण की त्रुटियाँ – अपनी प्रविष्टि जमा करने से पहले कम से कम एक बार तो जाँच लें कि उसमें वर्तनी और व्याकरण की गलतियाँ न हों। अधिकतर ऐसी गलतियाँ पहली नज़र में ही पकड़ी जाती हैं। यदि आपके लेख में ऐसी गलतियाँ हैं तो निर्णायक इनसे झल्ला जाएगा और त्रस्त होकर प्रविष्टि खारिज कर देगा।

विज्ञापन – कई लोग बहुत समझदार होने का भ्रम पाले हुए होते हैं, वे सोचते हैं कि यदि इनाम न भी मिला तो भी लाभ निचोड़ा जा सकता है, अपने लेख को अपनी किसी चीज़ का अथवा अपने ब्लॉग/वेबसाइट का विज्ञापन बना दो। कुछ अन्य लोग और भी अधिक समझदार होते हैं – यदि प्रतियोगिता कोई कंपनी आदि स्पॉन्सर कर रही है तो वे अपने लेख को उस कंपनी के ही किसी उत्पाद का विज्ञापन बना देते हैं यह सोच कि उस कंपनी के लोग निर्णायक होंगे और मक्खन लगाना इसलिए काम आ जाएगा!! ऐसी प्रविष्टियाँ भी कूड़े के डब्बे में जाती हैं।

नकल – नकल में भी अकल की आवश्यकता होती है, यह बहुत पुरानी कहावत है। परन्तु लोगों को आज भी यह बात समझ नहीं आती, वे यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ से टुकड़ों में मसौदा टीपते हैं और अपना लेख बनाते हैं। इतनी भी ज़हमत ये लोग नहीं उठाते कि कम से कम शब्द अपने प्रयोग करें ताकि पतलून नई नज़र आए, पैबंद लगी नहीं! 

गांधारी के समान बनना – गांधारी ने अपनी इच्छा से अपनी आँखों पर पट्टी बाँध अंधा होना स्वीकार किया था। कई लोग उनके जैसे ही होते हैं, प्रतियोगिता के कायदे नियम आदि पढ़ने की ज़हमत ही नहीं उठाते। प्रतियोगिता में यदि पटियाला पर लेख लिखने को कहा होता है तो वे जलंधर पर लेख लिख देते हैं। यदि अंतिम तिथि 4 जुलाई 2011 है तो वे 5 जुलाई 2012 को भी प्रविष्टि जमा करने का प्रयास करते हैं। यदि प्रतियोगिता में न्यूनतम 500 शब्द लिखने को कहा गया है तो वे 50 शब्द लिख के जमा कराते हैं।

कूड़ा जमा करना – यदि लेख लिखना आपके सामर्थ्य में नहीं है तो मत लिखिए, बेकार का कूड़ा जमा करने का क्या लाभ। लेकिन बहुत से लोगों को इतनी समझ नहीं होती तो वे ऐसी प्रविष्टियाँ जमा करते हैं – “मैं यह कान्टेस्ट जीतना चाहती हूँ क्योंकि मैं बहुत समझदार हूँ”, “मैं यह कम्पीटीशन जीत कर दुनिया में अपने नाम का झंडा गाड़ना चाहता हूँ”। किसी ने पूछा थोड़े कि आप कॉन्टेस्ट क्यों जीतना चाहते हो, क्यों जीतना डिज़र्व करते हो या जीत के क्या करोगे?! यदि पूछा है तो बताओ अन्यथा अपने विचार अपने पास रखो और उसी चीज़ पर लिखो जिस पर लिखने के लिए कहा गया है! हर प्रतियोगिता टुथपेस्ट की डिब्बी पर छपा स्लोगन भरो गाड़ी जीतो वाला फॉर्म नहीं होती कि स्लोगन लिखा और मामला सैट!!

इसके अतिरिक्त और भी मज़ेदार तरीके हैं असफ़ल होने के जिसमें मेहनत बहुत कम लगती है। जैसे लेख आदि जमा करने के लिए यदि ईमेल बताया गया है तो उस ईमेल पर खाली ईमेल डाल दें कि प्रविष्टि संलग्न है और प्रविष्टि चिपकाना भूल जाएँ, नतीजे आने पर हल्ला करें कि आपकी प्रविष्टि को सम्मानित क्यों नहीं किया गया। ईमेल पते पर कंपनी दफ़्तर आदि का पता पूछें ताकि आप अपनी प्रविष्टि बाई हैण्ड डिलिवर कर सकें (ऐसे लोग वैसे गांधारी बनने वाले भाग में कवर हो जाते हैं)। इन तरीकों का लाभ यह कि आपको लेख आदि लिखना ही नहीं पड़ा, बिना लिखे ही असफ़लता प्राप्त कर ली जो कि अपने आप में बहुत बड़ी अचीवमेन्ट है

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