Hindi, asked by ksupinder49, 1 year ago

Summary of chapter 2 bal ram katha jungle aur janakpur

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Answered by mchatterjee
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ताड़का के वन‌ का वर्णन है। जहां पर तारका की मृत्यु हो जाती है। तारका की मृत्यु के बाद उसका भय जंगल से हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है।

ऋषि विश्वामित्र का आगमन आश्रम में हो रहा था। आश्रम में कुछ अनुष्ठान की तैयारी हो रही थी। ऋषि मुनि ने आश्रम की जिम्मेदारी राम लक्ष्मण पर सौंप‌ दी थी।

अनुष्ठान पांच दिनों का था।इन पांच दिनों में राम लक्ष्मण होते नहीं था। हमेशा रक्षा करते थे एवं तीर धनुष के साथ तैनात रहते थे।

यज्ञ के आख़िरी दिन आश्रम में तहलका मच गया मरीक्ष नामक एक राक्षस राम से बदला लेने आया था। अपनी मां तारका के मौत का।

मरीक्ष राम के बाण से घायल हो गया और सुबाहु की मौत हो गई।


Answered by mitalidas1234566
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Answer:

राजमहल से निकलकर महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों के साथ सरयू नदी के कनारे की ओर बढ़े। वे सधे कदमों से दूर तक सरयू के किनारे-किनारे चलते रहे। देखते ही देखते अयोध्या नगरी पीछे छूट गई। सब कुछ दृष्टि से ओझल हो गया। शाम हो गई। राजकुमारों के चेहरों पर थकान का कोई चिह्न नहीं था। दिनभर पैदल चलने के बाद भी वे थके नहीं थे। वे उत्साहित कदमों से आगे बढ़ते ही जा रहे थे। दिनभर पैदल चलने के बाद उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली। आसमान मटमैला हो गया था। पशु-पक्षी अपने घरों को लौट रहे थे। तभी महर्षि ने कहा-“हम आज रात नदी तट पर ही विश्राम करेंगे।” उन्होंने राम से कहा कि मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इस विद्या को सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा।

दोनों भाई राम और लक्ष्मण नदी में हाथ मुँह धोकर विश्वामित्र के नजदीक आकर बैठे। उन्होंने दोनों भाइयों को “बला, अतिबला” नाम की दो विद्याएँ सिखाईं। रात में वे वहीं तिनकों और पत्तों का बिस्तर बनाकर सोए।

सुबह होते ही उन्होंने पुनः यात्रा शुरू कर दी। वे सरयू के किनारे चलते-चलते ऐसे स्थान पर जा पहुँचे जहाँ दो नदियाँ आपस में मिलती थीं। उस संगम की दूसरी नदी गंगा थी। अगली सुबह वे लोग नाव से गंगा पार करके आगे बढ़े। नदी के पार घना जंगल था। वहाँ डरावना वातावरण देखकर महर्षि ने राम-लक्ष्मण को समझाया-‘ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है, वह यहीं रहती है। तुम्हें यह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है। ‘उस सुंदर वन का नाम ही ‘ताड़कावन’ पड़ गया था। महर्षि की आज्ञा सुनकर राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। टंकार सुनते ही ताड़का गरजते हुए राम की ओर दौड़ी। ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए राम ने उस पर वाण चलाए। लक्ष्मण ने निशाना साधा। ताड़का राम का एक तीर लगते ही गिर पड़ी और फिर नहीं उठी। यह देखकर विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उन्हें सौ तरह के अस्त्र-शस्त्र दिए और उनके प्रयोग की विधि बताई। तीनों ने रात वहीं बिताई। ताड़का के वन में न होने के कारण वह स्थान अब पूरी तरह से भयमुक्त था। अब चारों तरफ शांति थी।

अगले दिन अंतिम पड़ाव था सिद्धाश्रम। वहाँ पहुँचकर महर्षि यज्ञ की तैयारियों में लग गए। आश्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी रामलक्ष्मण पर थी। पाँच दिन तक सब कुछ ढीक-ठाक चलता रहा। राम-लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक रात-दिन जगकर आश्रम को देखभाल की। अनुष्ठान के अंतिम दिन अचानक आवाजों से आसमान गूंज उठा। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। मारीच इस बात से भी क्रोधित था कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ को मारा था। वे दोनों राक्षस ताड़का के पुत्र थे। राम ने राक्षसों को देखते ही मारीच पर बाण चलाया। वह बाण लगते ही मूर्छित हो गया। वह बहुत दूर जाकर गिरा, पर मरा नहीं। होश आने तक वह दक्षिण दिशा को भागा। सुबाहु बाण लगते ही मर गया। सुबाहु के मरते ही राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हो गया। इसके बाद जब राम ने अपने लिए आज्ञा पूछी तब विश्वामित्र ने कहा कि हम यहाँ से मिथिला जाएँगे।

दूसरे दिन विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के साथ महाराज जनक के यहाँ पहुँचे। राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। राजकुमारों को देख विदेहराज चकित रह गए। महर्षि ने उन्हें बताया कि ये राजकुमार महाराज दशरथ के पुत्र हैं। अगले दिन ऋषि-मुनि और राजकुमार यज्ञशाला में उपस्थित हुए। शिव धनुष को विदेहराज की आज्ञा से यज्ञशाला में लाया गया। शिव धनुष विशाल था। वह लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेरी में आठ पहिए लगे थे। धनुष को खींचकर यज्ञशाला में लाया गया। राजा जनक ने बताया कि मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो यह धनुष उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर छोड़ देगा। उसी के साथ पुत्री सीता का विवाह होगा। शिव के इस धनुष को अनेक राजकुमारों ने तोड़ने की कोशिश की, किंतु विफल रहे। ‘यह देखकर राजा जनक पलभर के लिए उदास हो गए। अंत में विश्वामित्र ने राम को संकेत किया। राम ने सिर झुकाकर गुरु की आज्ञा स्वीकार की और विशाल धनुष को सहज ही उठा लिया। विदेहराज यह देख चकित हो गए। राम ने आसानी से धनुष झुकाया और प्रत्यंचा खींची। बच्चों के खिलौने की तरह उन्होंने शिव के धनुष को तोड़ डाला। महाराज जनक की खुशी का ठिकाना न था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हई और सीता के लिए योग्य वर मिल गया। महर्षि विश्वामित्र से अनुमति लेकर राजा जनक ने महाराज दशरथ के पास बारात लेकर आने का निमंत्रण भेजा। नगर में इस खबर से काफ़ी धूम मच गई। महाराज जनक का संदेश मिलते ही अयोध्या में खुशियाँ छा गईं। पाँच दिनों में बारात मिथिला पहुँची। जनकपुरी जगमग कर रही थी। चारों तरफ नगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया था। नगर में फूलों की चादर बिछी हुई थी। विवाह से ठीक पहले राजा जनक ने दशरथ से कहा- ‘राजन। राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी करके बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं मांडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें। ‘महाराज दशरथ ने राजा जनक के इस प्रस्ताव को अविलंब स्वीकार कर लिया। विवाह संपन्न हुआ। बारात बहुओं को लेकर अयोध्या लौट आई। रानियों ने पुत्र बधुओं की आरती उतारी। यह आनंद उत्सव कई दिनों तक चलता रहा।

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