Hindi, asked by amitabhdas1842, 10 months ago

summary of aatmkathya by jagdish prasad

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Answered by rakesh5121
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जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का निवेदन किया, जबकि जयशंकर जी अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते थे। इसीलिए उनके मित्रों के निवेदन का मान रखते हुए, प्रसाद जी ने इस काव्य की रचना की। इस काव्य में उन्होंने जीवन के प्रति अपने अनुभव का वर्णन किया है।

उनके अनुसार यह संसार नश्वर है, क्योंकि  प्रत्येक जीवन एक न एक दिन मुरझाई हुई पत्ती-सा टूट कर गिर जाता है। उन्होंने इस काव्य में जीवन के यथार्थ एवं अभाव को दिखाया है कि किस प्रकार हर आदमी कहीं न कहीं किसी चोट के कारण दुखी है। फिर चाहे वो चोट प्रेमिका का न मिलना हो या फिर मित्रों के द्वारा धोखा खाना हो।

उनके अनुसार उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है, जिससे लोग उनकी आत्मकथा सुनकर वाह-वाही करेंगे। उन्हें तो लगता है कि अगर उन्होंने अपने जीवन का सत्य सबको बताया, तो लोग उनका उपहास उड़ाएंगे और उनके मित्र खुद को दोषी समझेंगे। कवि के अनुसार उनका जीवन सरलता एवं दुर्बलता से भरा हुआ है और उन्होंने जीवन में कोई महान कार्य नहीं किया। उनके अनुसार उनकी जीवन-रूपी गगरी खाली ही रह गई है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत पंक्तियों में जहां एक ओर कवि की सादगी का पता चलता है, वहीँ दूसरी ओर उमधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,

para 1

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- यहाँ कवि ने अपने मन को भँवरे की संज्ञा दी है, जो गुनगुनाकर पता नहीं क्या कहानी कह रहा है। वह यह नहीं समझ पा रहा कि वह अपनी जीवनगाथा की कौनसी कहानी कहे, क्योंकि उसके समीप मुरझाकर गिरते हुए पत्ते जीवन की नश्वरता का प्रतीक हैं। ठीक इसी तरह मनुष्य का जीवन भी एक न एक दिन समाप्त हो जाना है।

para 2

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, यह नीला आकाश जो कि अनंत तक फैला हुआ है, उसमें असंख्य लोगों ने अपने जीवन का इतिहास लिखा है। जिसे पढ़कर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो उन्होंने स्वयं की आत्मकथा लिखकर खुद का मज़ाक उड़ाया है और लोग इन्हें पढ़ कर उन पर हँस रहे हैं।

para3

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि अपने मित्रों से यह प्रश्न करने के लिए बाध्य हो जाता है कि क्या तुम भी यही चाहते हो कि मैं भी अपनी जीवन की सारी दुर्बलताएँ लिख डालूं। जिन्हें पढ़कर तुम लोग मेरी जीवन की खाली गगरी को देखकर मेरा मज़ाक बनाओ।

para 4

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- जिन मित्रों ने कवि से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, उनसे कवि कहते हैं कि मेरी आत्मकथा पढ़कर और मेरे जीवन की गगरी खाली देख कर कहीं ऐसा ना हो कि तुम खुद को मेरे दुखों का कारण समझ बैठो और यह सोचने लग जाओ कि तुम्हीं ने मेरी जीवन-रूपी गगरी को खाली किया है।

यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं।

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि का तात्पर्य यह है कि उनका स्वभाव बहुत ही सरल है। इसी स्वभाव के कारण उन्हें कई लोगो ने धोख़ा दिया, जिनसे उन्हें कष्ट सहना पड़ा। परन्तु इसके बावज़ूद भी कवि को अपने स्वभाव पे कोई मलाल नहीं है और वो अपनी आत्मकथा में इसका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहते। ना वो अपनी भूलें बताना चाहते हैं और ना ही वो छल-कपट गिनाना चाहते हैं, जो उन्हें सहने पड़े।

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि के अनुसार, वो रातों के हसीन लम्हे, जो उन्होंने अपनी प्रेमिका के साथ बिताए थे, वो साथ में हँसकर की गयी मीठी बातें आदि उनके निजी अनुभव हैं। वो ये अनुभव कैसे और क्यों अपनी आत्मकथा में लिखकर लोगो को सुनाएं। ये तो उनके जीवन की पूँजी है और इस पर सिर्फ और सिर्फ उनका हक़ है।

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- जीवनभर कवि ने जिन सुखों की कल्पना की और जिनके सपने देखकर कवि कभी-कभी जाग जाता था। उनमें से कोई भी सुख उन्हें नहीं मिला। कवि ने जब भी आपने हाथों को फैलाकर अपनी प्रेमिका को अर्थात उन सुखों को गले लगाना चाहा, तब-तब उनकी प्रेमिका मुस्कुरा कर भाग गई।

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।

अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी प्रेमिका की सुंदरता का बखान करते हुए कहते हैं कि उनकी प्रेमिका के लाल-लाल गाल इतने सुन्दर थे कि उषा भी अपनी लालिमा उन्हीं से उधार लेती थी।

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की?

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- कवि कहता है कि उनकी प्रेमिका के साथ बिताए हसीन पलों को याद कर के आज कवि इस अकेले संसार में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है और उनके जीवन का एकमात्र सहारा यही यादें हैं। तो क्या तुम (मित्र) मेरी उन यादों को देखना चाहते हो? और इस प्रकार मेरी आत्मकथा पढ़कर, मेरी भूली हुई यादों को फिर से कुरेदना चाहते हो और मेरी यादों की चादर को तार-तार करना चाहते हो?

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में जयशंकर प्रसाद जी की महानता का पता चलता है। उनके अनुसार उनका जीवन बहुत ही सरल और सादगी भरा है। वह स्वयं को तुच्छ मनुष्य मानते हैं और उनके अनुसार उन्होंने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे वो खुद के बारे में बड़ी-बड़ी यश-गाथाएँ लिख सकें। इसलिए वो चुप रहना ही उचित समझते हैं और दूसरों की गाथाओं को सुनते हैं।

आत्मकथा कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने मित्रों से कहते हैं कि तुम मेरी भोली-भाली, सीधी-साधी आत्मकथा सुनकर भला क्या करोगे? उसमें तुम्हारे काम लायक कुछ भी नहीं मिलेगा। मैंने ऐसा कोई महानता का कार्य भी नहीं किया जिसका वर्णन मैं कर सकूँ। अब मेरे जीवन के सारे दुःख शांत हो गए हैं और मुझमें अब उन्हें लिखने की इच्छा और शक्ति नहीं है।

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