summary of chapter kanyadan class 10 hindi
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बेटियां जब तक बाबुल के घर में होती है। मां और पिताजी की दुलारी होती है। विवाह के बाद बेटियों को पराया धन कहकर विदाई दी जाती है।
विदाई के वक्त एक मां की मन की व्यथा को कवि द्वारा बताया गया है। मां बेटी को बताती है कि गहनों , कपड़ों के माया में न पड़ना । यह सब संसार के जंजाल है।
मां ने कमजोर न पड़ने को कहा और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने को कहा।
आग को खाना बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है जलने और जलाने के लिए। इसका ध्यान देने को कहा।
एक मां को विदा के वक्त भी बेटी की खुशी की चिंता होती है ।
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इस कविता में कवि ने माँ के उस पीड़ा को व्यक्त किया है जब वह अपने बेटी को विदा करती है। उस समय मान को लगता है जैसे उसने अपने जीवन भर की पूंजी गँवा दी। माँ के हृदय में आशंका बनी रहती है कि कहीं ससुराल में उसे कष्ट तो नही होगा, अभी वो भोली है। विवाह के बाद वह केवल सुखी जीवन की कल्पना कर सकती है किन्तु जिसने कभी दुःख देखा नही वह भला दुःख का सामना कैसे करेगी। कवि कहते हैं कि सुख सौभाग्य को वह अबोध बेटी पढ़ सकती है परन्तु अनचाहे दुखों को वह पढ़ और समझ नही सकती।
माँ अपनी बेटी को सीख देते हुए कहतीं हैं कि प्रतिबिम्ब देखकर अपने रूप-सौंदर्य पर मत रीझना। यह स्थायी नही है। माँ दूसरी सीख देते हुए कहती हैं कि आग का उपयोग खाना बनाने के लिए होता इसका उपयोग जलने जलाने के लिए मत करना। यह सीख उन मानसिकता वाले लोगों पर कटाक्ष है जो दहेज़ के लालच में अपनी दुल्हन को जला देते हैं। तीसरी सीख देते हुए माँ कहतीं हैं कि वस्त्र आभूषणों को ज्यादा महत्व मत देना, ये स्त्री जीवन के बंधन हैं। इनसे ज्यादा लगाव अच्छा नही है। माँ कहतीं हैं लड़की होना कोई बुराई नही है परन्तु लड़की जैसी कमजोर असहाय मत दिखना। जरुरत पड़ने पर कोमलता, लज्जा आदि को परे हटाकर अत्याचार के प्रति आवाज़ उठाना।