Summary of chapter 3 of sparsh of class 10
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सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥
इस दोहे के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का शरीर सांवला होते हुए भी कितना सुंदर दिखता है। कवि आगे बताते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के शरीर पर पीला वस्त्र ऐसा शोभा दे रहा है जैसा मानों की नीलमणि पहाड़ पर भोर के सूर्य की किरण पर रही हो।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।
इस पंक्ति के द्वारा कवि तपती हुई गर्मी के कारण जंगली जानवरों के बीच की परेशानियों का वर्णन किया है। बहुत ज्यादा गर्मी होने के कारण जंगल के सभी जानवर एक ही जगह पर बैठे हुए हैं। सांप और मोर दोनों एक साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं तो वहीं हिरण और बाघ भी एक साथ बैठे हैं। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत ज्यादा गर्मी होने के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। तपोवन में अलग-अलग विचार के इंसान सभी मतभेदों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, वैसे ही भीषण गर्मी से परेशान होकर जंगल के सभी जानवर एक-दूसरों की गलतियां को नजरअंदाज कर एक साथ बैठे हैं।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥
इस पंक्ति के द्वारा गोपियों द्वारा चुराई गई भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी के बारे में वर्णन किया है। कवि आगे कहते हैं कि गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी इसलिए चुराई ताकि उन्हें कृष्ण से बात करने के लिए एक मौका मिल जाए। इसके साथ ही सभी गोपियां भगवान श्री कृष्ण के सामने बांसुरी चुराई जाने की बात कतई स्वीकार नहीं करती. और तो और सभी गोपियां कसमें भी तुरंत खा लेती हैं।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥
इस पंक्ति के द्वारा कवि ने यह बताने की कोशिश की है कि कैसे भरी भीड़ में दो प्रेमी एक-दूसरे से बातें कर लेते हैं और किसी को पता तक नहीं चलती। ऐसी स्थिति में बड़ी चालाकी से नायक और नायिका अपने आंखों ही आंखों से बातें कर लेते, इशारों-इशारों में ही मिल लेते हैं ,और वहीं कभी-कभी शर्माते भी हैं थोड़ा कभी-कभार रूठ भी लेते हैं. कभी-कभी एक दूसरे को मना भी लेते हैं, कभी खिल जाते हैं।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥
इस दोहे का माध्यम से कभी ने जेठ महीने की भीषण गर्मी के बारे में वर्णन किया है। कवि आगे कहते हैं कि जेठ महीने की गर्मी इतनी भयंकर होती है की छाया भी अपने लिए कहीं छाँह ढूंढती है। इतनी तेज गर्मी में कहीं छाया भी देखने को नहीं मिलती। छाया या तो किसी घने जंगल में छुप जाती है या फिर किसी के घर के अंदर।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥
इस दोहे के माध्यम से कवि उस नायिका के मन की स्थिति टटोलने का प्रयास किया जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका इतना लंबा संदेश भेजना चाहती है जो उस कागज पर पूरा लिखा नहीं जा सकता। वहीं उस नायिका को यह सब बातें अपने संदेशवाहक को बताने में शर्म भी आ रही है। नायिका अपने प्रिय संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे बहुत करीब हो इसीलिए मैं तुम्हें यह सब बता रही हूं और यह सब बातें तुम अपने दिल से मेरे दिल की बातें बता देना।
प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥
कवि इस दोहे के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने खुद ही ब्रज में चंद्र वंशज में जन्म लिया था, यानी अवतार लिया था। वहीं बिहारी के पिताजी का नाम केशव राय था। इसी के कारण वह कहते हैं कि हे भगवान श्री कृष्ण आप तो मेरे पिता के समान तुल हैं इसलिए आप मेरे सभी कष्टों को दूर करें।
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
झूठ और ढोंग किसी काम के नहीं होते। हमारा मन तो किसी कांच की तरह क्षण भंगुर होता रहता है जो व्यर्थ में इधर-उधर घूमता रहता है। माथे पर टीका लगाने से, माला जपने से या हजार बार श्री राम, श्री राम लिखने से कुछ नहीं होता। अगर इन सभी चीजों के अलावा सच्ची आस्था और मन से प्रभु की पूजा की जाए तो वह सबसे ज्यादा सार्थक रहता है।