summary of chandra gehna se lauti ber - para by para
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चंद्र गहना से लौटती बेर प्रकृति सौंदर्य की अनुपम कविता है । कवि चंद्र गहना नामक गांव से लौट रहा था। उसके पास प्रकृति को निहारने का पर्याप्त समय था । वह एक खेत की मेड पर बैठ जाता है । उसके पाँव के निचे तालाब है , जिसमें लहरियां उठ रही थी । पास ही चने के नन्हे पौधे खड़े है। उनके सिर पर गुलाबी फूल है । वे दूल्हे की भाती सजे हुए है ।अलसी मानो नीले फूल सर पर धारण करके प्रेम निवेदन क्र रही है । सरसो ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे उसने अपने हाथ पिले कर रखे है । सरसो सयानी प्रकट हो रही है । चारो ओर स्वयम्वर का माहौल प्रकट हो रहा है ।
पानी में सूर्य की किरणें पड़ी हुई है । ऐसा लग रहा है मनो जैसे पानी में कोई विशाल खम्बा खड़ा है । यह सब बहुत ही मनोरम प्रतीत हो रहा है ।
★ AhseFurieux ★
पानी में सूर्य की किरणें पड़ी हुई है । ऐसा लग रहा है मनो जैसे पानी में कोई विशाल खम्बा खड़ा है । यह सब बहुत ही मनोरम प्रतीत हो रहा है ।
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