summary of andhere ka deepak
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१)प्रकृति में विनाश और निर्माण निरंतर चलता रहता है, इसलिए इन परिवर्तनों से घबराने की आवश्यकता नहीं है। अँधेरी रात में दीया जलाने की मनाही नहीं है। कवि कहते हैं कि मनुष्य कल्पना के सहारे अपने सुंदर भवन का निर्माण करता है। अपनी भावना के सहारे उसे विस्तारित करता है। अपने स्वप्न-करों से उसे सजाता-सँवारता है। अपने सुंदर भवन को स्वर्ग के दुर्लभ व अनुपम रंगों से सजाता है। यदि वह कमनीय मंदिर ढह जाए तो दोबारा ईंट, पत्थर, कंकड़ आदि जोड़कर शांति की कुटिया बनाने की मनाही तो नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि कल्पनाओं का संसार छिन्न-भिन्न हो जाने पर, सपने टूट जाने पर इनसान को निराश या हताश होने की बजाय आशावादी बनना चाहिए।
२)कवि ने मानव में आशावादी स्वर का संचार करते हुए कहा है कि यदि नीले आसमान के गहरे रंग का अत्यंत बहुमूल्य और सुंदर मधुपात्र जिसमें ऊषा की किरण समान लालिमा जैसी लाल मदिरा नव-घन में चमकने वाली बिजली के समान छलका करती थी। यदि वह मधुपात्र टूट जाए तो निराश होने की क्या जरूरत है, बल्कि अपनी हथेली की अंजुलि बनाकर प्यास बुझाने की मनाही तो नहीं है। अर्थात् विनाश प्रकृति का शाश्वत नियम है और जो बना है, वह नष्ट भी होगा।
३) “अँधेरे का दीपक” कविता कवि ने अपनी पत्नी श्यामा की मृत्यु के दुख से उबरने के पश्चात लिखा था जिसमें कवि ने अपनी जीवन-संगिनी के साथ बिताए आनंद और ल्लास के पलों का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि जब उनकी पत्नी जीवित थी उस समय कोई चिन्ता नहीं थी। दिन रंग-बिरंगे पलों में व्यतीत हो रहे थे। कालिमा अर्थात् निराशा का भाव जीवन को छू भी नहीं गया था। दुखों की छाया भी पलकों पर कभी दिखाई नहीं दी। उनकी निर्मल हँसी को देखकर बादल भी शर्मा जाते थे अर्थात् जीवन में दुख के बादल कभी नहीं छाएलेकिन उनकी पत्नी के देहांत के साथ-साथ ही कवि के जीवन की सारी खुशियाँ भी चली गईं। समय गतिशील है। दुख के क्षणों में यदि मुस्कराया जाए तो देख झेलना बहुत आसान हो जाता है।
४)हरिवंशराय बच्चन ने “अँधेरे का दीपक” के माध्यम से मानव-जीवन में आशावादी एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्त्व को प्रतिपादित करने के कोशिश की है। कवि के अनुसार मानव-जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। किसी दुख से घबराकर पूर्णत: निराश होकर बैठ जाना अनुचित है। प्रकृति हमें आशावाद का संदेश देती है। हर अँधेरी रात कालिमा से भरी होती है लेकिन इनसान के पास दीया जलाकर रोशनी फैलाने का अधिकार है, अर्थात् जीवन के दुख से बाहर आकर सुख प्राप्त करने की आशा सदैव बनी रहती है।
२)कवि ने मानव में आशावादी स्वर का संचार करते हुए कहा है कि यदि नीले आसमान के गहरे रंग का अत्यंत बहुमूल्य और सुंदर मधुपात्र जिसमें ऊषा की किरण समान लालिमा जैसी लाल मदिरा नव-घन में चमकने वाली बिजली के समान छलका करती थी। यदि वह मधुपात्र टूट जाए तो निराश होने की क्या जरूरत है, बल्कि अपनी हथेली की अंजुलि बनाकर प्यास बुझाने की मनाही तो नहीं है। अर्थात् विनाश प्रकृति का शाश्वत नियम है और जो बना है, वह नष्ट भी होगा।
३) “अँधेरे का दीपक” कविता कवि ने अपनी पत्नी श्यामा की मृत्यु के दुख से उबरने के पश्चात लिखा था जिसमें कवि ने अपनी जीवन-संगिनी के साथ बिताए आनंद और ल्लास के पलों का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि जब उनकी पत्नी जीवित थी उस समय कोई चिन्ता नहीं थी। दिन रंग-बिरंगे पलों में व्यतीत हो रहे थे। कालिमा अर्थात् निराशा का भाव जीवन को छू भी नहीं गया था। दुखों की छाया भी पलकों पर कभी दिखाई नहीं दी। उनकी निर्मल हँसी को देखकर बादल भी शर्मा जाते थे अर्थात् जीवन में दुख के बादल कभी नहीं छाएलेकिन उनकी पत्नी के देहांत के साथ-साथ ही कवि के जीवन की सारी खुशियाँ भी चली गईं। समय गतिशील है। दुख के क्षणों में यदि मुस्कराया जाए तो देख झेलना बहुत आसान हो जाता है।
४)हरिवंशराय बच्चन ने “अँधेरे का दीपक” के माध्यम से मानव-जीवन में आशावादी एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्त्व को प्रतिपादित करने के कोशिश की है। कवि के अनुसार मानव-जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। किसी दुख से घबराकर पूर्णत: निराश होकर बैठ जाना अनुचित है। प्रकृति हमें आशावाद का संदेश देती है। हर अँधेरी रात कालिमा से भरी होती है लेकिन इनसान के पास दीया जलाकर रोशनी फैलाने का अधिकार है, अर्थात् जीवन के दुख से बाहर आकर सुख प्राप्त करने की आशा सदैव बनी रहती है।
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