Summary for the poem Deewano ki hasthi
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हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?
दीवानों: अपनी मस्ती में रहने वाले
हस्ती: अस्तित्व
मस्ती: मौज
आलम: दुनिया
उल्लास: ख़ुशी
अपनी मस्ती में रहने वाले लोगों की क्या हस्ती, क्या अस्तित्व है। कभी यहाँ है तो कभी वहाँ । एक जगह तो रूकने वाले नहीं है, आज यहाँ, कल वहाँ चले । यानी की जो मस्त-मौला किस्म के व्यक्ति हैं वो कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, आज यहाँ है तो कल कहीं और। यह जो मौज मस्ती का आलम है यह साथ चला- जहाँ कवि गया वहाँ पर उन्होंने अपनी मस्ती से, अपनी प्रसन्नता से, सब में खुशियाँ बाँटी। कवि कहते हैं कि हम अपनी मस्त-मौला आदत के अनुसार जहाँ भी गए, प्रसन्नता से धूल उड़ाते चले, मौज मजा करते चले। हम दीवानों की हस्ती कुछ ऐसी ही होती है हम जहाँ भी जाते है अपने ढंग से जीते है अपने ढंग से ही चलते-चलते है । हम पर किसी का कोई असर नहीं होता। कवि कहते है वे अभी-अभी आएँ है और खुशियाँ बाँटी हैं, खुशियाँ लुटाई है और अभी कुछ हुआ कि आँसू भी बनकर बहे निकले।अर्थात् अभी-अभी खुश थे और अभी-अभी दुखी हो गए है तो आँसू भी बह निकले है । कवि मस्त-मौला किस्म के है अपने मन मरजी के मालिक हैं कभी कहीं जाते है तो कभी कहीं के लिए चल पड़ते है तो जहाँ पर पहुँचते है खुशियाँ लुटाते है और वहाँ से आगे निकल चलते है तो लोग कहते है कि अरे, तुम कब आए और कब चले गए पता ही नहीं चला।