Summary for class 8 chapter 4 hindi cbse
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दीवानों की हस्ती
भवतीचरण वर्मा
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते साथ चले।
दीवाने उन्हें कहते हैं जो हर हाल में मस्त रहते हैं। सुख या दुख का उनपर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ता और वे वर्तमान काल में जीने में विश्वास करते हैं।
दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती है, मतलब उन्हें इसका कोई घमंड नहीं होता कि वे कितने बड़े आदमी हैं, और ना ही इसका मलाल होता है कि उन्हें किसी चीज की कमी है। उनके साथ हमेशा मस्ती का आलम होता है और वे जहाँ भी जाते हैं गम को धूल में उड़ा देते हैं।
आये बनकर उल्लास अभी,
आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गये अरे
तुम कैसे आये, कहाँ चले?
वे किसी जगह पर जाते हैं तो एक उल्लास की तरह सबमें जोश का संचार कर देते हैं। जब वे कहीं से जाते हैं तो आंसू की तरह जाते हैं। पीछे लोग अफसोस करते रह जाते हैं उनके चले जाने का।
किस ओर चले यह मत पूछो?
चलना है बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
उनका काम होता है चलते रहना। दिशा कोई भी हो चलते रहने का नाम ही जिंदगी है। जो असली दीवाने होते हैं वो हमेशा संसार से कुछ लेते रहते हैं और बदले में उसे कुछ ना कुछ देते रहते हैं। उनकी जिंदगी में कभी भी कोई अर्धविराम नहीं आता है, पूर्णविराम तो बहुत दूर की बात है।
दो बात कही, दो बात सुनी
कुछ हँसे और फिर कुछ रोये
छककर सुख दुख के घूंटों को
हम एक भाव से पिए चले
वे लोगों से बातों के जरिये दुख सुख बाँटते हैं और सुख और दुख दोनों के घूँट छककर और मजा लेकर पीते हैं।
हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
हम एक निसानी सी उर पर
ले असफलता का भार चले
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले
जो दीवाने होते हैं वे किसी असहाय पर भी अपना प्यार निछावर कर देते हैं। सामान्य आदमी प्राय: किसी असहाय को देखकर सहानुभूति के अलावा और कुछ नहीं देता है।
लेकिन ज्यादा बेफिक्र जिंदगी जीना भी सही नहीं होता है। जिन कामों में गंभीरता की जरूरत हो वहाँ गंभीर रहना चाहिए, नहीं तो ज्यादा मस्ती आपको कहीं न कहीं असफल होने के लिए बाध्य करेगी। दीवाने लोग रोजमर्रा के जीवन की असफलता को सीने से निशानी की तरह लगा लेते हैं।
उनके लिए कोई अपना या पराया नहीं होता है, और कोई बंधन नहीं होता है। ये बातें कुछ-कुछ सन्यासियों को शोभा दे सकती हैं। लेकिन यदि आप साधारण मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं तो आपको अपना पराया अदि के मूल्य को समझना होगा।
भवतीचरण वर्मा
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते साथ चले।
दीवाने उन्हें कहते हैं जो हर हाल में मस्त रहते हैं। सुख या दुख का उनपर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ता और वे वर्तमान काल में जीने में विश्वास करते हैं।
दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती है, मतलब उन्हें इसका कोई घमंड नहीं होता कि वे कितने बड़े आदमी हैं, और ना ही इसका मलाल होता है कि उन्हें किसी चीज की कमी है। उनके साथ हमेशा मस्ती का आलम होता है और वे जहाँ भी जाते हैं गम को धूल में उड़ा देते हैं।
आये बनकर उल्लास अभी,
आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गये अरे
तुम कैसे आये, कहाँ चले?
वे किसी जगह पर जाते हैं तो एक उल्लास की तरह सबमें जोश का संचार कर देते हैं। जब वे कहीं से जाते हैं तो आंसू की तरह जाते हैं। पीछे लोग अफसोस करते रह जाते हैं उनके चले जाने का।
किस ओर चले यह मत पूछो?
चलना है बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
उनका काम होता है चलते रहना। दिशा कोई भी हो चलते रहने का नाम ही जिंदगी है। जो असली दीवाने होते हैं वो हमेशा संसार से कुछ लेते रहते हैं और बदले में उसे कुछ ना कुछ देते रहते हैं। उनकी जिंदगी में कभी भी कोई अर्धविराम नहीं आता है, पूर्णविराम तो बहुत दूर की बात है।
दो बात कही, दो बात सुनी
कुछ हँसे और फिर कुछ रोये
छककर सुख दुख के घूंटों को
हम एक भाव से पिए चले
वे लोगों से बातों के जरिये दुख सुख बाँटते हैं और सुख और दुख दोनों के घूँट छककर और मजा लेकर पीते हैं।
हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
हम एक निसानी सी उर पर
ले असफलता का भार चले
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले
जो दीवाने होते हैं वे किसी असहाय पर भी अपना प्यार निछावर कर देते हैं। सामान्य आदमी प्राय: किसी असहाय को देखकर सहानुभूति के अलावा और कुछ नहीं देता है।
लेकिन ज्यादा बेफिक्र जिंदगी जीना भी सही नहीं होता है। जिन कामों में गंभीरता की जरूरत हो वहाँ गंभीर रहना चाहिए, नहीं तो ज्यादा मस्ती आपको कहीं न कहीं असफल होने के लिए बाध्य करेगी। दीवाने लोग रोजमर्रा के जीवन की असफलता को सीने से निशानी की तरह लगा लेते हैं।
उनके लिए कोई अपना या पराया नहीं होता है, और कोई बंधन नहीं होता है। ये बातें कुछ-कुछ सन्यासियों को शोभा दे सकती हैं। लेकिन यदि आप साधारण मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं तो आपको अपना पराया अदि के मूल्य को समझना होगा।
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