Sumithranandh pant's poem मोह summary
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मोह summary
दो पीढ़ियों का समयांतर नई पीढ़ी के विचारों में भी अंतर ला देता है जो बदलते परिवेश के अनुसार स्वाभाविक भी है लेकिन माँ-पिता का मन यह अंतर आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता और जब अचानक विपरीत परिस्थितियों से सामना होता है तो मोह भंग होने लगता है
छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल-तरंगों को,
इन्द्र-धनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल-बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
भूल अभी से इस जग को!
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!
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