Hindi, asked by Ashau6575, 8 months ago

Summary for poem barahmasa

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Answered by Ujesh102
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Answer: यह काव्यखण्ड मलिक मोहम्मद जायसी की प्रसिद्ध कृति पद्मावत के बारहमासा से उद्गृत हैं। इस पद्यांश में कवि ने मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन माह राजा रत्नसेन की वियोग पीड़ा में संतृप्त रानी नागमती की दशा का मार्मिक निरुपण किया है।

अगहन माह में बड़ी होती रात व छोटे होते दिन के बीच भौरों व कौवों से प्रियतम तक उसकी दशा का संदेश पहुंचाने की विनती क़रतीं है। पूस की ठंड में नागमती को उष्ण वस्त्रों से युक्त बिस्तर भी बर्फ के समान ठंडा लगता है। माघ माह में पड़ने वाला पाला नागमती के शरीर को मृतप्राय बना देता है तो वर्षा अश्रुधारा को और तेज़ कर देती है।

इसी प्रकार फाल्गुन में लोग जहां रंग खेल रहे होते हैं वहीं नागमती का जीवन बेरंग व रसहीन बना हुआ है। नागमती की आकांक्षा है कि उसके शरीर को जलाकर भस्म कर दिया जाए तथा राख को प्रियतम के मार्ग पर बिछा दिया जाए। बारहमासा कविता की व्याख्या- प्रस्तुत पद्यांश में जायसी जी मार्गशीर्ष के आगमन व नागमती की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि अगहन के आने के साथ ही दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगीं हैं।

विरह वेदना से संतृप्त रानी के लिए इतनी लंबी रातें काटना कठिन हो रहा है।नागमती वियोग में दीपक के समान जल रही है। ठंड का अनुभव होने लगा है और हृदय कांप रहा है। ऐसी स्थिति में प्रियतम का दूर चले जाना अत्यंत कष्टकारी है।

लोग मंगलगीत व रंगों में व्यस्त हैं लेकिन नागमती के जीवन में रंगों का अभाव हो गया है। वज्र के समान विरह अग्नि से नागमती का हृदय जल रहा है और शरीर सुलग सुलग कर  राख होता जा रहा है।

यह दुख दर्द किसी और की समझ से परे है, जिससे विरहणी का जन्म भस्म होता जा रहा है। नागमती भौरें व कौवे से प्रियतम तक अपनी दशा का संदेश पहुंचाने का आग्रह कर रही है। साथ ही कह रही है कि विरह ज्वाला में जल रही नागमती के धुएं के स्पर्श से ही वे काले हो गए हैं। बारहमासा कविता की व्याख्या- कवि जायसी पूस की ठंड में वियोग पीड़ित नागमती का चित्रण करते हुए बता रहे हैं कि पूस माह के जाड़े से शरीर थर थर कांप रहा है। और सूरज मानो लंका दिशा की ओर जा छुपा हो अर्थात राजा रत्नसेन लंका की ओर चले गए हैं।

विरह वेदना से रानी का बेहद दारुण यानी दयनीय अवस्था में आ गयी हैं और ठंड की कंपकंपी उनका जीवन हरने को आतुर है। प्रियतम कहाँ गए यह समझ नहीं आ रहा है, ना ही उनके ढूढने का उपाय दिख रहा है।

कई रास्ते हैं परन्तु निकट भविष्य में कोई भी मार्ग प्रियतम तक पहुंचाने के लिए नहीं सूझ रहा है। ठंड में गर्मी प्रदान करने वाला वस्त्र सौंर संपेती भी हिमालय की बर्फ के समान बिस्तर प्रतीत हो रहा है।

कोकिला व चकई भी नियत काल में मिल जाते हैं। जब रात्रि में सखी प्रियतम के बिना अकेली है तब इस वियोग पीड़ा से संतृप्त नागमती रूपी पक्षी कैसे जीवित रह सकती है। ठंड में वियोग से परेशान नागमती बाज से उसे जीवित अवस्था में ही खा लेने का आग्रह कर रही है और कह रही है इस अवस्था में उसे ना छोड़े।

नागमती का रक्त सूख चुका है और मांस गल चुका है। शरीर मात्र हाड़ के समान बचा है। नागमती एक पंख समेटे हुए सारस के समान प्रतीत हो रहीं हैं। बारहमासा कविता की व्याख्या- इस काव्यांश में जायसी जी माघ माह में विरह से व्याकुल नागमती के दुःख की अभिव्यक्ति करते हुए निरुपित कर रहे हैं कि माघ माह का आगमन हो चुका है तथा पाला पड़ने लगा है परन्तु वियोग के समय ने नागमती की काया को काला व मृत समान बना दिया है।

बार बार शरीर को गर्म वस्त्रों से ढकना पड़ रहा है और बार बार  नागमती का शरीर और अधिक कांप रहा है। नागमती कह रही है है पतिदेव सूर्य के आगमन से कुछ ताप तो आता है परन्तु आपके बिना यह जाड़ा नहीं जाता है।

इसी माह श्रृंगार भाव की उत्पत्ति होती है परन्तु प्रियतम के दूर रहने से नागमती का प्रफुल्लित होता यौवन निर्रथक सिद्ध हो रहा है। नागमती की आंखों से माघ माह में होने वाली तेज़ वर्षा के समान अश्रु बह रहे हैं।

प्रियतम के बिना नागमती के अंगों का सौंदर्य अर्थहीन हो गया है तथा वह एक रसहीन जीवन व्यतीत करने को विवश है। आंखों से गिरती हुई बूंदे ओले के समान प्रतीत हो रहीं हैं तथा बहती हुई पवन झकझोर कर विरह वेदना को और बढ़ा रही है।

नागमती कह रही है किसके लिए श्रृंगार करें ? किसके लिए आकर्षक वस्त्र पहने और किसके लिए गले में हार व शरीर पर आभूषण पहने?

नागमती कह रहीं हैं प्रियतम आपके बिना हृदय कंपित हो रहा है तथा तन डोल रहा है। विरह वेदना मेरे शरीर को जलाकर समाप्त करती जा रही है। बारहमासा कविता की व्याख्या- जायसी जी फाल्गुन माह में पति वियोग से व्यथित नागमती की मनोदशा को वर्णित करते हुए कहा रहे हैं कि फागुन माह में बहने वाली हवा ने ठंड को चारगुना बढ़ा दिया है, जिसे नागमती सहन नहीं कर पा रही है। नागमती का शरीर सूखकर पत्ते के समान हो गया है जिसे विरह वेदना ने झकझोर दिया है।

तिनके गिर रहे हैं तथा फूल खिल रहे हैं। वनस्पतियों में उत्साह है अर्थात अब वातावरण में हर प्रकार के फूल वनस्पतियां इत्यादि  पुष्पित पल्लवित होने लगे हैं, परन्तु नागमती के मन मानस में उदासी व्याप्त है।

होली का उत्सव आ रहा है। लोग एक दूसरे को रंग लगाने को आतुर हैं लेकिन नागमती बेरंग व उदास व अकेली है। विरह वेदना से जल रही नागमती शोक व रोष का अनुभव कर रही है। रात-दिन विलाप करके प्रियतम के आगमन की प्रतीक्षा कर रही है।

नागमती दुःख की पराकाष्ठा में पहुंचकर कहती है कि उसका शरीर जलाकर राख कर दिया जाए तथा राख को उस मार्ग में फैला दिया जाए जहां से उसके पति होकर गुजरे अथवा उनके पांव पड़ें हों। hopefully it will help you mate.. if this answer helps you then mark me as brainliest

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