Summary Of Baal leela by Surdas
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PLEASE MARK AS BRAINLIEST MY BRO AND KEEP YOURSELF GROWED
Summary Of Baal leela by Surdas
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Hi friend,
BALA LEELA:-
ब्रज के संत बताते हैं- गोपी कोई साधारण गोपी नही हैं। जिसकी आँखों का काजल बन कर भगवान कृष्ण बसे रहते हो वो जीव गोपी(gopi) हैं। स्त्री हो, पुरुष हो, चाहे कोई भी हो। जो कृष्ण प्रेम में डूब गया वो गोपी(gopi) हैं। जिसे आठों याम हर अवस्था में कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते हैं। वो गोपी(gopi)। केवल श्रृंगार करके या जोगन बन के ऐसे वृन्दावन की गलियों में घूमना या कहीं भी घूमना ये दिखावा करना गोपी नही हैं। वो गोपी भेष हो सकता हैं। पर वास्तव में जब हमें न कहना पड़े की हम गोपी हैं साक्षात परमात्मा आ जाये कहने के लिए की हाँ ये मुझसे प्रेम करता हैं और ये मेरी गोपी(gopi) हैं। तब भक्ति सार्थक हैं। जिसको अपना होश हैं वो गोपी नहीं हैं। जिसके केवल अपने प्रियतम का होश हैं वह गोपी(gopi) हैं। नारद जी कहते हैं परमात्मा का विस्मरण होते ही ह्रदय का व्याकुल हो जाना ही भक्ति हैं। गोपी एक क्षण के लिए भी भगवान को नही भूलती।
इंद्रियों का अर्थ ‘गोपी’ भी होता है। जो अपनी इंद्रियों से भगवत रस का पान करे, उसे गोपी(gopi) कहा जाता है।
महारास भगवान कृष्ण और गोपियों की उस अद्भुत अभिभूत करने वाली नृत्य व् संगीत की अनुपम लीला है जिसमे की संदेह होकर विदेह का वर्णन मिलता है। यह चेतना का परम चेचना से मिलान का संयोग है। यह भक्ति की शुद्धतम अवस्था है। गोपियाँ(gopiyan) कोई साधारण स्त्रियां नहीं बल्कि वेद की ऋचाएं (वेद की ऋचाएं कुल एक लाख हैं। जिनमें 80 हजार कर्मकाण्ड और 16 हजार उपासना काण्ड की एवं चार हजार ज्ञान काण्ड की हैं।) कुछ गोपियाँ तो जनकपुर धाम से पधारी हैं जिन्हें भगवती सीता जी की कृपा प्राप्त है।
त्रेतायुग में भगवान राम जब भगवान राम को दंडकारण्य के ऋषि-मुनियों ने धनुष बाण लिए वनवासी के रूप में देखा तो इनकी इच्छा हुई की प्रभो! हम तो आपकी रासलीला में प्रवेश पाने की प्रतीक्षा में तप कर रहे हैं। तो ये दंडकारण्य वन के ऋषि मुनि हैं।
जनकपुरधाम में सीता से विवाह कर जब श्रीराम अवध वापस लौटे तो अवधवासिनी स्त्रियाँ श्रीराम को देखकर सम्मोहित हो गईं। श्रीराम से प्राप्त वर के प्रभाव से वे स्त्रियाँ ही चंपकपुरी के राजा विमल के यहाँ जन्मी। महाराज विमल ने अपनी पुत्रियाँ श्रीकृष्ण को समर्पित कर दीं और स्वयं श्रीकृष्ण में प्रवेश कर गए। इन विमल पुत्रियों को भी श्रीकृष्ण ने रासलीला में प्रवेश का अधिकार दिया।
वनवासी जीवन यापन करते हुए पंचवटी में श्रीराम की मधुर छवि का दर्शन कर भीलनी स्त्रियाँ मिलने को आतुर हो उठीं और श्रीराम विरह की ज्वाला में अपने प्राणों का त्याग करने को उद्यत हो गईं। तब ब्रह्मचारी वेष में प्रकट होकर श्रीराम ने उन्हें द्वापर में श्रीकृष्ण मिलन का आश्वासन दिया।
भगवान धन्वन्तरि के विरह में संतप्त औषधि लताएँ भी श्रीहरि की कृपा से वृंदावन में गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
जालंधर नगर की स्त्रियाँ वृंदापति श्रीहरि भगवान का दर्शन कर कामिनी भाव को प्राप्त हो जाती हैं और श्रीहरि भगवान की कृपा से जालंधरी गोपी रूप में रासलीला में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
मत्स्यावतार में श्रीहरि भगवान का दर्शन कर समुद्र कन्याएँ कामोन्मत्त हो जाती हैं और वे भी भगवान मत्स्य से प्राप्त वर के प्रभाव से समुद्री गोपी बनकर रासलीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त करती हैं।
र्हिष्मती की स्त्रियाँ भगवान पृथु का दर्शन कर भावोन्मत्त हो जाती हैं और पृथु कृपा से ही वार्हिष्मती गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
गन्धमादन पर्वत पर भगवान नारायण के कामनीय रूप का दर्शन कर स्वर्ग की अप्सराएँ सम्मोहित हो जाती हैं और नारायण कृपा से ही नारायणी गोपी बनकर प्रकट हो जाती हैं।
इसी प्रकार सुतल देश की स्त्रियाँ भगवान वामन की कृपा से गोपी बनती हैं।
दण्डक वन के ऋषि, आसुरी कन्याएं व् भगवान के भक्तों ने भगवान की आराधना कर गोपियों का शरीर धारण किया। महारास(maharas) में भगवान ने अपने दिए हुए वचन के अनुसार इन सभी को आमंत्रित किया और सभी को महारास में शामिल कर अपना वचन निभाया।
गोपियों के स्रोत और स्वरूप अनन्त हैं। परंतु ये सभी साधन सिद्धा हैं और इनकी सकाम उपासना है।
हम लोग प्रेम के विषय में बोलते बहुत हैं करते नहीं हैं। जबकी गोपियाँ बोलती नहीं हैं बस प्रेम करती हैं। बिना बोले ही आपकी पुकार उस परमात्मा तक पहुँच जाये। जो शरीर नही हैं आत्मा हैं।
याद वो नहीं होती जो तन्हाई में आती हैं।
याद वो होती हैं जो भरी महफ़िल में तन्हा कर जाती हैं।
Raas panchadhyayi रास पंचाध्यायी
रास पंचाध्यायी(raas Panchadhyayi) मूलत: भागवत पुराण के दशम स्कंध के उनतीसवें अध्याय से तैंतीसवें अध्याय तक के पाँच अध्यायों का नाम है। ये महारास का प्रसंग 5 अध्याय में आया हैं। इसे कहते हैं रास पंचाध्यायी(raas Panchadhyayi)। ये पांच अध्याय भगवान श्री कृष्ण के प्राण(pran) हैं। भगवान आपके प्राणों में प्रवेश कर जाते हैं। कुछ मूर्ख लोग कहते हैं ये रास की लीला काम लीला हैं। पर ध्यान रखना यदि ये काम लीला होती और इस लीला में संसार की वासना होती। तो इस प्रसंग को शुकदेव(shukdev) जी नही गाते। और राजा परीक्षित(parikshit) जो सुन रहे हैं। वो राजा परीक्षित जिसकी आयु में केवल एक दिन बचा हैं। वो क्या काम लीला सुनने के लिए बैठेगा। बंधुओं ये काम की नहीं स्याम(syam leela) की लीला हैं। ये काम प्राप्ति पर विजय की लीला हैं। कृष्ण प्रेम जगाने वाली लीला हैं। इस लीला का उपास्य काम विजयी माना जाता है अत: जो कोई भक्त इस लीलाप्रसंग को पढ़ता या दृश्य रूप में देखता है वह कामजय की सिद्धि प्राप्त करता है।
Summary Of Baal leela by Surdas
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Hi friend,
BALA LEELA:-
ब्रज के संत बताते हैं- गोपी कोई साधारण गोपी नही हैं। जिसकी आँखों का काजल बन कर भगवान कृष्ण बसे रहते हो वो जीव गोपी(gopi) हैं। स्त्री हो, पुरुष हो, चाहे कोई भी हो। जो कृष्ण प्रेम में डूब गया वो गोपी(gopi) हैं। जिसे आठों याम हर अवस्था में कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते हैं। वो गोपी(gopi)। केवल श्रृंगार करके या जोगन बन के ऐसे वृन्दावन की गलियों में घूमना या कहीं भी घूमना ये दिखावा करना गोपी नही हैं। वो गोपी भेष हो सकता हैं। पर वास्तव में जब हमें न कहना पड़े की हम गोपी हैं साक्षात परमात्मा आ जाये कहने के लिए की हाँ ये मुझसे प्रेम करता हैं और ये मेरी गोपी(gopi) हैं। तब भक्ति सार्थक हैं। जिसको अपना होश हैं वो गोपी नहीं हैं। जिसके केवल अपने प्रियतम का होश हैं वह गोपी(gopi) हैं। नारद जी कहते हैं परमात्मा का विस्मरण होते ही ह्रदय का व्याकुल हो जाना ही भक्ति हैं। गोपी एक क्षण के लिए भी भगवान को नही भूलती।
इंद्रियों का अर्थ ‘गोपी’ भी होता है। जो अपनी इंद्रियों से भगवत रस का पान करे, उसे गोपी(gopi) कहा जाता है।
महारास भगवान कृष्ण और गोपियों की उस अद्भुत अभिभूत करने वाली नृत्य व् संगीत की अनुपम लीला है जिसमे की संदेह होकर विदेह का वर्णन मिलता है। यह चेतना का परम चेचना से मिलान का संयोग है। यह भक्ति की शुद्धतम अवस्था है। गोपियाँ(gopiyan) कोई साधारण स्त्रियां नहीं बल्कि वेद की ऋचाएं (वेद की ऋचाएं कुल एक लाख हैं। जिनमें 80 हजार कर्मकाण्ड और 16 हजार उपासना काण्ड की एवं चार हजार ज्ञान काण्ड की हैं।) कुछ गोपियाँ तो जनकपुर धाम से पधारी हैं जिन्हें भगवती सीता जी की कृपा प्राप्त है।
त्रेतायुग में भगवान राम जब भगवान राम को दंडकारण्य के ऋषि-मुनियों ने धनुष बाण लिए वनवासी के रूप में देखा तो इनकी इच्छा हुई की प्रभो! हम तो आपकी रासलीला में प्रवेश पाने की प्रतीक्षा में तप कर रहे हैं। तो ये दंडकारण्य वन के ऋषि मुनि हैं।
जनकपुरधाम में सीता से विवाह कर जब श्रीराम अवध वापस लौटे तो अवधवासिनी स्त्रियाँ श्रीराम को देखकर सम्मोहित हो गईं। श्रीराम से प्राप्त वर के प्रभाव से वे स्त्रियाँ ही चंपकपुरी के राजा विमल के यहाँ जन्मी। महाराज विमल ने अपनी पुत्रियाँ श्रीकृष्ण को समर्पित कर दीं और स्वयं श्रीकृष्ण में प्रवेश कर गए। इन विमल पुत्रियों को भी श्रीकृष्ण ने रासलीला में प्रवेश का अधिकार दिया।
वनवासी जीवन यापन करते हुए पंचवटी में श्रीराम की मधुर छवि का दर्शन कर भीलनी स्त्रियाँ मिलने को आतुर हो उठीं और श्रीराम विरह की ज्वाला में अपने प्राणों का त्याग करने को उद्यत हो गईं। तब ब्रह्मचारी वेष में प्रकट होकर श्रीराम ने उन्हें द्वापर में श्रीकृष्ण मिलन का आश्वासन दिया।
भगवान धन्वन्तरि के विरह में संतप्त औषधि लताएँ भी श्रीहरि की कृपा से वृंदावन में गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
जालंधर नगर की स्त्रियाँ वृंदापति श्रीहरि भगवान का दर्शन कर कामिनी भाव को प्राप्त हो जाती हैं और श्रीहरि भगवान की कृपा से जालंधरी गोपी रूप में रासलीला में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
मत्स्यावतार में श्रीहरि भगवान का दर्शन कर समुद्र कन्याएँ कामोन्मत्त हो जाती हैं और वे भी भगवान मत्स्य से प्राप्त वर के प्रभाव से समुद्री गोपी बनकर रासलीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त करती हैं।
र्हिष्मती की स्त्रियाँ भगवान पृथु का दर्शन कर भावोन्मत्त हो जाती हैं और पृथु कृपा से ही वार्हिष्मती गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
गन्धमादन पर्वत पर भगवान नारायण के कामनीय रूप का दर्शन कर स्वर्ग की अप्सराएँ सम्मोहित हो जाती हैं और नारायण कृपा से ही नारायणी गोपी बनकर प्रकट हो जाती हैं।
इसी प्रकार सुतल देश की स्त्रियाँ भगवान वामन की कृपा से गोपी बनती हैं।
दण्डक वन के ऋषि, आसुरी कन्याएं व् भगवान के भक्तों ने भगवान की आराधना कर गोपियों का शरीर धारण किया। महारास(maharas) में भगवान ने अपने दिए हुए वचन के अनुसार इन सभी को आमंत्रित किया और सभी को महारास में शामिल कर अपना वचन निभाया।
गोपियों के स्रोत और स्वरूप अनन्त हैं। परंतु ये सभी साधन सिद्धा हैं और इनकी सकाम उपासना है।
हम लोग प्रेम के विषय में बोलते बहुत हैं करते नहीं हैं। जबकी गोपियाँ बोलती नहीं हैं बस प्रेम करती हैं। बिना बोले ही आपकी पुकार उस परमात्मा तक पहुँच जाये। जो शरीर नही हैं आत्मा हैं।
याद वो नहीं होती जो तन्हाई में आती हैं।
याद वो होती हैं जो भरी महफ़िल में तन्हा कर जाती हैं।
Raas panchadhyayi रास पंचाध्यायी
रास पंचाध्यायी(raas Panchadhyayi) मूलत: भागवत पुराण के दशम स्कंध के उनतीसवें अध्याय से तैंतीसवें अध्याय तक के पाँच अध्यायों का नाम है। ये महारास का प्रसंग 5 अध्याय में आया हैं। इसे कहते हैं रास पंचाध्यायी(raas Panchadhyayi)। ये पांच अध्याय भगवान श्री कृष्ण के प्राण(pran) हैं। भगवान आपके प्राणों में प्रवेश कर जाते हैं। कुछ मूर्ख लोग कहते हैं ये रास की लीला काम लीला हैं। पर ध्यान रखना यदि ये काम लीला होती और इस लीला में संसार की वासना होती। तो इस प्रसंग को शुकदेव(shukdev) जी नही गाते। और राजा परीक्षित(parikshit) जो सुन रहे हैं। वो राजा परीक्षित जिसकी आयु में केवल एक दिन बचा हैं। वो क्या काम लीला सुनने के लिए बैठेगा। बंधुओं ये काम की नहीं स्याम(syam leela) की लीला हैं। ये काम प्राप्ति पर विजय की लीला हैं। कृष्ण प्रेम जगाने वाली लीला हैं। इस लीला का उपास्य काम विजयी माना जाता है अत: जो कोई भक्त इस लीलाप्रसंग को पढ़ता या दृश्य रूप में देखता है वह कामजय की सिद्धि प्राप्त करता है।
singhbabita8128:
you had copied and i dont need this one
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