Summary of antim daur 1 Bharat Ki khoj
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भारत एक खोज, अंतिम दौर 1 का सारांश
“भारत एक खोज” पुस्तक ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू’ द्वारा लिखित पुस्तक के खंड अंतिम दौर एक का सारांश इस प्रकार है...
नेहरू जी कहते हैं कि भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना होना भारत के लिए एक अप्रत्याशित और नई घटना के समान थी। इस घटना की तुलना किसी अन्य राजनीतिक या आर्थिक परिवर्तन से नहीं की जा सकती थी। हालांकि भारत में इससे पहले भी कई आक्रमण हुए थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत पर अनेक आक्रमण किए। कुछ आक्रमणकारी भारत में लूटपाट करके चले गए, तो कुछ भारत की सीमाओं में आकर यहीं पर बस गए। उन्होंने स्वयं को भारत के जीवन में समाहित कर लिया। इस तरह भारत की स्वाधीनता पर कोई आंच ना आई और वह किसी भी देश का गुलाम नहीं बना।
भारत पर शासन करने वाली कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बनी थी। जिस का संचालन भारत की भूमि से बाहर होता हो। मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया तो मुग़ल यहीं पर बस कर रह गए और यहीं से उन्होंने भारत पर शासन का संचालन किया। लेकिन अंग्रेजों ने भारत पर जो अधिकार किया तो अंग्रेज अपने मूल और चरित्र दोनों से विदेशी थे।
पूरे संसार में एक नई पूंजीवादी व्यवस्था बन रही थी। उसके लिए एक बाजार तैयार हो रहा था। इस परिवर्तन के दौर में भारत के आर्थिक ढांचे पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। लेकिन वास्तव में जो परिवर्तन हुआ वह स्वभाविक नहीं था। भारत के आर्थिक, सामाजिक और संरचनात्मक ढांचे पर एक ऐसी व्यवस्था लाद दी गई, जिसका संचालन विदेशी ताकतों द्वारा बाहर से होता था। इससे भारत ब्रिटिश उपनिवेश का एक पिछलग्गू बनकर रह गया। अंग्रेजों ने अपने हितों का समर्थन करने वाले बड़े-बड़े जमींदार पैदा किए थे। जिनका उद्देश्य लगान के रूप में अधिक से अधिक वसूली करके अंग्रेजों के हितों को साधने का था।
अंग्रेजों ने इस तरह अपनी स्थिति को मजबूत ही किया था। उन्होंने अपनी इस व्यवस्था में जमींदारों, राजाओं, सरकारी महकमे के पटवारी, गांव के मुखिया दादा और अन्य उच्चाधिकारियों को को शामिल किया था। सरकार के उस समय दो महकमे होते थे, मालगुजारी और पुलिस। इन दोनों में से ऊपर हर जिले में एक कलेक्टर होता या जिला मजिस्ट्रेट होता जो उस समय शासन की दूरी होता था। इस तरह भारत पर शासन करने वाली उस साम्राज्यवादी ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार ने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों के लिए भारत को एक साधन की तरह इस्तेमाल किया। भारत को इंग्लैंड में ब्रिटिश सेना के एक बड़े भाग के प्रशिक्षण का खर्चा भी उठाना पड़ा। इसके अलावा भारत को ब्रिटेन के कई अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ते थे। 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में अनेक क्षेत्रों में अंग्रेजों ने अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने का भरसक प्रयत्न किया और उन्होंने भारतीयों की आपसी फूट और कमजोरियों से लाभ भरपूर लाभ उठाया।