Summary in hindi for sadachar ka taweej by harisahakar parsai
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता। सदाचार का तावीज़ बाँधते तो वे भी हैं
जो सचमुच ‘आचारी’ होते हैं, और वे भी जो बाहर से
‘एक’ होकर भी भीतर से सदा ‘चार’
रहते हैं। यहाँ
ध्यान देने की बात यही है कि आपके हाथों में प्रस्तुत सदाचार का तावीज़
किसी और का नहीं-हरिशंकर परसाई का है। परसाई-यानी सिर्फ परसाई और इसीलिए
यह दावा करना गलत नहीं होगा कि सदाचार का तावीज़ भी हिन्दी के
व्यंग्य-साहित्य में अपने प्रकार की अद्वितीय कृति है।
कुल इकतीस व्यंग्य-कथाओं का संग्रह है यह सदाचार का तावीज़। आकस्मिक नहीं होगा कि ये कहानियाँ आपको, आपके ‘समूह’ को एकबारगी बेतहाशा चोट दें, झकझोरें, और फिर आप तिलमिला उठें। साथ ही आकस्मिक यह भी नहीं होगा जब यही कहानियाँ आपको अपने ‘होने’ का अहसास तो दिलायें ही, विवश भी करें कि औरों के साथ मिलकर खुद ही अपने ऊपर क़हक़हे भी आप लगायें। एक बात यह और कि इन ‘तीरमार’ कहानियों का स्वर ‘सुधार’ का हरगिज नहीं, बदलने का है, यानी सिर्फ इतना कि आपकी चेतना में एक हलचल मच जाये, आपको एक सही ‘संज्ञा’ मिल सके। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।
कुल इकतीस व्यंग्य-कथाओं का संग्रह है यह सदाचार का तावीज़। आकस्मिक नहीं होगा कि ये कहानियाँ आपको, आपके ‘समूह’ को एकबारगी बेतहाशा चोट दें, झकझोरें, और फिर आप तिलमिला उठें। साथ ही आकस्मिक यह भी नहीं होगा जब यही कहानियाँ आपको अपने ‘होने’ का अहसास तो दिलायें ही, विवश भी करें कि औरों के साथ मिलकर खुद ही अपने ऊपर क़हक़हे भी आप लगायें। एक बात यह और कि इन ‘तीरमार’ कहानियों का स्वर ‘सुधार’ का हरगिज नहीं, बदलने का है, यानी सिर्फ इतना कि आपकी चेतना में एक हलचल मच जाये, आपको एक सही ‘संज्ञा’ मिल सके। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।
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